राजनीति किसी भी तरह से सीधे रास्ते पर नहीं चलती है पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हम गलत रास्ते पर निकल जाए। भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र में सरकार कहीं ना कहीं यह विमर्श जरूर खड़ा करती है कि क्या देश की सबसे बड़ी पार्टी में निर्णय लेने की हड़बड़ी में नैतिक मूल्यों को ताक पर रखने का काम हो गया।
भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी पार्टी है जिसके पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा संगठन खड़ा है जो सत्ता के लालच से अपने आप को दूर रखता है और ज्यादातर नेता इसी संगठन से शिक्षा दीक्षा लेकर आ रहे हैं।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन से निकलने के बाद नेताओं के नैतिक मूल्यों में गिरावट क्यों आ रही है इसका कारण जानने का प्रयास स्वयं संघ को करना होगा।
क्या सत्ता हमें करप्ट कर देती है? व्यक्ति वही है पर उसके विचार कैसे बदल जा रहे हैं ? यह सारे प्रश्न आज संघ के पदाधिकारियों के बीच जरूर चल रहा होगा।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं से अगर आप होकर गुजरे तो आपको पता चलेगा ऐसे लोगों की फौज है जो निस्वार्थ देश की सेवा करने के लिए अपने अपने संसाधनों के साथ जुटे हुए हैं। ऐसे में जब कोई संघ का कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी में पहुंचता है और सत्ता के शिखर तक पहुंच जाता है|
उसके बाद उसके नैतिक मूल्यों में कहीं चरण आता है या फिर राजनीति के कारण ऐसे निर्णय लेने लगता है जिसकी सीख संघ की शाखाओं में नहीं मिलती है तो कहीं न कहीं यह चिंतन और मनन का प्रश्न है।हाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विपक्ष के निशाने पर रहा है हर विपक्षी पार्टी उसे निशाने पर लेकर भारतीय जनता पार्टी पर दबाव बनाने की राजनीति करती रही है।इसका दुष्परिणाम देश को भी देखने को मिला है ।
राजनेताओं की टिप्पणियों को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी अपने भाषण में शामिल करने लगे।एकाएक पाकिस्तान में एक नैरेटिव गूंजने लगा जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कोसने और हिंदूवादी सोच थोपने का आरोप लगाया जाने लगा।किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष द्वारा किसी भी देश के सत्ता पक्ष में बैठे लोगों को कोसने का ,दोष देने का तो संदर्भ रहा है, पर सत्ता से दूर बैठे लोगों को देश में हो रही घटनाओं के लिए जिम्मेदार ठहराने की यह अपने तरह की पहली घटना है।
हालांकि इमरान खान को भारत से भी समर्थन मिलता रहा और यहां के नेता उन्हीं की जुबान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कोसते हुए दिखाई पड़ जाते थे।प्रश्न यह नहीं है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज एक ताकतवर संस्था है ,जहां से निकले हुए लोग भारत की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। लोगों को विचार करना होगा कि किस तरह से पिछले 70 साल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने लगातार लोगों की सेवा की और आज जनता के बीच उनकी पकड़ उनके सेवा भाव के कारण ही है।
जब देश के नेता ऐसी संस्था के बारे में बिना जाने टिप्पणी करने लगते हैं तो उससे विदेश में भारत के विरोधियों को बल मिल जाता है और एक अदृश्य हिंदूवादी सरकार को खड़ा कर दिया जाता है जिसका कहीं दूर- दूर तक भारत में अता -पता नहीं है।और यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोधियों के लिए हैं जो उनको तकलीफ देती हैं ।उनके संगठन के ढांचे चरमरा चुके हैं और वह संघ के संगठन और शक्ति के आगे कहीं भी नहीं ठहरते।
पर संघ को उसकी शक्ति के लिए अगर किसी आतंकी संगठन के साथ तुलना की जाए तो यह भारत और भारतीय परंपराओं और मूल्यों का अपमान है। महात्मा गांधी की हत्या गोडसे ने की थी उसे भी संघ के मत्थे मढ़ दिया गया है जिसे सैकड़ों बार निकाला जा चुका है।हालांकि दुर्भाग्य यह है कि भारतीय जनता पार्टी में कुछ ऐसे नेता है जो गोडसे की महिमा गाते रहते हैं और उनके कारण संघ को और भारतीय जनता पार्टी को बदनामी का सामना करना पड़ता है।
इस तरह के नेताओं में हाल में एक नाम और साध्वी प्रज्ञा का भी जुड़ गया है जो लगातार अपनी बयानबाजी से पार्टी और संगठन का नुकसान कर रही है।ऐसे लोग जो सिर्फ बयान वीर हैं जो जमीन पर काम कर रहे कर्मठ कार्यकर्ताओं के पसीने की कीमत को नहीं समझ पा रहे हैं ,उनसे सत्ता तत्काल वापस ले ली जानी चाहिए जिससे पार्टी और संगठन का नाम बदनाम ना हो।
हालांकि महाराष्ट्र के घटनाक्रम में किसी बड़े नेता का नाम तो नहीं आया पर इस बात से सबक लेने की जरूरत है कि सत्ता के लिए सब कुछ जैसे मंत्र को छोड़ना होगा अगर भारतीय जनता पार्टी अपने पार्टी विद डिफरेंस के नारे को जीवित रखना चाहती हैं।भाजपा की राजनीति के लिए संघ को बदनाम करना ठीक नहीं