आज मन की बात कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने बारिश के पानी का संरक्षण करने की दिशा में एक बड़ा आन्दोलन खड़ा करने का प्रयास किया है | प्रधानमंत्री की बात पूरा भारत ध्यान से सुन रहा है | अगर जलशक्ति मंत्रालय ठीक प्रकार से योजना बना कर अभी से काम में लग जाए तो प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया लक्ष्य हासिल कर लेना आसान होगा |
भारत में जल संकट कोई नयी बात नहीं है | कुछ इलाके ऐसे है जहाँ पानी की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है और बरसात में वहां हमेशा बाढ़ आ जाती है | अगर हम प्रधानमंत्री की बात को सुनकर जिस तरह एक्सप्रेस वे बना रहे है उसी तरह वाटर वे बना ले तो एक स्थान से पानी दुसरे स्थान पर आसानी से भेजा जा सकता है |
भारत की भोगौलिक स्थिति ऐसी ही की हम पानी की बेहतर व्यवस्था कर सकते है | इतना ही नही पानी पर आधारित इंडस्ट्री को बढ़ावा दे कर करोडो लोगो को रोजगार दिया जा सकता है |
क्या है वाटर वे -
वाटर वे की कल्पना धरती पर बन रहे एक्सप्रेस वे की तरह ही है | अगर हम एक्सप्रेस वे की तरह बनारस से बंगाल तक वाटर वे की कल्पना कर ले और नदियों को जगह जगह पर विभिन्न शहरो से बड़े नदी नुमा नहर के साथ जोड़ दे तो हम वाटर वे से न सिर्फ ट्रांसपोर्ट बल्कि उसके किनारे वाटर प्लांट और नदी में पाली जाने वाली मछलियाँ और जीव जंतु का उद्योग दुनिया को एक्सपोर्ट किया जाने लगेगा |
हमें सिर्फ जरुरत है इन शहरो से निकलने वाले पानी को नहर और फिर नदियों के माध्यम से जोड़ने की |
धन कैसे आ सकता है -
हम सऊदी अरब और इसी तरह से पानी की कमी वाले देशो से समझौता कर उनको पानी की सप्लाई कर उनसे अरबो डालर का निवेश कर शुद्ध लाभ कम सकते है | हमें जरुरत है बेहतर वाटर मैनेजमेंट की | बाढ़ के पानी को आपदा न मानकर उसको इक्कठा कर बड़े -बड़े नहरों में भेज कर जहाँ हम एक तरफ अपने वाटर वे को लगातार चला सकते है वही हम इस पानी को शुद्ध कर सऊदी अरब , इजराइल , कतर, ईरान , इराक जैसे देश को बेच सकते है |
वाटर वे का रख रखाव
हम वाटर वे के साथ -साथ हर जिले को जोड़ वहा पर पानी के विभिन्न उद्योगों का विकास कर सकते है | जिस तरह से हम जिला वार उद्योग का लक्ष्य रख रहे है उसी तरह से हम वाटर वे के उपर और बगल में विभिन्न फसलो को लगा कर खेती को एक नया आयाम दे सकते है |
जमीन की बर्बादी को रोकना
जितने एक्सप्रेस वे बने है उसमे बीच का हिस्सा बिना किसी काम के रहता है | सरकार अगर ज्यादा कुछ करती है तो फूल और कुछ झाड़ी नुमा पेड़ लगा देती है | अगर हम लखनऊ से अयोध्या जाने वाले एक्सप्रेस वे के बीच के हिस्से में सिर्फ टमाटर की खेती अच्छे से करे तो करोडो का टमाटर पैदा हो सकता है | पर सरकार में बैठे लोग रचनात्मक सोच की जगह एक ढर्रे पे चलने वाले होते है |
सोचिये १५० किलोमीटर तक सिर्फ टमाटर या मटर या गोभी या कुछ इसी तरह का पौधा लगा है तो किस तरह से जमीन का इस्तेमाल होगा और करोडो का धन सरकार के पास आएगा | पर सरकार को अभी इस तरह की योजना का कोई अता पता ही नहीं है |
इसी तरह से हर मोहल्ले में पार्क होता है और अगर सभी पार्क के नीचे पालिका बाजार की तरह स्पेस क्रिएट कर उस मोहल्ले के लोगो को ही दे दिया जाय तो वह की जरूरत भर की सब्जी, दूध, ईधन सब उस मोहल्ले से ही निकलने लगेगा और स्थानीय लोगो को रोजगार मिलेगा | बस हमारी सोच में नयापन लाने की जरूरत है |
इसी तरीके से अगर हम आलू और अन्य सब्जियों के दाम बाकी उत्पाद की तरह फिक्स कर दे तो एक तरफ किसान को पता होगा की उसको कितना मुनाफा मिलेगा और दूसरी और जनता को पता है की आलू २० रूपये किलो मिलेगा | इस तरह से न कभी आलू २ रूपये किलो होगा न ५० | दोनों ही स्थिति में किसान और जनता को फायदा है | जरुरत है की सरकार भण्डारण की सुविधा को बढाकर हर मोहल्ले में ले आये |
इसके लिए जरूरी धन हमें जनता से ही मिल सकता है | अगर हम उनको योजना का फायदा बता कर साथ ले ले | मान ले की किसी मोहेल्ले में एक हजार परिवार है और वह हमें उनको दूध और सब्जी के लिए व्यवस्था करनी है तो पूरा सिस्टम बनाने के लिए दस करोड़ के करीब धन आएगा | हर परिवार का दूध और सभी का खर्च अगर ५००० महिना है तो औसतन ५० लाख महीना सरकार को मिलेगा | दो साल में सरकार का लगाया गया धन सूद समेत वापस और लोगो को शुद्ध सब्जी और दूध वो भी अपने मोहल्ले के अन्दर |
अब सोचना ये है की इस तरह की योजना को कैसे अमली जामा पहनाये और बदलाव लाये |