मेरी तीन कहानियां - बॉम्बे से गोवा - अध्याय चार

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मेरी तीन  कहानियां - बॉम्बे से गोवा - अध्याय चार

सनोज भाई के साथ बार जाने का अनुभव बड़ा रोचक रहा | जिंदगी की हकीकत सामने से हमे बता गयी की जीवन को कैसे जिया जाय | वापस होटल आते हुए ऐसा टैक्सी वाला मिला की हम ब्रह्मज्ञान के कायल हो गए | होटल क्या था बीमारी का अड्डा | न किसी का चेहरा दिख रहा था न कोई पानी भी देने वाला मिला | रात ताली बजाते बीती | ताली क्यों - अरे भाई रात भर मच्छरों से मैच खेलना है तो ताली तो बजाना पड़ेगा |

किसी तरह रात कटी | सनोज भाई रात में ताली बजाने वाली स्थिति में नहीं थे| जिसका सबूत उनके चेहरे और हांथो पर स्पष्ट छपा था | हम किसी तरह तैयार होकर उस काम के लिए निकले जिस के लिए हम बॉम्बे आये थे - दिन भर फार्मा कंपनी के दफ्तर में दवा बनाने के लिए समझौता करते रहे | शाम थक कर चूर हो चुके थे | सनोज भाई ने बताया की चौपटी पर उनके एक रिश्तेदार का जूस कार्नर है | हम रात उन्ही के यहाँ बिताने की सोच रहे थे - हम शाम होते हुए चौपाटी पर पहुंच गये | वहा ऐसा लग रहा था कि मेला लगा हुआ है | सनोज और मै चौपाटी पर भेलपुरी का आनंद लेते हुए भेलपुरी वाले से अपना परिचय बनाने में लग गए |

चौपाटी पर हमारे रिसर्च से पता चला कि वहाँ पर ज्यादातर रेहड़ी खोमचे वाले हमारे इलाके से आये हुए थे | हम चौपाटी की शाम का मजा ले रहे थे की सनोज भाई को कुछ महसूस हुआ और वो निकल पड़े गहरी अँधेरी जगह पर | वैसे तो बनारस में आप लगातार दिवालो पर कई तरह के शब्द लिखे पढ़ लेंगे पर लोग है कि पढ़ने के बाद भी गीला करना नहीं छोड़ते | अब तो मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान के कारण जगह -जगह आपको शौचालय दिख जायेगे पर उस समय भारत की सड़को पर ही स्वच्छता अभियान का मखौल उडता दीखता था | बनारस में तो लोगो ने दीवाल गीला करने के जन -मन को तोड़ने के लिए की सूत्र वाक्यों की भी रचना की | उनमे से एक
देखो गधा--------- रहा है काफी जगहों पर लिखा मिल जायेगा | अब बनारसी लोगो का क्या करना उस सूत्र वाक्य को पढ़ते और हसते हुए उसी दीवाल को गीला कर जाते है | सनोज भाई को मैंने बताया की जरा ध्यान दीजियेगा ये बॉम्बे है | पर बनारसी मन जब कुछ त्याग करने के लिए जा रहा है तो उसे कौन रोक पायेगा | सनोज भाई अँधेरे की खोज में निकल पड़े महादान के लिए | थोड़ी देर बाद घबराये हुए सनोज भाई हमारे पास आकर लम्बी -लम्बी साँस भरने लगे | मैंने पूछा क्या हुआ | उन्होंने घबराते हुए बताया की यार इतनी दूर तक चला गया और अँधेरे में जहाँ भी कुछ करने जाता वह से आवाज आ जाती थी | एक जगह तो मार -पीट की नौबत आ गयी |

लगा की क्या हो गया | मैंने पूछा की जिस काम के लिए गए थे हुआ की नहीं | उन्होंने बताया की यार यहाँ तो कोई भी अँधेरी जगह खाली नहीं है | किधर भी जाओ लोग बैठे हुए और तरह -तरह की हरकतों में लगे दिख जा रहे थे | मै तो घबरा गया | हमारे साथ जो बीच पर घोडा लेकर चलने वाला अपना ताजा दोस्त हमे दोस्ती का ज्ञान देते हुए कहता है कि आप लोग हैरान मत होइए ये लोग जो आपको सरे आम प्यार प्रदर्शित करते दिख रहे है उनमे से ज्यादातर तो पति पत्नी है | घर

