टमाटर का बीजोत्पादन
डा0 विजय कुमार विमल
विषय वस्तु विशेषज्ञ (उद्यान) कृषि विज्ञान केन्द्र, कोटवां, आजमगढ़-1
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किसी भी फसल की अच्छी पैदावार के लिए उन्नतशील प्रजातियांें तकनीकी के साथ ही स्वस्थ एंव शुद्ध बीज का उपयोग अति आवश्यक होता है। अच्छे बीज को क्रय करने में काफी व्यय करना पडता है। यदि किसान भी बीजोत्पादन की उन्नत तकनीकी का ज्ञान होतो वह स्वंय शुद्ध एंव अच्छा बीजोत्पादन कर अपनी आय को काफी बढा सकता है।
टमाटर एक मुख्य व्यवसायिक सब्जी फसल है। जिसके बीजों की काफी मागँ होती है। अतः किसान उन्नत तकनीकी को अपनाकर बीजोत्पादन कर अच्छी आय प्राप्त कर सकता है। पुर्वोत्तर उन्नतशील प्रजातियां पूसा ़रूबी, पूसा गौरव, पंजाब छुहारा, एन0 डी0 टी0 ७, पंजाब केसरी, अर्का सौरभ, अर्का विकास आदि। बोआई का समय और बीज की मात्रा बीजोत्पादन के लिए बसन्त ऋतु से ग्रीष्मकालीन तक की बोआई पौधशाला में अक्टूबर माह में की जाती है। प्रति हेक्टेयर रोपाई के लिए ३00 से ४00 ग्राम बीज पर्याप्त होता है।
खाद एवं उर्वरक बीज की बोआई से पहले खेत की तैयारी के समय दो बार देशी हल से जुताई करने के पश्चात अन्तिम जुताई पर २५ टन सड़ी गोबर खाद तथा ५॰किग्रा नत्रजन, ४॰किग्रा फास्फोरस एंव ६५किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देना चाहिए तथा पौधो की रोपाई के २५ से ३॰ दिनों के उपरान्त और पुष्पावस्था में ३॰ से ४॰ किग्रा नत्रजन टमाटर की खड़ी फसल में प्रयोग करना चाहिए। दूरी उन्नतशिल बीजोत्पादन के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी ६॰ से ९॰ सेमी तथा पौध से पौध की दूरी ४५ से ६॰ सेमी होनी चाहिए। यह दूरी असीमित व सीमित बृद्धि करने वाली प्रजाति के उपर निर्भर करता है। सिचाई एंव निकाई गुड़ाई पौधों के रोपाई के १५ से २॰ दिन बाद पहली बार सिचाई की जाती हैं और उसके बाद निकाई गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। अवांछनीय पौधों को निकालना और प्रथक्करण की दूरी अवांछनीय पौधों को निकालने के लिए टमाटर के पौधों को विभिन्न चरणों में निरिक्षण करना पड़ता है।
प्रत्येक पौधों को ईकाई मानकर उनको शाकिय और फलों के गुणों के आधार पर छाटना चाहिए। रोग से ग्रसित टमाटर के पौधों के फलों से बीज नहीं लेना चाहिए। टमाटर विशेषतया स्वः- परागित फसल है। किन्तु परिस्थितिवश अनेक प्रजातियों में प्राकृतिक पर परागण की सम्भावना बढ जाती है। इसलिए टमाटर के मूल अथवा प्रमाणिक बीजोत्पादन के लिए विभिन्न प्रजातियों के बीज क्रमशः १॰॰ मीटर से ५॰ मीटर का प्रथक्करण आवश्यक है। प्रजनक बीज उत्तम वंशावली के श्रेष्ठतम पौधों को ईकाई मानकर उत्पन्न किया जाता है। वंश के कुछ पौधों मंे पहचान के लिए लेबल बांध देते है। उनके पूर्ण तथा पके फलों से बीज एकत्र करते है। स्ंाकर बीज उत्पादन टमाटर के संकर बीज उसके फूलों के