जीवन से समझौता करता बचपन
अरुण कुमार बचपन आज की कहानी दो आदिवासी बच्चों की है जिनसे हम अपनी यात्रा के दौरान एक दुकान के पास मिले इन दोनों बच्चों का नाम बब्लू और ब्रिजेश है...
अरुण कुमार बचपन आज की कहानी दो आदिवासी बच्चों की है जिनसे हम अपनी यात्रा के दौरान एक दुकान के पास मिले इन दोनों बच्चों का नाम बब्लू और ब्रिजेश है...
अरुण कुमार बचपन
आज की कहानी दो आदिवासी बच्चों की है जिनसे हम अपनी यात्रा के दौरान एक दुकान के पास मिले इन दोनों बच्चों का नाम बब्लू और ब्रिजेश है ,जो एक घुमन्तु जनजाति वनवासी से सम्बन्ध रखते है | जिन्हें स्थानीय भाषा में बेड़िया भी कहते है ये जनजाति पूर्वी उत्तर प्रदेश में पाई जाती है , इनका कार्य नाच - गान करके अपने लिए आजीविका का सृजन करना है | हमने जब इन बच्चों को देखा तो मन में एक दो सवाल उठा की थोड़ा सा क्यों ना इनके बारे में जाने और मैने अपनी जिज्ञाषा की पूर्ति के लिए उनसे कई प्रश्न पूछे इनमे एक प्रश्न उनके शिक्षा के लिए किया तो वे बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिये की ' हमरी लोग पढ़ाई नाही करित '|
उनसे कारण पूछने पर उन्होंने बताया की हमरे बाबू बीमार रहते है तो हम ही दोनों भाई गाना गा कर ही कमाते है , दोनों बच्चो के आँखों में झलकती वो मासूमियत देख मन में यही प्रश्न बार -बार उठ रहा था की आज हम जिस शदी में है जहाँ दुनियाँ मंगल , चँद्रमा पर जीवन की सम्भावना देख रही है जिस देश के एक तबके के बच्चे डिजिटल दुनिया का लुत्फ उठा रहे है,उसी तबके के कुछ बच्चे अपने जीवन के मूलभूत जरुरत तो दूर दो वक्त की रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे है | क्या इनको शिक्षा का अधिकार नहीं ? क्या इनको पोषण का अधिकार नहीं ?क्या इनको बचपन का अधिकार नहीं ? यही प्रश्न मन में काफी देर तक चलता रहा |