प्राथमिक विद्यालयों को खोलने की जल्दबाजी नही करनी चाहिए, ये घातक हो सकता है
कोरोना से युद्ध लड़ते हुए भारत ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है पर ९९ पर आउट हो जाना कही से भी समझदारी भरा निर्णय नही होगा | जब हम विश्वविद्यालय को खोलने...
कोरोना से युद्ध लड़ते हुए भारत ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है पर ९९ पर आउट हो जाना कही से भी समझदारी भरा निर्णय नही होगा | जब हम विश्वविद्यालय को खोलने...
कोरोना से युद्ध लड़ते हुए भारत ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है पर ९९ पर आउट हो जाना कही से भी समझदारी भरा निर्णय नही होगा | जब हम विश्वविद्यालय को खोलने के लिए चरणबद्ध तरीके से २२ फरवरी से खोलने जा रहे है तो मार्च में प्राथमिक या माध्यमिक को खोलने की जरुरत नहीं दिखाई पड़ती है |
हाई स्कूल और इंटर की परीक्षा होने जा रही है जो अपने आप में एक चैलेंज है और इसको सही तरीके से निपटा लेना एक बड़ी उपलब्धि होगी | पर प्राइमरी जिसमे कक्षा एक से लेकर पांच तक के विद्यार्थी है उनका विद्यालय खोलना कही से भी अच्छा निर्णय नहीं होगा |
बड़े बच्चो को तो हम मास्क और सेनीटाइजर के बारे में अच्छे से शिक्षित कर सकते है पर इन छोटे बच्चो को इस तरह के नियमों में अपने परिवार से अलग स्कूल में मनवा पाना बड़ा ही दुष्कर होगा |
जहाँ एक ओर ये बच्चे स्कूल के वातावरण में अपने आप को संक्रमण से नहीं बचा पायेंगे वही इनके माध्यम से इनके परिवार तक भी संक्रमण की लहर पहुच गयी तो फिर सब किये धरे पर पानी फिर जाएगा |
अभी वैक्सिनेसन सिर्फ बड़ो का हो रहा है और छोटे बच्चो के लिए वैक्सीन नही बनी है और अगर कुछ लोग कह भी रहे है तो पुरे विश्व में इसे अभी कही भी इस्तेमाल नहीं किया गया है | इस तरह हम उनको न सिर्फ असुरक्षित छोड़ देंगे बल्कि उनके कारण कोरोना का प्रसार भी हो सकता है |
ग्लोबल स्तर पर हुए कई शोध से ये साबित हुआ है की कोरोना ने बच्चो के मन पर नेगेटिव इम्पैक्ट डाला है | आज चाहे वो टीवी की खबर हो या फिर बड़ो की बातचीत सुनकर बच्चे लगातार डरे सहमे हुए है |
इन बच्चो को फिर से खुला छोड़ने के पहले उनके मन से न सिर्फ डर निकलना होगा बल्कि स्कूल में इस तरह का वातावरण बनाना होगा जहाँ वो अपनेआप को सुरक्षित महसूस कर सके | इन बच्चो के मन में अगर एक बार फिर से डर बैठ गया तो उसको निकल पान मुश्किल होगा |
इस कोरोना काल की अगर हम बात करे तो पुरे विश्व में एक अरब अस्सी करों के करीब बच्चे और युवा स्कूल से दूर हो गए थे और ज्यादातर बहुत समय से अपने शिक्षकों से भी नहीं मिले है | ऑनलाइन एजुकेशन का जो असर था वो प्राइवेट और नगरीय क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों तक ही सिमित था | गाँव में जहाँ बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी की समस्या थी वहां पर बच्चो को पढ़ने का मौका नहीं मिला |
अभी समय है की हम अपनी कमियों को पहचान कर डिजिटल डिवाइड को दूर करे और आपदा में अवसर तलाशे| इसी बहाने एक तरफ हम इंटरनेट का जाल गाँव में भी बिछा देंगे और उनको इस आपदा के समय सुविधा दे कर गाओं और शहरों के बीच की खाई को पाटने का काम भी होगा |