फ्रेंज ऑस्टिन ने १९३८ मे एक और कमाल की फिल्म भाभी का निर्देशन किया है, जो उनके भारत मे व्याप्त सामाजिक समस्याओं पर पकड़ की एक और मिसाल है | इस फिल्म मे एक विधवा स्त्री को समाज किस तरह से प्रताड़ित करता है और उसकी मदद करने वालों को किस तरह समाज दुत्कार देता है, ये सब कुछ आपको इस फिल्म मे दिखाई पड़ जाएगा | इस फिल्म से एक नई हेरोईन रेणुका देवी का भी बॉलीवुड मे आगाज होता है |
इस फिल्म मे विमला के पति कि मौत होती है और वो उसके दोस्त किशोर के यहाँ रहने के लिए आ जाती है | उस समय के सामाजिक परिवेश के हिसाब से ये एक बहुत बड़ा फैसला था जिसकी कीमत किशोर को चुकानी पड़ती है |
किशोर के पिता को जब पता लगता है कि उसके पुत्र के साथ कोई महिला रह रही है तो वो उसके घर आता है और किशोर से विमला को घर से बाहर निकालने के लिए कहता है | यहाँ पर भी वही तर्क है कि एक लड़का – लड़की जो जवान है वो अगर एक घर मे रह रहे है और चाहे वो भाई और बहन के रूप मे ही क्यों न हो समाज उसको स्वीकार नहीं करता है |
१९३८ से लेकर अभी तक समाज के सोच मे बदलाव नहीं दिखाई देता है क्योंकि मशहूर फिल्म स्टार सलमान खान कि पहली फिल्म " मैंने प्यार किया" का विलेन भी यही दलील देता है कि एक जवान लड़का और लड़की दोस्त नहीं हो सकते | इस तरह से समाज चाहे समय मे आगे या गया हो पर महिला को लेकर समाज कि सोच अभी भी नहीं बदली है |
किशोर के पिता ने भी यही किया वो अपने बेटे को न सिर्फ अपने जायदाद से बल्कि जीवन से भी निकाल देते है | आगे कि कहानी भी बॉलीवुड मे काफी दोहराई जा चुकी है पर ये फिल्म पहले आई थी इसलिए हम इसे असली मान सकते है | यहा भी किशोर के मुहल्ले मे एक परिवार आता है जिसमे हीरोइन रेणुका की इंट्री होती है जो अपने पिता के साथ रहती है |
वो एक गायिका है और उसके गाने के कारण हीरो और रेणुका का मिलन होता है | रेणुका किशोर को चाहने लगती है पर उसको अनुपम भी चाहता था | पर अनुपम के स्वभाव के कारण रेणुका उसको पसंद नहीं करती है | रेणुका के पिता और रेणुका दोनों ही किशोर से शादी करने के लिए तैयार हो जाते है पर उसमे अनुपम अपने बदले के लिए किशोर को बदनाम कर देता है |
रेणु और किशोर भी एक दूसरे को पसंद करते है और दोनों शादी करने के लिए तैयार हो जाते है | किशोर और रेणु के बीच धर्म और समाज को लाकर दोनों को दूर करने कि साजिश कि जाती है जिसमे जाने अनजाने किशोर के पिता को भी अनुपम शामिल कर लेता है | अनुपम ने किशोर के पिता से खत लिखवा कर किशोर को दुश्चरित्र और धर्म का अपमान करने वाला साबित करने का प्रयास किया है |
जब किशोर बच्चों को पढ़ाने कक्षा मे जाते है तो बोर्ड पर "बिमला भांडा फूट गया" लिखा था | कॉलेज के प्रिन्सपल किशोर को बुलाकर उससे गुमनाम चिट्ठी का सच जानना चाहते थे | समय और काल को देखे तो प्रिन्सपल का किशोर को बुलाना और प्रश्न पूछना गलत नहीं था पर ये फिल्म इस बात पर प्रश्न उठाती है कि व्यक्ति के व्यक्तिगत और कार्यक्षेत्र को मिलाने का प्रयास नहीं करना चाहिए जो अपने समय के हिसाब से काफी बड़ा प्रश्न है |
किशोर का चरित्र समय के हिसाब से काफी मजबूत है जो पूरे समाज से अपने दोस्त को दिए वचन के लिए लड़ जाता है | अपनी पूरी जिंदगी दाव पर लगा देना और अपने वचन को पूरा करना ये बातें हमे रामायण के पात्रों की याद दिलाती है | मजबूत चरित्र का व्यक्ति समाज कि परवाह किए बिना दूसरे के दुख को कम करता है |
रेणुका किशोर को प्यार करती है पर उसके प्यार मे विश्वास कि कमी है और वो एक छोटे से चिट्ठी से टूट जाता है | उसके विपरीत किशोर चट्टान कि तरह अडिग है | जब रेणुका को किशोर कि असलियत का पता चलता है तो वो अपराधबोध से भर जाती है | जब रेणु का शक खत्म होता है तो उसका अपराध बोध बढ़ता चला जाता है | रेणु के पिता कि तबीयत खराब होती जा रही है और दवा खत्म हो गयी है पर चारों तरफ दंगा फसाद चल रहा है | इस दंगे मे किसी तरह बचते बचाते किशोर दवा तो ला देता है पर खुद घायल हो जाता है |
दंगा – फसाद का चित्रण सिर्फ आवाज से दिखाया गया है ,दंगे के दृश्य को नहीं दिखाना भी इस फिल्म की एक खासियत है | अंत मे रेणु और किशोर एक हो जाते है और फिल्म का एक सुखद अंत होता है |