पर्याप्त घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए टूटे हुए चावल की निर्यात नीति संशोधित की गई : श्री सुधांशु पांडेय
उपभोक्ता मामले तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ( डीएफपीडी ) के सचिव श्री सुधांशु पांडेय ने आज जोर देकर कहा...
उपभोक्ता मामले तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ( डीएफपीडी ) के सचिव श्री सुधांशु पांडेय ने आज जोर देकर कहा...
उपभोक्ता मामले तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ( डीएफपीडी ) के सचिव श्री सुधांशु पांडेय ने आज जोर देकर कहा कि घरेलू पोल्ट्री उद्योग के उपभोग तथा अन्य पशुओं के चारे के लिए तथा ईबीपी ( एथनौल ब्लेंडिंग प्रोग्राम ) कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन के लिए एथनौल का उत्पादन करने हेतु टूटे हुए चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, सरकार ने टूटे हुए चावल की निर्यात नीति में संशोधन किया है। उन्होंने आज मीडिया से बातचीत करते हुए यह जानकारी दी।
भारत में वार्षिक रूप से लगभग 50-60 एलएमटी टूटे हुए चावल का उत्पादन होता है जो मुख्य रूप से पोल्ट्री के आहार तथा अन्य पशुओं के चारे के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इसका उपयोग अनाज आधारित डिस्टिलरी द्वारा भी एथनौल के उत्पादन के लिए किया जाता है जिसकी आपूर्ति तेल विपणन कंपनियों ( ओएमसी ) को पेट्रोल के साथ मिश्रण करने के लिए की जाती है।
संशोधन के लिए आवश्यकता :
टूटे चावल के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि : भू-राजनीतिक परिदृश्य, जिसने पशु चारे से संबंधित वस्तुओं सहित विभिन्न कमोडिटी के मूल्य के उतार चढ़ाव को प्रभावित किया है, के कारण टूटे चावल की वैश्विक मांग में वृद्धि हुई है। टूटे चावल के निर्यात में पिछले चार वर्षों के दौरान 43 गुना से अधिक वृद्धि ( 2018-19 के अप्रैल-अगस्त के 0.41 एलएमटी की तुलना में 2022 के अप्रैल-अगस्त में ~ 21.31 एलएमटी ) हुई है।
एथनौल ब्लेंडिंग प्रोग्राम के तहत घरेलू आवश्यकता की पूर्ति करने के लिए : चीनी आधारित आहार स्टॉक ही 2025 तक 20 प्रतिशत एथनौल ब्लेंडिंग यानी मिश्रण के लिए 1100 करोड़ लीटर एथनौल की आवश्यकता की पूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है। एथनौल सीजन वर्ष ( ईएसवाई ) 2018-19 से ही, भारत ने अनाज आधारित एथनौल की अनुमति दे दी है और ईएसवाई 2020-21 में भारतीय खाद्य निगम र्को एथनौल उत्पादन वृद्धि के लिए एथनौल संयंत्रों को टूटे चावल बेचने की अनुमति भी दे दी है। बहरहाल, वर्तमान ईएसवाई 2021-22 में, एथनौल उत्पादन के लिए टूटे चावल की निम्न उपलब्धता के कारण डिस्टिलरियों द्वारा ( 21.08.2022 तक ) 36 करोड़ लीटर की अनुबंधित मात्रा के मुकाबले केवल 16.36 करोड़ लीटर की आपूर्ति ही की गई है।
बढ़ती कीमतों के कारण पोल्ट्री सेक्टर पर प्रभाव का सीमित करने के लिए : उच्चतर अंतरराष्ट्रीय कीमतों के कारण, टूटे चावल की घरेलू कीमत जो खुले बाजार में 16 रुपये/किग्रा थी, बढ़कर राज्यों में 22 रुपये/किग्रा हो गई है। पोल्ट्री सेक्टर तथा पशुपालक किसानों पर आहार घटकों की कीमत में बढोतरी के कारण सबसे अधिक प्रभाव पड़ा क्योंकि पोल्ट्री आहार के लिए लगभग 60-65 प्रतिशत इनपुट लागत टूटे चावल से आती है और कीमतों में कोई भी वृद्धि दूध, अंडे, मांस आदि जैसे पोल्ट्री उत्पादों में परिलक्षित होगी।
