दोहरे हत्याकांड में पुलिस के बीट सिस्टम की पोल खुली

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दोहरे हत्याकांड में पुलिस के बीट सिस्टम की पोल खुली


बीट के सिपाही खुलेआम कर रहे हैं वसूली

फर्रुखाबाद।अमृतपुर में 7 मई को दिल दहलाने वाली घटना ने सभी को शर्मसार कर दिया और हमारे पुलिस के सिस्टम पर कई सवाल खड़े किए हैं ।

7 मई को जमीनी विवाद को लेकर जिस तरह तालिबानी तरीके से पीयूष अवस्थी को घर से प्रातः 7 बजे हत्यारे पकड़कर लाए और उन्होंने एक झोपड़ी में उसके दोनों पैर बांधकर कठोर यातनाएं देकर उसका गला रेता और फिर गोली मारकर उसकी हत्या कर दी,पीयूष काफी चीखा और चिल्लाया लेकिन हत्यारों की दहशत उनकी पुलिस से सेटिंग और रसूख के चलते किसी ने पीयूष को बचाने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाई , और हत्यारे बेखौफ होकर घटना को अंजाम देते रहे , उसके बाद मृतक के पिता दिनेश अवस्थी जो कि बचाने के लिए आए उन पर भी कातिलों ने ताबडतोड फायरिंग की और उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया , हत्यारे इतने बेखौफ थे कि उन्होंने पूरे घर का सफाया करने के लिए लक्ष्य साध कर मां और बेटी दोनों पर फायर किए जिसमें मां और बेटी दोनों घायल होकर गिर पड़ी ,और तीसरे दिन दिनेश अवस्थी की उपचार के दौरान लखनऊ के ट्रामा सेंटर में मौत हो गई।

हालांकि पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए दो महिलाओं समेत आठ कातिलों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है लेकिन इस घटना से पुलिस की बीट प्रणाली की एकदम पोल खुल गई है यहां बीट के दो सिपाही इन कातिलों से लंबे अरसे से मिले हुए थे और इनके खतरनाक इरादों से भी वाकिफ थे इसके बावजूद भी पुलिस ने इस घटना को रोकने के लिए कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की इससे यह साफ जाहिर है कि पुलिस की बीट से लेकर चौकी तथा थाने तक कातिलों का कितना रसूख रहा होगा कि घटना होने के 1 घंटे तक बीट से लेकर चौकी इंचार्ज और थाना अध्यक्ष ने फोन तक नहीं उठाया।

पुलिस अधीक्षक की तरफ से वीट सिपाही से लेकर सब इंस्पेक्टर, स्टेशन इंचार्ज की अलग अलग जिम्मेवारी तय की जाती है

लेकिन यहा पर ऐसा नही हुआ,

यहा बीट पर तैनात सिपाही वीरपाल सिंह यादव और सुधीर यादव हर वक्त शराब के नशे मे रहते है खुलेआम रोड पर पान की दुकानो पर शराब पीना और शराब के लिए रूपये का इंतजाम कैसे हो इस फिराक मे रहना यह इनकी नियमित दिनचर्या है ।

यह घटना हमारे पुलिस के सिस्टम की पोल सीधे-सीधे खोल रही है।

इस हत्याकांड में थाना अध्यक्ष चौकी इंचार्ज से लेकर बीट के सिपाही प्रथम दृष्ट्या दोषी हैं जिन्होंने कातिलों के बारे में सब कुछ जानते हुए भी नजरअंदाज किया इससे यह लग रहा है कि इन सभी के कातिलों से कितने मधुर संबंध रहे होंगे।

बताते चलें की जिन लोगों ने इस घटना को अंजाम दिया है उनके न्यायालय से एनबीडब्ल्यू वारंट जारी थे और पुलिस लगातार झूठी सूचना न्यायालय को भेज रही थी कि मुलजिम घर पर नहीं है , और आसपास भी इनके रहने की कोई जानकारी नहीं है, यदि इन कातिलों की सर्विलांस से फोन लोकेशन निकाली जाए , तो सब कुछ पता चल जाएगा । इस मामले में सीओ अमृतपुर की भूमिका की भी गहराई से जांच होनी चाहिए, जिससे यह पता चल सके कि पुलिस के सिस्टम में वह कौन लोग हैं जो अपराधियों को पनाह दे रहे हैं।

अमृतपुर के क्षेत्राधिकारी जोकि अपराधिक घटनाओं को रोकने का दावा करते हैं लेकिन वह भी किसी से कम नहीं है, उनका भी अमृतपुर और राजेपुर दोनों थानों पर कोई नियंत्रण नहीं है।

हां यह जरूर है अन्य मामलों के वह माहिर माने जाते हैं।मृतक के भाई ने इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस पर गंभीर इल्जाम लगाए हैं सबसे पहले जितने दोषी कातिल हैं , उतने ही दोषी वह पुलिसकर्मी भी हैं जिन्होंने कातिलों का लंबा चौड़ा अपराधिक इतिहास होने के बावजूद भी कोई निरोधात्मक कार्यवाही नहीं की, मृतक के भाई ने पुलिस पर सार्वजनिक रूप से गंभीर आरोप लगाए थे, और इस हत्या के लिए थाना पुलिस को जिम्मेदार ठहराया था ,।

मृतक के भाई ने पहली तहरीर में सब इंस्पेक्टर सुनील यादव और थाना अध्यक्ष इंस्पेक्टर सुनील परिहार के नाम का उल्लेख किया था, उस समय सीओ अमृतपुर ने काफी मान मनोबल कर इन दोनों पुलिसकर्मियों का नाम तहरीर से हटवाया था।

इस पूरे हत्याकांड में पुलिस की बीट प्रणाली की पोल खुल गई है।

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