इण्टरनेट ही तो वो दुनिया है जहां सब बराबर हैं। किसी का रुतबा और पैसा यहां नहीं चलता
ऋतुपर्ण दवेइण्टरनेट, संचार क्रान्ति में वरदान तो जरूर साबित हुआ और देखते ही देखते मानव जीवन की अहम जरूरत बन भी गया। हकीकत भी यही है कि 'दुनिया मेरी...
ऋतुपर्ण दवेइण्टरनेट, संचार क्रान्ति में वरदान तो जरूर साबित हुआ और देखते ही देखते मानव जीवन की अहम जरूरत बन भी गया। हकीकत भी यही है कि 'दुनिया मेरी...
ऋतुपर्ण दवे
इण्टरनेट, संचार क्रान्ति में वरदान तो जरूर साबित हुआ और देखते ही देखते मानव जीवन की अहम जरूरत बन भी गया। हकीकत भी यही है कि 'दुनिया मेरी मुट्ठी में' का असल सपना इण्टरनेट ने ही पूरा किया। लेकिन अब बड़ा सच यह भी है कि इस सेवा का जरिया बने यूजर्स से ही कमाई कर रहे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स चोरी-छिपे न केवल सायबर डकैती करते हैं बल्कि यूजर्स डेटा को ही अपने पास स्टोर करने की कोशिशें करते रहते हैं। यह न केवल निजता का उल्लंघन है बल्कि भविष्य में हर किसी की हैसियत को नापने का जरिया भी। दरअसल अभी आम लोगों को इस बारे में वाकई में ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन यदि इसपर रोक नहीं लगी और कानून नहीं बना तो आपके एक-एक हिसाब-किताब यहाँ तक कि लेन-देन तक की सारी जानकारियाँ विदेशों में बैठे ऐसे सोशल मीडिया प्रोवाइडर के पास होगी जो अन एडिटेड इसे सोशल मीडिया में सारा कंटेंट जस का तस परोस देते हैं। वहीं वैध इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिन्ट, जिम्मेदार संपादक से लेकर कंटेंट एडिटर, कॉपी एडिटर की लंबी-चौड़ी और लगातार काम करने वाली टीम होती है। इसके द्वारा एक-एक शब्द को परखा और समझा जाता है तब जाकर सामग्री प्रकाशित या प्रसारित की जाती है।
हाल ही में वाट्सएप के द्वारा निजी डेटा के नाम पर जो इजाजत का प्रपंच रचा जा रहा है, वह देखने में तो महज चंद शब्दों का साधारण सा नोटिफिकेशन दिखता है लेकिन उसकी असल गहराई किसी साजिश से कम नहीं है। इससे सात समंदर पार दूर विदेश में बैठा वह सर्विस प्रोवाइडर जिसे यहाँ न उपयोगकर्ता जानता है न देखा है, उसे आपकी हर एक गतिविधि यहाँ तक कि मूवमेण्ट की भी जानकारी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ऐक्टिव होते ही हो जाएगी जो रिकॉर्ड होती रहेगी। मसलन आपने मॉल में कितने की खरीददारी की, आपकी मूवमेण्ट कहाँ-कहाँ थी, चूंकि भारत में वाट्सएप पेमेंट सेवा भी शुरू है तो लेन-देन तक यानी सारा कुछ जो आपके परिवारवालों को भी नहीं पता होता है, उस सोशल मीडिया सर्वर के जरिए वहाँ इकट्ठा होता रहेगी। झूठ और सच की महापाठशाला यानी वाट्सएप यूनिवर्सिटी भविष्य में उसी का काल बनेगी जो अभी मस्ती या सही, गलत सूचना के लिए इसका उपयोग धड़ल्ले से कर रहे हैं।
