सिनेमा काल कोठरी से भी सृजन की धारा निकाल लेता है

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सिनेमा काल कोठरी से भी सृजन की धारा निकाल लेता है

प्रो गोविन्द जी पाण्डेय

इरानियन फिल्म की कहानी पार्ट एक

इस लॉक डाउन में जितनी भी इरानियन फिल्मे देखी

उसमे ये तय कर पाना बड़ा ही मुश्किल काम है की सबसे अच्छी फिल्म कौन ये | ये

उसी तरह से है कि आपको भूख लगी है और आपके सामने तरह -तरह के पकवान है | अब

ये बताना कठिन है कि किसका स्वाद सबसे अच्छा है | यही कुछ हाल

इरानियन फिल्मों को लेकर है | कौन सी सबसे अच्छी है ये तो तय कर पाना

मुश्किल है पर माजिद माजिदी और जफ़र पनाही की सारी फिल्मे देख डाली | हम

सब जानते है की जफर पनाही को अपनी फिल्मों को लेकर जेल भी जाना पड़ा था | पर

फ़िल्मकार और कलाकार को काल कोठरी डरती नहीं है | वहा से भी सृजन

की धारा निकाल देते है | बात अभी एक फिल्म की करूँगा सांग ऑफ़ स्पेरो जिसका फिल्मांकन कमाल का है और

जो पात्र है उनकी एक्टिंग भी एक आदर्श के रूप में स्थापित की जा सकती है | करीम

के पात्र में रजा नाजी ने जो भूमिका निभायी है वो एक्टिंग के नए मानदंड स्थापित

करती है | एक ऐसी नौकरी जिसमे वो स्पेरो की देखभाल के लिए डेढ़ से दो लाख तोमन

की तनख्वाह (इस रकम को सुन कर भ्रम में मत जाइएगा एक तोमन की कीमत भारत के ०.००१८

रूपये के बराबर है और वह ५० हजार 5 हजार तोमन के नोट चलते है ,) है | वो अपनी

जिंदगी तब तक सही चला रहा था जबतक उसके फॉर्म से एक स्पेरो भाग नहीं जाता | उसको

खोजने की कहानी और उसकी गरीबी के बीच उसका अपना अहम और अपने परिवार के प्रति प्रेम

एक सहज भाव जगाता है |

नौकरी खोने के बाद जब वो अपनी बेटी के कानो के

लिए यंत्र लाने की जद्दो जहद करता है तो एक गरीबी की मज़बूरी दिखाई पड़ती है | पर वो

अपने गरीबी का रोना नहीं रोता है | मेहनत के साथ वो काम करना चाहता है | दूसरी तरफ

जो उसका बेटा है वो घर की परिस्थितियों के कारण पढाई की जगह मछलिया पाल कर लखपति

बनना चाहता है | एक दृश्य जबरदस्त है जिसमे वो मछलियों को खरीद कर ला रहे है और

बीच में ही उनका वो टैंक जिसमे मछलिया है उससे पानी गिरने लग जाता है | सारे बच्चे

अपने सपनो को फूटपाथ पर बिखरते देखते है | मानव मन और उसके तड़प की जबरदस्त तस्वीर

है ये दृश्य | जहाँ एक ओर वो पागलो की तरह गमलो को फेंक कर अपने मछलियों को बचाना

चाहते है वही जब सारी मछलिया फूटपाथ पर बिखर जाती है तो वो आँखों में आंसू लिए

उनको मरने के लिए नहीं छोड़ते बल्कि उसे बगल के बहते पानी में डाल देते है जिससे वो

मरने से बच जाये |

अपने सपनो को बिखरते देखना फिर भी मानवता का

पालन करना इस फिल्म के नैतिक मूल्यों को चरम पर ले जाता है | मासूम बच्चे पर उनकी

इंसानियत आज के हालत में हमे बहुत कुछ सीखा देती है | इस फिल्म में अंत भी बच्चें

के द्वारा उस पानी के गड्ढे में एक मछली को डालते दिखाया गया है जो जीवन में आशा

की किरण को छुपने नहीं देता | अत्यंत निराशा और घोर पीड़ा के बीच इस तरह के दृश्य

दिल को सुकून देते है |

माजिद माजिदी की ये फिल्म आम आदमी के सपने और

निराशा के बीच एक जंग है जिसमे बच्चों के रूप में भगवान हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाते

रहते है | अगर सिर्फ करीम का संघर्ष होता तो ये फिल्म हमें निराशा की ओर ले जाती

पर उसका अपने परिवार के प्रति स्नेह और समर्पण साथ ही साथ परिवार का करीम की

मजबूरियों के साथ खुश रहना इस सदी के लोगो के लिए एक मजबूत सन्देश दे जाता है | विकास

और परिवार के बीच की दुरी की कहानी ये

फिल्म परदे पर बड़ी खूबसूरती के साथ दिखाती है |

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