सरोगेसी या उधार की कोख से उपजते सवालों का आईना है कीर्ति सेनन की फिल्म "मिमी" | सरोगेसी कानून के बारे में गलत प्रचार भी इन फिल्मों को दर्शको से दूर करता है
जिस देश में बच्चों की संख्या इतनी हो जहाँ उनके जीने- मरने पर भी समाज में चेतना का अभाव हो वहां बच्चे के लिए अपनी कोख देने की कहानी कोई फिल्म दिखाएगी और जनता उसको देखेगी, ये एक सोचने वाली बात है | पर इस फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर, जो मूलतः मराठी फिल्मों का चेहरा है, को दाद देनी चाहिए की उन्होंने विदेश से आने वाले लोगो की ख़वाहिश और अपने सपनो को हकीकत में बदलने की चाह लेकर जीने वाले, भारत के छोटे शहर के लोगों की मज़बूरी को मजबूती के साथ सरोगेसी के साथ न सिर्फ जोड़ा बल्कि दर्शको को सोचने पर भी मजबूर कर दिया |
हालाकि इस फिल्म के साथ भी वही हुआ , कमजोर रिव्यु होने से ये फिल्म सिनेमा हाल में वो जलवा न दिखा सकी जिसकी ये हकदार थी | अच्छा सिनेमा अच्छे दर्शक को न खीच पाए तो ये सिनेमा और सिनेमा प्रेमी दोनों के लिए ही बुरी खबर है | इस फिल्म के फेल होने के और भी कारण है जिसकी विस्तार से चर्चा की जायेगी |
फिल्म की कहानी दो अमेरिकी लोगो के अपने बच्चे हासिल करने की जद्दोजहद है | पर शुरू से ही एक बात जो खटकती है वो है सरोगेट माँ का चयन | अमेरिकी पति और पत्नी भारत में बच्चे के लिए माँ ढून्ढ रहे है और वो ऐसी औरत की तलाश में है जो न सिर्फ स्वस्थ हो बल्कि सुंदर भी हो ताकि उनका बच्चा अच्छा हो |
पर इस फिल्म में एक तकनीकी खामी है जो शायद निर्देशक से नजरंदाज कर दिया या फिर उन्हें मालूम नही था | सरोगेट माँ बनने के लिए महिला की उम्र २१ से ३५ के बीच होनी चाहिए और उसे पहले एक सफल प्रेगनेंसी होनी चाहिए | 1
यहाँ पर चाहे पिछली फ़िल्में हो या मिमी , ये सब सरोगेसी की सच्चाई दर्शको तक पूरी तरह नही पंहुचा पाती है | भारत सरकार ने दिसम्बर २०२१ में सरोगेसी रेगुलेसन एक्ट पारित कर न सिर्फ कमर्शियल सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाया बल्कि सरोगेट माँ की उम्र २५ से ३५ वर्ष की और ये भी निश्चित किया की महिला शादीशुदा हो और उसने पहले भी स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया हो | इसी एक्ट में इस बात का भी ध्यान रखा गया है की किन्ही भी हालत में जो बच्चा है उसे अकेला नही छोड़ा जाएगा नही तो उसके लिए दंड का भी प्रावधान है |
पर सिनेमा की सरोगेसी अलग होती है | सरोगेसी पर सलमान खान की फिल्म " चोरी चोरी चुपके चुपके " में भी सरोगेट माँ को कहीं भी ये नही बताया गया की वो पहले से ही बच्चा पैदा कर चुकी है| ये कहानी यहाँ भी है जहाँ मिमी एक बैचलर है और सरोगेसी के लिए तैयार हो जाती है | डॉक्टर भी ये पूछने की जहमत नही करती की वो पहले बच्चा पैदा कर चुकी है या नही |
इस फ़िल्मी कहानी में मिमी पैसे लेकर हेरोइन बनने का ख्वाब देख रही है और यही इस फिल्म का मुख्य द्वन्द है जिसके सहारे फिल्म की कहानी आगे बढती है | पर आगे चलकर जब सरोगेसी में परेशानी होती है और विदेश से आया जोड़ा अपने सरोगेट बच्चे को बीच में ही अबो्र्ट कराने के लिए कह कर भाग जाता है क्योंकि वो शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक नही है |
कहानी फ़िल्मी है : इस स्थिति में कोई भी होता तो वो बच्चा अबो्र्ट कर के जितने पैसे मिले थे उसको रख अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ जाता पर कहानी तो फ़िल्मी है और इस फिल्म की हिरोइन भारतीय स्त्री और माँ भी है | यहीं से फिल्म भारत में स्त्री और माँ को देवी रूप में दिखाने की होड़ में लग जाती है | एक लड़की जिसका सपना फिल्मों में जाना था वो सरोगेसी में इतनी मगन हो जाती है की अपने सपने को भूल जाती है | वो भारतीय माँ के हर रूप का दर्शन कराती है |