सच तो यह है कि इण्टरनेट ही तो वो दुनिया है जहां असल साम्यवाद है। सब बराबर हैं। किसी का रुतबा और पैसा यहां नहीं चलता। इसके लिए सारे यूजर समान हैं। किसी से भेदभाव भी नहीं है। सबको समान रूप से पल प्रतिपल इण्टरनेट ही तो अपडेट रखता है। लेकिन उसी इण्टरनेट की आड़ में निजी डेटा खंगालने का विदेशी खेल ठीक नहीं।
अब वाट्सएप भारत सहित यूरोप से बाहर रहने वालों में लोकप्रिय इस इंस्टैंट मैसेजिंग ऐप के उपयोग के लिए अपनी निजी पॉलिसी और शर्तों में बदलाव करने जा रहा है। 8 फरवरी के बाद वॉट्सएप इस्तेमाल तभी कर पाएंगे जब इन्हें स्वीकारेंगे वरना एकाउण्ट डिलीट हो जाएगा। यानी वाट्सएप द्वारा जबरन इजाजत ली जा रही है। अबतक यह देखा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स इस तरह के अड़ियल रवैया नहीं अपनाते हैं और स्वीकार या अस्वीकार का ऑप्शन देते हैं। दरअसल फेसबुक ने 2014 में वाट्सएप को खरीदते ही कई बार पॉलिसी में बदलाव किए हैं। सितंबर 2016 से अपने उपयोगकर्ताओं का डेटा फेसबुक से शेयर भी कर रहा है। वाट्सएप की हालिया नई प्राइवेसी पॉलिसी और शर्तों की बारीकियों पर नजर डालें तो दिखता है कि यह हमारे आईटी कानूनों के अनुरूप कहीं से भी वाजिब नहीं है।
यहाँ गौर करना होगा कि वाट्सएप भी अलग-अलग देशों में वहाँ के कानूनों के अनुरूप अपनी निजता की पॉलिसी बनाता है। मसलन जिन देशों में प्राइवेसी और निजता से जुड़े बेहद कड़े कानून मौजूद हैं वहाँ उनका पालन इनकी मजबूरी होती है। जैसे यूरोपीय क्षेत्र, ब्राज़ील और अमेरिका, तीनों के लिए अलग-अलग नीतियाँ हैं। यूरोपीय संघ यानी यूरोपियन यूनियन और यूरोपीय क्षेत्रों के तहत आने वाले देशों के लिए अलग तो ब्राज़ील के लिए अलग। वहीं अमेरिका के उपयोगकर्ताओं के लिए वहाँ के स्थानीय स्थानीय कानूनों के तहत अलग-अलग प्राइवेसी पॉलिसियाँ व शर्ते हैं। शायद इसीलिए तमाम विकसित देशों की इसपर गंभीरता दिखती है क्योंकि वे अपने नागरिकों की निजता को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं। यही कारण है कि देश के कानूनों से इतर ऐसे ऐप्स को वहाँ के प्ले स्टोर्स में जगह तक नहीं मिलती। हालांकि हमारे देश में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल लंबित है परन्तु उससे पहले ही वॉट्सएप का यह फरमान निश्चित रूप से परेशानी में तो डाल ही रहा है। इसकी वजह यह है कि बिल के पास होने तक वाट्सएप लोगों के निजी डेटा को न केवल इकट्ठा कर चुका होगा बल्कि जहाँ फायदा होगा वहाँ तक भी पहुँचा चुका होगा। ऐसे में इस बिल की प्रासंगिकता से कुछ खास हासिल होगा, लगता नहीं है। भारतीयों के डेटा का बाहर कैसा उपयोग होगा इसको लेकर भी अनिश्चितता का माहौल है। साफ है कि इस बारे में कोई कानून नहीं है और जरूरत है सबसे पहले प्राइवेसी और निजी डेटा प्रोटेक्शन की।
दरअसल हमारे देश में अभी भी अंग्रेजों के बनाए कानूनों की भरमार है। वक्त के साथ इन्हीं में बदलाव कर काम चलाने की हमारी आदत गई नहीं है। जबकि इक्कीसवीं सदी, तकनीकी और संचार क्रान्ति का जमाना है। सारा कुछ मुट्ठी में और एक क्लिक में होने के दावे का नया दौर। ऐसे में कोई पलक झपकते हमारी निजता को ही कब्जा ले, यह कहाँ की बात हुई? निजता चाहे वह डेटा में हो या अन्य तरीकों में, सुरक्षा बेहद जरूरी है।
