शिक्षक वो होता है जो एक कुम्हार के समान तरह- तरह के मिटटी के पात्र बनाता है जो समाज के उपयोग में आते है

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शिक्षक वो होता है जो एक कुम्हार के समान तरह- तरह के मिटटी के पात्र बनाता है  जो समाज के उपयोग में आते है

शिक्षक होने का अर्थ

शिक्षक दिवस के दिन पुरे देश में शिक्षको को विशेष रूप से सम्मान मिलता है और वो समाज के हर वर्ग के द्वारा सराहे जाते है - जैसा की विदित है एक शिक्षक अगर चाहे तो देश की धारा को मोड़ सकता है और इसका उदाहरण हमारे समाज में है - जहाँ चाणक्य जैसे शिक्षक और चन्द्रगुप्त जैसे शिष्य ने अपने बुद्धि और बल से भारत की दशा और दिशा दोनों बदल दी -

शिक्षक वो होता है जो एक कुम्हार के समान तरह- तरह के मिटटी के पात्र बनाता है जिसके कई तरह से प्रयोग होते है - पर वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक का काम मिटटी के पात्र बनाने की जगह उस चाक को ही उन्नत करने का लगातार प्रयास हो रह है जिससे पात्र बनते है - हमने उसमे सफलता भी पायी शिक्षको ने सैकड़ो सेमिनार , वर्कशॉप , रिफ्रेशर कोर्स कर डाले और चाक को एकदम नए रूप में कर दिया -

पर मिटटी के पात्र नहीं बन रहे थे , वो मिटटी को उसी के रूप में रहने देने लगे और उसका इस्तेमाल उन्नत हुए चाक पर नहीं किया - क्योंकि उनके पास अब मिटटी के पात्र बनाने के लिए समय ही नहीं बचा - इस उदाहरण से मै आज की शिक्षा व्यवस्था के बारे में कहने का प्रयास कर रहा हू जहा एक शिक्षक कुम्हार के रूप में अपने आप को आधुनिक बना कर हजारो की संख्या में एपीआई लेकर बैठा है और आंकड़ो में श्रेष्ठ शिक्षक का तमगा भी लगाये घूम रहा है पर उसके छात्र जो मिटटी रूप में उसके सामने है उनको गढ़ने का प्रयास नहीं कर रहा है - अब उसे ये सब व्यर्थ लगता है क्योंकि मिटटी के पात्र बनाने पर उसे किसी भी तरह का तमगा या प्रशंसा नहीं मिला -

किसी भी देश की शिक्षा व्यवस्था का मशीनीकरण नही होना चाहिए क्योंकि हमें मानव निर्माण में लगना है जिसमे दुसरो के प्रति स्नेह और विश्वास हो - मशीनीकरण से हमें एक जैसे उत्पाद मिलने लगते है और उसमें विविधता का अभाव हो जाता है - वर्तमान व्यवस्था यही है जहाँ पर हम नौकरी को सबसे आगे रख कर मशीनी मानव पैदा कर रहे है जिनमे सिर्फ सालाना सैलरी पॅकेज की चिंता है जिसके लिए वो किसी भी सीमा से आगे जाकर काम करने के लिए तैयार है -

अब शिक्षक आपका मार्गदर्शक नहीं रहा बल्कि वो इस शिक्षा जगत के व्यापारियों का एजेंट हो गया है - दुख इस बात का है कि सरकारी शैक्षिक संस्थानों में तो शिक्षक की कुछ गरिमा बची है क्योंकि हम अभी भी काफी कम फ़ीस लेकर शिक्षा देने का काम कर रहे है - पर जिस दिन हमने प्राइवेट संस्थानों की तरह बच्चो से ज्यादा धन ले कर शिक्षा देनी शुरू कर दो तो वो भी सम्मान जाता रहेगा -

कई लोग ये कहते हुए पाए जाते है कि सरकार अब शिक्षा जगत को आत्मनिर्भर करना चाहती है और इसलिए यूनिवर्सिटी सिस्टम में फाइनेंसियल आत्म निर्भरता की भी बात चल रही है - अगर हमने शिक्षा का व्यवसायीकरण नहीं रोका तो शिक्षक दिवस गुजरे ज़माने की बात हो जायेगी और कोई भी छात्र अपने शिक्षक के लिए सम्मान के दो शब्द भी नहीं बोलेगा - जब हम गुरु से आचार्य हुए तभी शिक्षको के सम्मान में कमी आई अब हम आचार्य से क्या –क्या हो रहे है और सम्मान कहीं दिखाई नही देता -

एक शिक्षक के जीवनकाल में अगर उसका एक भी शिष्य समाज में अपने आप को स्थापित कर समाज के भले के लिए कुछ बड़ा कर देता है तो उस गुरु का जीवन सफल है - शिक्षा यही होनी चाहिए जिसमे गुरु का काम शिष्य को कुम्हार की तरह गढ़ने का है न कि अपने आप को समृद्ध करते रहने का -

गुरु के चरित्र और सामाजिक व्यवहार का सीधा सम्बन्ध शिष्य के चरित्र और समाज से सम्बन्ध से होता है अगर गुरु में चारित्रिक दोष है तो समाज में इसकी बहुलता होगी और अगर गुरु दोष मुक्त है तो समाज दोष मुक्त होगा - इस तरह की परिकल्पना से ही समाज का भला होगा और भविष्य की शिक्षा व्यवस्था को मशीन से जोड़ने की जगह मानव से जोड़ने की कोशिश में देखा जाना चाहिए -


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