बोल दो .......

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बोल दो .......
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जो बोलना है -गुम नहीं होना

बचपन एक्सप्रेस आपको मौका देता है की आप अपने विचारो को हमशे साझा करे | चुपचाप तन्हाई में बैठे रहने से अच्छा है कि बोल दो - आज आप नहीं बोलेंगे तो कल हम आप को खामोश नहीं देख सकते -

अगर आप अपने आप को को गुमसुम पाते है तो सबसे अच्छा है की आप अपने विचारो को लिखिए और लोगो तक पहुचाइए - इस तरह अचानक आप बोलना बंद कर दे ये अच्छी बात नहीं है |

सुशांत सिंह की मौत एक उदाहरन है की सफलता ही सब कुछ नहीं है - जीवन में पैसा , नाम, ही सब कुछ नहीं है | वो मजदूर जो अपनी सारी मज़बूरी और पैसे के अभाव में जीवन जीने के लिए संघर्ष कर जब शाम को दो रोटी अपने बच्चो को खिलाता है तो उससे ज्यादा खुश कोई नहीं होता |

ये दिल मांगे मोर स्लोगन ने हमें इक्कीसवी सदी में लालची बना दिया है | जो भारत संतोषम परम सुखं के दर्शन पर चलता था उसे नयी सदी में और -और - और के दौड़ में लगा दिया |

ये विकास का राश्ता विनाश की तरफ लेकर जा रह है - अभी भी वक्त है संभल जाने का और संतोष को सुख का आधार मान जीवन को पुनः शुरू किया जाये नहीं तो जाने कितने सुशांत इसी दौड़ में अपनी बोली बंद कर लेंगे |

आप हमें इसपर विडियो और अर्टिकल bachpanexpress@gmail.com पर भेजिए - हम कुछ अच्छे विडियो को अपने प्लेटफार्म पर जगह देंगे .

आपसे निवेदन है कि आप बोलिए , सुनिए और कहिये चुप न रहिये |

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