गौर करना होगा कि हमारे सुप्रीम कोर्ट ने भी 2017 में पुट्टुस्वामी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के प्रकरण में ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था निजता का अधिकार हर भारतीय का मौलिक अधिकार है। तभी अदालत ने इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 यानी जीवन के अधिकार से जोड़ा था। सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला दिया और 1954 तथा 1962 में दिए गए फैसलों को पलटते हुए यह फैसला दिया था क्योंकि पुराने दोनों फैसलों में निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था।
वाट्सएप की नीयत पर शक होना लाजिमी है। 2016 में अमेरिकी चुनाव के वक्त फेसबुक का कैंब्रिज एनालिटिका स्कैंडल लोग भूले नहीं हैं। जबकि 2019 में इसराइली कंपनी पेगासस ने इसी वॉटसएप के जरिए हजारों भारतीयों की जासूसी की थी। इधर भारत में भी फेसबुक की भूमिका पर जब-तब सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में फेसबुक की मिल्कियत वॉट्सएप द्वारा खुलेआम फेसबुक और इससे जुड़ी कंपनियों से उपयोगकर्ताओं का डेटा साझा करने की बात समझनी होगी। हालांकि सफाई में वाट्सएप का कहना है कि नई प्राइवेसी पॉलिसी से इसपर कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि आप अपने परिवार या दोस्तों से कैसे बात करते हैं। लेकिन यह भी तो सच है कि जानकारी, संपर्क, हंसी-ठिठोली और मनमाफिक असली-नकली सूचनाओं को बिना रुकावट भेजने का प्लेटफॉर्म बना वाट्सएप का इस्तेमाल बहुत सारी व्यापारिक गतिविधियों के बढ़ावे के लिए भी हो रहा है। इसमें कई संवेदनशील जानकारियाँ भी होती होंगी। स्वाभाविक है कि यह देश की सीमाओं के बाहर न जाएँ।
साफ लग रहा है कि हमारे यहाँ प्राइवेसी से सम्बन्धित कानूनों की कमी है, यही वजह है कि वॉट्सएप और ऐसे ही प्लेटफॉर्म्स के लिए भारत जैसा विशाल देश आसान निशाना होते हैं। शायद हो भी यही रहा है। वॉट्सएप के ताजा नोटिफिकेशन से जहाँ विशेषज्ञों की चिंताएँ बढ़ी होंगी वहीं सरकार भी जरूर चिन्तित होगी। इस सबके बावजूद इतनी बारीकियों से बेखबर एक औसत भारतीय को भी सजग होना होगा ताकि वह ऐसे झाँसे में आने से बचे। इसके लिए बिना समय गंवाए तत्काल मिल जुलकर कोई कदम उठाया जाए जो हमेशा के लिए ऐसे विवादों को ही समाप्त कर दे ताकि भारत में सायबर दायरों की आड़ में पैठ बनाते विदेशी प्लेटफॉर्म अपनी हदों में ही रहे। हाँ, यहाँ हमारे दुश्मन ही सही चीन से नसीहत लेनी होगी जिसने शायद इसी वजह से ही विदेशी प्लेटफॉर्म्स को देश में घुसने ही नहीं दिया, सारा कुछ खुद का बनाया इस्तेमाल करता है। यकीनन चिंताएं सबकी बढ़ी हैं और एक यूज़र के तौर पर हमको, आपको सबको इससे चिंतित होना चाहिए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)