प्रणब मुखर्जी: जब इंदिरा ने कहा, ट्यूटर रख लीजिए, अंग्रेजी का उच्चारण सुधर जाएगा
प्रणब मुखर्जी नहीं रहे. वे अपने साथ-साथ भारत की राजनीति के कई किस्से-कहानियां और गॉसिप लेते चले गए जिन्हें उन्होंने आजाद भारत में अपनी आंखों के सामने बनते-बिगड़ते देखा. 11 दिसंबर 1935 को जन्मे प्रणब मुखर्जी ने पराधीन भारत की मुक्ति की छटपटाहट देखी. फिर भारत आजाद हुआ तो बालक मुखर्जी (पोल्टू) ने इस देश को अंगड़ाई लेते हुए देखा. युवा होते-होते प्रणब दा खुद ही भारत की विकास यात्रा में शामिल हो गए. इस सफर में उन्होंने स्टेटक्राफ्ट की कला सिखी और इसमें पारंगत हो गए. दिल्ली में कांग्रेस और सरकार के संकटमोचक कहे जाने वाले प्रणब दा अपनी घर की चिंताओं को लेकर कभी मुक्त नहीं होते थे.
दीदी...खूब ठंडा पोरचे...
जनवरी की एक कड़कड़ाती सर्दी में एक रात पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में 82 साल की अन्नपूर्णा बनर्जी के घर फोन की घंटी बजती है. अन्नपूर्णा बनर्जी अनमने ढंग से फोन उठाती हैं तो उधर से आवाज आती है, 'दीदी टीवी ते देखलम...खूब ठंडा पोरचे...भालो आचे तो...' यानी कि मैंने टीवी पर देखा खूब ठंड पड़ रही है, तुम ठीक तो हो.
इस बीमार बूढ़ी महिला की खोज खबर लेने वाले फोन पर प्रणब मुखर्जी थे, जो अपनी बड़ी बहन की सेहत की जानकारी ले रहे थे.
साल 2012 में इंडिया टुडे के साथ बातचीत में अन्नपूर्णा मुखर्जी ने कहा, "पोल्टू (बचपन में प्रणब मुखर्जी का नाम) हमेशा से हमारी चिंता करने वाला रहा है.
बहन की पालकी के पीछे दौड़ने लगे
साल 2012 में 82 साल की अन्नपूर्णा मुखर्जी ने अपने 8 साल के भाई प्रणब मुखर्जी को याद करते हुए कहा कि जब शादी के बाद पालकी से वो अपने घर जा रही थीं तो पोल्टू पीछे से दौड़ते हुए जा रहा था. एक सप्ताह बाद जब वो फिर अपने घर मिराती लौटीं तो पोल्टू ने उनके लिए साल के पत्तों में मिठाई छिपाकर रखी थी, इस मिठाई में चीटियां लग गई थीं, मिठाई को देखकर ही अन्नपूर्णा की आंखें डबडबा गईं. अन्नपूर्णा मुखर्जी का इसी साल जनवरी में निधन हो गया.
प्रणब मुखर्जी को राजनीति की शिक्षा घर से ही मिल गई. उनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी बीरभूम जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे. इसके अलावा वे 1952 से 64 के बीच पश्चिम बंगाल विधान परिषद के सदस्य रहे.
पार्टी को नजरअंदाज कर जब संघ कार्यालय पहुंचे थे प्रणब मुखर्जी, पढ़ाया था धर्मनिपेक्षता का पाठ
प्रणब मुखर्जी के पैतृक गांव मिराती में उनके पड़ोसी रहे धनपति चौधरी कहते हैं कि मखर्जी का पैतृक घर तब राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहता था. धनपति तब अपने दोस्त बादल और कीर्ति के साथ पोल्टू दा के संग घंटों बिताते और राजनीति की चर्चा करते.
7 साल के प्रणब ने ली ब्रिटिश पुलिस की तलाशी
प्रणब मुखर्जी का बचपन गुलाम भारत के साये में गुजरा. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके पिता जेल में थे. इस दौरान ब्रिटिश पुलिस के दो कॉन्स्टेबल प्रणब मुखर्जी के घर की तलाशी लेने आ गए. तब वे मात्र 7 साल के थे. निडर प्रणब मुखर्जी ने कहा कि दोनों कॉन्स्टेबल को घर में घुसने से पहले तलाशी देनी पड़ेगी. ये सुनकर दोनों कॉन्स्टेबल चकरा गए. आखिरकार उन्होंने पूछा कि वे ऐसा क्यों करना चाहते हैं और इतना छोटा बच्चा 6 फीट के कॉन्स्टेबल की तलाशी कैसे लेगा. इस पर प्रणब ने कहा कि आप हमें गोद में उठा लो. इसी तरह पोल्टू ने दोनों कॉन्स्टेबलों की तलाशी ली.
दरअसल आजादी की लड़ाई के दिनों में लोगों को फंसाने के लिए अंग्रेज पुलिस घरों की तलाशी के बहाने आती और ब्रिटिश कानून की नजरों में आपत्तिजनक दस्तावेज क्रांतिकारियों के घरों में रख देती थी, पुलिस इसे उनके घर से बरामद हुआ दस्तावेज बताती और फिर उनपर मुकदमे चलाती. कामदा किंकर मुखर्जी ने ये बात अपने बच्चों को बता रखी थी और कहा था कि जब कोई पुलिस तलाशी के लिए आए तो बिना उसकी तलाशी लिए उसे घर में न आने दिया जाए.
पिता ने पूछा बेटे, जानते हो वित्त मंत्री का क्या काम है
प्रणब मुखर्जी जब 1982 में पहली बार देश के वित्त मंत्री बने तो उनके पिता ने पूछा था, "बेटा, इस नौकरी के बारे में कुछ भी जानते हो."