मांस विक्रेता का पीटने का मामला, गोरक्षा वाहिनी ने कहा वो नहीं है सम्बद्ध

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मांस विक्रेता का पीटने का मामला, गोरक्षा वाहिनी ने कहा वो नहीं है सम्बद्ध

साभार : सोशल मीडिया 

भारत में भीड़ की हिंसा का मसला तभी जोर पकड़ता है जब उसमे कोई अल्पसंख्यक होता है | ऐसे घटनाओं की कमी नहीं है जंहा भीड़ ने हिंसा की और लोगो के घर जला दिए पर मीडिया के एक वर्ग को वो हिंसा दिखाई नहीं देती |

वैसे हिंसा कोई भी करे वो दोषी होता है और उसपर कड़ी कार्रवाई करना शासन का काम है , पर इस तरह की हिंसा को बिना जांचे परखे जब धर्म के नाम पर नेशनल मीडिया दिखाने लगता है तो वो दूसरे वर्ग को भड़काने का काम भी करता है |


अब अगर इसी घटना को ले तो इसमें कार्रवाई हुई और दोनों पक्षों के ऊपर कानून के उल्लंघन का आरोप लगा | पर पूरी घटना को द वायर ने धर्म का चश्मा पहन कर देखा और खबर पढ़ने के बात आपको ये लग जाएगा की ये रिपोर्टर की अपनी कहानी है सत्य नहीं | पत्रकारिता में सत्य को स्थापित करने की जगह बड़े मीडिया घराने आजकल अश्वथामा मारा गया किन्तु हाथी पत्रकारिता के वाहक है |

इस तरह की पत्रकारिता में तथ्य सही होते है पर उसको ऐसे प्रस्तुत किया जाता है कि एक पक्ष सत्य और दूसरा असत्य का साथ देता प्रतीत होता है | चाहे वो एनडीटीवी के रवीश कुमार हो जो इसी तरह की पत्रकारिता में महारथ हासिल किये हुए है और चाहे द वायर के पत्रकार , सब अर्धसत्य का गान कर पक्ष विपक्ष खड़ा कर देते है और जनता उनके मायाजाल में फंस जाती है |

मांस विक्रेता कोई भी हो सकता है पर जब द वायर उसको मुस्लिम मांस विक्रेता लिखता है तो उसकी खबर में पूरा मशाला लग जाता है और वो टुंडे कवाब की तरह मशहूर हो जाता है | अगर सिर्फ मांस विक्रेता लिखते तो जनता समझ नहीं पाती और हिन्दू - मुसलमान न होता | पर सत्यवादी हरिश्चंद्र से प्रेरणा ले पत्रकारिता का धर्म निभाने वाले द वायर के पत्रकार को कहाँ चैन मिलता | इन्होने पूरा सत्य लिखा और जनता को हिन्दू -मुस्लिम करने का पूरा मौका दिया |

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