खिलने से पहले शाम को निपुंसीकरण तथा अगले दिन दूसरे प्रजाति के परागकण से पर- परागण करके उत्पन्न किया जाता है। किन्तु अब टमाटर में सक्षम नरवन्ध्य वंशाक्रम की उपलब्धि से सस्ते संकर बीज उत्पादन की सम्भावना बढ गयी है। फलों की तोडाई और बीज का निष्कासन बीज प्राप्ति के लिए हमेशा स्वस्थ एंव पूर्ण पके हुए फलों की तोड़ाई करनी चाहिए। फलों से बीज का निष्कासन दो विधियों से किया जाता है। जिसमें किण्वीकरण की विधि अच्छी मानी जाती है।
इस विधि में पके टमाटर के फल को रगड़कर या कुचलकर घोल बना लेते है। इस घोल का किण्वीकरण लकड़ी के बर्तनों में कराया जाता है। घोल को ४ से ५ बार हिलाने से किण्वीकरण समान रूप से होता है। तथा बीज पे चिपके हुए रेशे अलग होकर तैरने लगते है। स्वस्थ बीज तल पर एकत्र हो जाते है। इन्हे साफ करने के लिए छलनी में डालकर हाथ से मलकर धोया जाता है। फिर इन्हे जालीदार ढाचे पे फैलाकर धुप में सुखाया जाता है। टमाटर के बीज को निकालने की दूसरी विधि में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का प्रयोग करते हैं। प्रति कुन्टल टमाटर के घोल में १॰॰ मिली अम्ल मिलाने से १५ से ३॰ मिनट में बीज के रेशे अलग हो जाते हैं। इससे बीज आसानी से निकल जाते हैं। परन्तु इस तरह के बीज में कैंकर नामक बीजग्राही जीवाणु रोग की सम्भावना बढ जाती है। अतः बीज को सुखाने से पहले ॰Û८ प्रतिशत एसिटिक एसिड के घोल से उपचारित करना चाहिए।
बीज की उपज बीज की उपज प्रजाति पर निर्भर करती है। प्रायः छोटे फल वाली प्रजातियाँ बड़े फल वाली प्रजातियेाँ से अधिक बीज उत्पन्न करती हैं। प्रति हेक्टेयर बीज की औसतन उपज १२॰ से १५॰ किग्रा होती है। रोग और कीट का प्रकोप आर्द्रगलन यह रोग पौधशाला में कई प्रकार के कवक जैसे पीथयम, राइजोक्टोनिया और फाइटोप्थोरा आदि के अनेक उपजातियों के कारण होता है। इस रोग में पौधे गलकर नष्ट हो जाते हैं। इसके नियन्त्रण के लिए पहले भूमि को २॰ प्रतिशत फार्मेलडिहाइड के घोल से उपचारित करना चाहिए तथा बीज का उपचार कैप्टान से उपचारित करके बोना चाहिए। अगंती अंगमारी इसमें पौधों की पत्तियाँ तने और कच्चे फलों पर गहरे भुरे रंग के धब्बे पड जाते हैं अधिक प्रकोप होने से कच्चे फल गिर जातें हैं और पौधे मर जाते हैं।
इसके बचाव के समय डाइथेन जेड ७८ नामक दवा २ ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करके फसल को बचाया जा सकता है। पछेती अंगमारी इस रोग से कभी कभी पूरी फसल बर्बाद हो जाती है, इस रोग में फसलों पर भूरे व हल्के हरे रंग के स्थाई धब्बे पड़ जाते हैं। इससे लाइकोपिन कम बनता है। इसके लिए ७से १॰ दिन के अन्तराल पर डाइथेन एम ४५ इण्डोफिल नामक दवा का २५ ग्राम प्रति लीटर पानी दर से छिड़काव करना चाहिए। कीट टमाटर का फलकृमि इस कीट की रोगथाम के लिए ॰Û१ प्रतिशत नुआन कीटनाशक दवा का १२ से १५ दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।