चावल का घरेलू उत्पादन परिदृश्य : खरीफ सीजन 2022 के लिए धान के रकबे और उत्पादन में संभावित कमी लगभग 6 प्रतिशत है। 2021 में खरीफ के लिए अंतिम रकबा 403.58 लाख हेक्टेयर था। अभी तक 325.39 लाख हेक्टेयर का रकबा कवर किया जा चुका है। घरेलू उत्पादन में, 60-70 एलएमटी अनुमानित उत्पादन कमी का अनुमान है लेकिन कुछ क्षेत्रों में अच्छी मानसून वर्षा के कारण, उत्पादन हानि घट कर 40-50 एलएमटी तक सीमित रह सकती है। तथापि, यह पिछले वर्ष के उत्पादन के बराबर ही होगा।
चावल की घरेलू कीमतों में वृद्धि का रुझान दिखाई दे रहा है और धान के लगभग 10 एमएमटी कम उत्पादन के अनुमान और पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में गैर बासमती के निर्यात में 11 प्रतिशत की वृद्धि के कारण इसमें तेजी जारी रह सकती है। तथापि, पिछले वर्ष के 212 एलएमटी के निर्यात के साथ, ऐसा कहा जा सकता है कि भारत अभी भी चावल उत्पादन में अधिशेष है।
टूटे हुए चावल की निर्यात नीति में संशोधन : घरेलू पोल्ट्री उद्योग के उपभोग तथा अन्य पशुओं के चारे के लिए टूटे हुए चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, तथा ईबीपी ( एथनौल ब्लेंडिंग प्रोग्राम ) कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन के लिए एथनौल का उत्पादन करने हेतु सरकार ने दिनांक 8 सितंबर, 2022 की अधिसूचना संख्या 31/2015 -2020 के अनुसार 9 सितंबर, 2022 से टूटे हुए चावल की निर्यात नीति ( एचएस कोड 10064000 तहत ) में '' मुक्त '' से '' प्रतिबंधित '' के रूप में संशोधन किया है। इसमें केवल 9 से 15 सितंबर, 2022 की अवधि के दौरान मात्र ऐसे मामलों में कुछ छूट दी गई है जिनमें इस अधिसूचना से पहले माल की लदान शुरु हो गई है, शिपिंग बिल दायर कर दिया गया है और पोत पहले ही भारतीय बंदरगाहों में बर्थ हो चुके हैं, या आ चुके हैं और लंगर डाल चुके हैं और उनकी रोटेशन संख्या इस अधिसूचना से पहले आवंटित की जा चुकी है, खेप को इस अधिसूचना से पूर्व कस्टम्स को सुपुर्द किया जा चुका है तथा वह उनकी प्रणाली में पंजीकृत है।
गैर बासमती चावल ( अन्य ) ( एचएस कोड 1006-3090 ), चावल की भूसी ( धान या खुरदरा ) ( एचएस कोड 1006-10 ), भूसी ( भूरा चावल ), ( एचएस कोड 1006-20 ), गैर बासमती चावल ( उबला हुआ चावल ) ( एचएस कोड 1006-3010 ) की निर्यात नीति में संशोधन
भारतीय चावल ( एचएस कोड 1006-3090 के अतिरिक्त गैर बासमती चावल ) की अंतरराष्ट्रीय कीमत 28-29 रुपये/ किग्रा के आसपास है जो घरेलू कीमत की तुलना में अधिक है। बराबर उबले हुए चावल और बासमती चावल के अतिरिक्त चावल की भूसी ( धान या खुरदरा ), भूसी ( भूरा चावल ) और अर्ध मिल वाले या पूरी मिल वाले चावल, चाहे पॉलिश या ग्लेज किया हुआ या नहीं, पर सरकार द्वारा 20 प्रतिशत का निर्यात शुल्क लगाया गया है। इससे चावल की कीमतों में कमी आएगी।
गैर बामसती चावल ( बराबर उबले चावल ) तथा बासमती चावल की निर्यात नीति में कोई बदलाव नहीं
सरकार ने बराबर उबले चावल ( एचएस कोड = 1006 30 10 ) से संबंधित नीति में कोई बदलाव नहीं किया है जिससे कि किसानों को निरंतर लाभकारी मूल्य प्राप्त होता रहे। इसके अतिरिक्त, आश्रित और निर्बल देशों के पास उबले हुए चावल की पर्याप्त उपलब्धता होगी क्योंकि वैश्विक चावल निर्यात में भारत का उल्लेखनीय हिस्सा है।
इसी प्रकार, बासमती चावल ( एचएस कोड = 1006 30 20 ) में नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है क्योंकि बासमती चावल प्रमुख चावल है जोकि विभिन्न देशों में भारतीय प्रवासियों द्वारा उपभोग किया जाता है और इसकी निर्यात मात्रा अन्य चावल की तुलना में बहुत कम है।