मुंबई में एक बड़ी समस्या है | अगर लोगो के पास घर है भी तो इतने कमरे नहीं है की पति पत्नी को एक कमरा मिल जाये | अब पति सबरे नौकरी पर निकल गया तो शाम तक लोकल ट्रेन की दिक्क़ते झेलते हुए , जब वो अपने घर पहुँचता है तो उसे अपनी पत्नी के साथ दो मिनट अकेले में बैठने की जगह भी नसीब नहीं है | परिवार की जिम्मेदारी उठाते -उठाते व्यक्ति स्वयं कब उठ जाता है उसे पता ही नहीं चलता |

बॉम्बे की इस समस्या का वर्णन अमोल पालेकर और अन्य कलाकारों की फिल्मो में हम लोगो ने देखा था पर उसे साक्षात् देखने का सुअवसर इस यात्रा ने दिया | विकास की इन नयी राजधानियों में कितने इंसानी दुःख के किस्से छुपे हुए है इसका ज्ञान हमे मिला | ऐसा कौन सा विकास का मॉडल हमें अपनाना चाहिए जिसमे हमे कम से कम अपने परिवार के साथ दो वक़्त का साथ मिल सके इसके बारे में सोचना चाहिए | परिवार समाज की सबसे मजबूत कड़ी है | अगर परिवार में ही दुःख है तो समाज में ख़ुशी ला पाना नामुमकिन है | इसीलिए विकास का बॉम्बे , न्यूयॉर्क , लंदन मॉडल भारत के परिवारों के लिए नहीं है | हमे बनारस के उस ज्ञान को समझना होगा जिसमे स्थिरता है , संतोष है , और ईश्वर हमे हमारे हिस्से का धन हमारे कर्म को देखा कर दे देगा इस बात का विश्वास है | इसको समझने के लिए एक सच्ची घटना बताता हू | दिल्ली में नौकरी के दौरान एक मिर्जापुरी गुरु मिले | ज्ञान से भरपूर | मश्ती की पाठशाला है वो | हमे भी अपनी दिल्ली के प्रवास के दौरान उनसे काफी ज्ञानं मिला | मश्त मौला प्रवित्ति का वो व्यक्ति उच्च कोटि का शिक्षक है | उनके पास काफी बनारसी ज्ञानं भरा है | और ये सब उन्हें बनारस के अनुभवों से मिला था |

एक बार ऐसे ही बात चीत करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने बनारस की कचौरी गलीं में एक अचार की दूकान थी | एक जनाब जेठ की दुपहरी में आये और कहा की उनको उस दुकान से अचार लेना है | उन्होंने बताया की दूकानदार अभी सो रहा होगा शाम को चलते है| पर उन्हें कुछ ज्यादा ही जल्दी थी तो हम उस भरी दोपहर में चल पड़े | वहा पहुंचकर देखा तो दूकानदार एक लाल गमछा पहने और दूसरे से हवा करते हुए अपनी दुकान का आधा शटर गिरा कर लेटा हुआ था | हमारे बुलाने पर जब वो नीद से जागा तो उसने शिकायती लहजे में कहा की अरे महाराज इ दुपहरिया में तू त अपने परेशान होते हउआ और हमउ के परेशान कर देला | दूकानदार का अपने ग्राहक के प्रति इतना निर्विकार भाव दिल्ली के सज्जन को परेशान कर गया |

आज के इस दौड़ती - भागती जिंदगी में ग्राहक को जहा एक ओर बुलाने की होड़ लगी है वहा दूकान पर आये किसी से ऐसा बर्ताव , आगे चलकर इसकी दूकान तो बंद हो जायेगी | अचार के साथ ज्ञान भी बनारस में ही मिल सकता है | पर जनाब उसकी दूकान कभी बंद नहीं हुए और उस दुकानदार का विश्वास की जो ईश्वर देगा वही उसके हिस्से का है | ये सिद्धांत हमे जीवन को संतोष के साथ जीने की कला देता है | यही ज्ञान शायद बॉम्बे के लोगो को ही क्यों सारी दुनिया के लिए जरूरी है | इसी लिए कहा गया है की धरती के पास इंसान को देने के लिए सब कुछ है पर उसके लालच के लिए कई धरती काफी नहीं है |

ज्ञान की बाते करते हुए हम सनोज भाई के साथ वही चौपटी पर एक फ्रूट जूस कार्नर की ओर चल पड़े | हमारा अगला पड़ाव उन्ही दूकानदार का घर था जिसमे हमे अपन रात बिताने की सोची थी | अगली कड़ी में रामनाथ भाई के घर में बिताये हुए रोमांचक पल के साथ फिर हाज़िर होऊंगा तब तक के लिए जय राम जी की

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