फिल्म में जो सबसे ख़ास बात है वो पंकज त्रिपाठी का अभिनय जो कार ड्राइवर के रोल को बखूबी निभाता है | इस फिल्म में जो दूसरा सबसे महत्वपूर्ण द्वन्द है वो बच्चा पैदा करना और उसके पिता के बारे में छिपा कर तब तक रखना जब सबकुछ खुल जाता है | पंकज त्रिपाठी बच्चे के बाप बन गए और मिमी के साथ रहने लगे | यहाँ दूसरी और दिल्ली में उनकी पत्नी और माँ को शक होता है तो वो भी राजस्थान आ जाते है और सारी सच्चाई एक एक कर बाहर आने लगती है |
मिमी की दोस्त : रुखसार एक मुश्लिम पात्र है जो अपने अब्बा को मौलवी बताती है और खुद एक तलाकशुदा है | वो मिमी की मदद करती है और जब भेद खुलता है तो वो भी सबके निशाने पर आ जाती है | इस फिल्म में हिन्दू मुश्लिम समाज को मिक्स कर एक नया आख्यान संरचना बनाने का प्रयास किया गया है पर शायद वो दर्शको को भाता नही है |
कहानी में उस समय दिलचस्पी बढ़ जाती है जब विदेशी जोड़े के जाने के बाद भी मिमी बच्चे को पैदा करने का निर्णय लेती है, पर लोगो को पता चल जाता है जिसके कारण एक बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है | आज भी भारत में औरत अगर बच्चे पैदा करती है तो समाज जो पहला सवाल उठाता है वो उसके शादी शुदा होने का और बच्चे के पिता का नाम |
मिमी के पिता एक गायक है जो लोगो को संगीत सिखा का घर का खर्च चला रहे है और वही मिमी भी नाच- गा कर पैसे कमाती है और अपने परिवार की मदद कर एक दिन बड़ा बनने का सपना देखती थी |
एक साधारण परिवार की बेटी जब गर्भवती होती है तो उसको ये बताना होता है की बच्चा किसका है और फिल्म में यही होता है जब मिमी के माँ बाप को पता चलता है की उनकी बेटी पेट से है तो वो उससे उसके बाप का नाम पूछते है | जब कोई रास्ता नही दिखता तो मिमी पंकज त्रिपाठी को ही अपने बच्चे का बाप बता अपने कष्ट को तो दूर करती है पर कहानी अभी ख़त्म नही होती |
मज़बूरी में पंकज ये मान जाते है कि वो उनका बच्चा है पर अब वो समाज के डर और मिमी के भविष्य की चिंता कर वही रहने को बाध्य हो जाता है |
पर फिल्म में एक और खुलाशा होता है जब पंकज त्रिपाठी यानि भानू पाण्डेय की माँ और पत्नी को पता चलता है की भानू ने बिना उनके बताये शादी कर ली और बच्चा भी हो गया | अब जब वो राजस्थान आते है तो भानू के बच्चे के रंग को देख कर शक करते है की ये उसका बच्चा नही है और फिर एक और नया ट्विस्ट होता है जब सभी को पता चलता है की ये बच्चा तो किसी अंग्रेज का है और मिमी ने अपनी कोख को किराये पर दिया है |
पर इस फिल्म में बच्चे के जन्म के बाद मिमी का परिवार और भानू का परिवार जिसके पास कोई बच्च्चा नही है उस बच्चे को पालने लगते है और फिर लगता है की कहानी ख़त्म हो गयी |
पर यही पर कही फिर से विदेशी जोड़ा आकर मिमी के बच्चे को ले जाने के लिए जोर लगाता है और बच्चा न देने पर क़ानूनी प्रक्रिया की धमकी देता है | यही कही फिल्म कमजोर है क्योंकि क़ानूनी जानकारी न फिल्म मेकर ने दर्शको को दी न ही दर्शक सरोगेसी के बारे में जानने को ज्यादा इच्छुक दिखे |
इसका कारण वही है की जिस देश में बच्चे समाज में अपनी जगह नही बना पाते और सरोगेसी जैसी तकनीक को बड़े और अभिजात्य तबके के साथ जोड़ कर देखा जाता है वहा इस तरह की फिल्म निराश ही करती है |
पर ये चरम ज्यादा देर तक नही रहता , मिमी बच्चा देने को तैयार हो जाती है पर विदेशी जोड़ा उसे न ले जाकर एक दूसरा बच्चा अडॉप्ट कर लेता है और किसी आम हिंदी फिल्म की तरह ये फिल्म भी बिना सवालों का जवाब दिए मिमी को एक बिन व्याही सुपर माँ का तमगा दे ख़त्म हो जाती है |
सन्दर्भ :
1) https://howtobeasurrogatemother.com/how-surrogacy-works/getting-started-becoming-a-surrogate/surrogate-requirements/