मेरी तीन कहानियां : बॉम्बे टू गोवा -अध्याय छः

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मेरी तीन कहानियां : बॉम्बे टू गोवा -अध्याय छः

अमर भाई के घर पर रात तारे देख कर कटी | लगा था कि इतना ऊपर तो मच्छर नहीं आ सकते पर उन मच्छरों ने हमारी सोचने की शक्ति से ज्यादा तरक्की कर ली थी | रात भर हवा के साथ -साथ और हवा के बाद भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहे | खैर रात कटी, नींद के एक झोंके ने सुबह हमे पूरी तरह से फ्रेश कर दिया था | नित्य कर्म से पहले ही हम अपने होटल की और भाग लिए | दिन भर दवा बनाने की फैक्ट्री लगाने के लिए कई बड़े लोगो से संपर्क हुआ | अब शाम हो चली थी | हम बॉम्बे की उमस भरी गर्मी से निजात पाने के लिए तय कर लिया की अब गोवा चलेंगे | बस अड्डे पर टिकट ले हम बैठ गए अपनी गोवा यात्रा के लिए |

बस में लगा की हम दूसरी दुनिया में आ गए है | ज्यादातर गोआनी थे जो या तो कोंकणी बोलते या अंगरेजी | हम तो बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के छात्र होने के नाते अपनी हाल में ही थोड़ी बहुत अंगरेजी ज्ञान के दम पर कुछ लोगो से बात कर पा रहे थे | सनोज भाई अब थोड़ा असहज महसूस करने लगे थे | हमारे सामने की सीट पर पति , पत्नी और उनका एक बच्चा बैठा हुआ था | वो बच्चा लगातार अंगरेजी में अपने माँ -बाप से बाते कर रहा था | सनोज भाई ने परेशान होकर पूछा कि यार हम किस देश में है | मैंने बताया की भारत ही है | ये प्रश्न हमारी पूरी यात्रा के दौरान कई बार आया जब सनोज भाई ने अंगरेजी और कोंकणी भाषा के बीच ये समझ लिया की वो किसी और देश की यात्रा कर रहे है | सनोज भाई ने हमेशा से पढाई को भगवान् भरोसे और दूसरे के भरोसे छोड़ रखा था | एक बार उनका साइकोलॉजी की प्रैक्टिकल परीक्षा थी | उन्होंने मुझे बुला रखा था | मै बी एच यू से और वो उससे सम्बद्ध एक कॉलेज से पढ़ रहे थे |

सनोज भाई की बी एच यू से पढ़ने की तमन्ना थी पर परीक्षा उत्तीर्ण करना, उन्होंने इसका जोखिम कभी नहीं उठाया | वो तैयारी पूरी करते थे पर भगवान् था की कभी उनपर परीक्षा को लेकर मेहरबान नहीं हुआ | वैसे तो वे बनारस के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे , दवा का अच्छा बिज़नेस था | पैसे -रुपये की कोई कमी नहीं थी | वो हमारे सीनियर थे पर शिक्षा के मंदिर में गहरी आस्था होने के कारन वो कभी -कभी किसी क्लास में एक साल से ज्यादा भी पढ़ लेते थे | उनकी बी ए प्रथम वर्ष की परीक्षा थी | चुकी हमारे और उनके प्रैक्टिकल की डेट में फर्क था तो वो हमे ही साइकोलॉजी विषय में प्रैक्टिकल के लिए सब्जेक्ट बना कर लाये थे |

गजब माहौल था | एक सज्जन कुर्सी पर बैठ के कहानी की किताब पढ़ रहे थे तो वहॉ दो चार लोग उनका प्रैक्टिकल का काम कर रहे थे | किसी ने धीरे से बताया की पूर्वांचल के कोई उभरते माफिया है जिन्हे पढ़ने का भी शौक है | गोली चलाने में बीए साइकोलॉजी का अध्ययन ये बनारस है रजा , यही ये सब आधुनिक प्रयोग होते है | वही एक तरफ एक ख़ूबसूरत लड़की बैठी थी जिसकी आव -भगत में पूरी क्लास लगी थी | हम लोग ये देख कर पूरी तरह मस्त हो गए | लगा परीक्षा नहीं कोई पिकनिक चल रही है |

सनोज भाई भी पूरी तरह कॉंफिडेंट थे | उन्हें पता था की उनका सब्जेक्ट बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी है वो सब काम सही करेगा | लिखने पढ़ने के बाद अब बारी थी वाइवा की | सनोज भाई थोड़ा घबराये लग रहे थे | वो इस सोच में थे की परीक्षक क्या पूछेगा | सनोज भाई अपनी बारी आने से पहले पशीने से पूरी तरह लथ -पथ थे | उन्हें कुछ ज्यादा ही पसीना होता था पर उस दिन लगा जैसे बारिश हो रही थी | वाइवा देने के बाद जब सनोज भाई बाहर आये तो मैंने पूछा क्या हुआ | सनोज भाई ने बहादुरी से बताया की मैंने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया | मैंने पूछा की आखिर एग्जामिनर ने क्या पूछा | उन्होंने बताया की वो तो साइकोलॉजी की स्पेलिंग पूछ रहा था मैंने भी बता दिया की मुझे पीलिया हो गया था इसलिए मैं पढ़ नहीं पाया |

खैर वो बात बीत गयी जब परीक्षा का रेसल्ट आया तो चमत्कार हो गया | सनोज भाई ने मुझे पीछे छोड़ कर कुछ ज्यादा नंबर पा गए | उन्होंने बताया की देखा मैंने कैसे बीएचयू के छात्र को पीछे छोड़ दिया | मैंने उनकी बातों को ध्यान से सुना | आखिर जीत तो जीत ही है | पर उनकी जीत पीछे एक कारन और भी था | पिछला साल यानि १९९० मेरे लिए काफी कठिन था | इच्छा थी की डॉक्टर बनू | पर माँ बीमार थी और ये हमारे लिए बहुत कठिन पल थे | तरुणाई धीरे -धीरे यौवन की ओर ले जा रही थी | गुप्ता संगीतालय मैदागिन पर गिटार बजाने की शिक्षा जोर -शोर से चल रही थी | युवा वस्था उस ओर खींच रही थी जिस ओर हम जाना नहीं चाहते थे | हमारी बड़ी बहन ने मुझे डॉक्टर बनाने की ठान ली थी | माँ की बीमारी देख लगता था की इन्हे बचाने के लिए डॉक्टर बनूँगा | पर हालात बिगड़ते गए जब तक हम समझ पाते तब तक वो हमे छोड़ जा चुकी थी | अब डॉक्टर बनने की इच्छा नहीं थी | जिंदगी के मायने बदल चुके थे | पर शायद ये मित्रों की फ़ौज और गिटार के तार थे जो हमे उस बड़ी कमी से बाहर निकाल ले गए |

अब साइंस छोड़ दिया कुछ मित्रों ने कहा कि बीएचयू का फॉर्म निकला है भर दो | परीक्षा पास कर ली और बीए साइकोलॉजी ऑनर्स में प्रवेश ले लिया |

फिर मिलेंगे बीएचयू की कहानियो और सनोज भाई केनयी मारुती वैन के किस्सों के साथ

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