जब भारत की पावन धरती पर जन्मे ऋषि , मुनियों ने हमें बताया था कि शाम के वक़्त पेड़ से कुछ न तोड़े वो सो जाते है , या फिर उनको भी हमारी तरह दर्द होता है तो लोगो ने मजाक बना दिया | पर आज हिन्दू जैसा अख़बार जब ये खबर छापता है की शोध से पता चला है कि जब पेड़ -पौधे मुसीबत में होते है तो उनके चिल्लाने की ध्वनि रिकॉर्ड की गयी है, तब भी हम लोगो को अपनी गलती का एहसास नहीं होता |
हमारे यहाँ परंपरा रही है कि भोजन से पहले मन्त्र और पानी पीने से पहले जल श्रोतो को धन्यवाद और सुबह उठकर अपनी सांस के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने की परंपरा रही है | ये परंपरा सिर्फ विश्वास नहीं बल्कि विज्ञान के कसौटी पर भी खरी है |
दुर्भाग्य है कि जब पश्चिम हमें बताता है तब हम मानते है कि हमारी परंपरा कितनी समृद्ध रही है |