"हमारी दुनिया .. कल आज और कल"
डा.प्रविता त्रिपाठी स्त्री संतुलन ,सहनशीलता और सृजन का पर्याय है।एक बार स्त्री के रूप में खुद को देखिए,सम्पूर्ण स्त्रीतत्व का ...
डा.प्रविता त्रिपाठी स्त्री संतुलन ,सहनशीलता और सृजन का पर्याय है।एक बार स्त्री के रूप में खुद को देखिए,सम्पूर्ण स्त्रीतत्व का ...
डा.प्रविता त्रिपाठी
स्त्री संतुलन ,सहनशीलता और सृजन का पर्याय है।एक बार स्त्री के रूप में खुद को देखिए,सम्पूर्ण स्त्रीतत्व का स्वयं में बोध कीजिए आप समझेंगे की महज समर्पण की भावना के साथ जिंदगी जीना कितना कठिन और किस कदर महत्वपूर्ण है यदि हम सभी स्त्री रूप का सम्मान नही करते तो वह प्रकृति का अपमान है,हम का तात्पर्य।पुरुष वर्ग से ही नही,बल्कि कोई स्त्री दूसरी स्त्री की महत्ता नही समझती तो वह सही मायने में जीवन को महत्व नही दे रही है यह पाखंड के सिवाय कुछ और नही है हम सभी नवरात्रि में नौ दिन तक मां भगवती का बंधन करे और बाकी सारा समय स्त्री को दूसरी श्रेणी का नागरिक समझे। मातृ शक्ति को हर रूप में समानता देनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो संसार अशंतुलित होता है ।एक दिन संसार एक रस और एक नीरस बन जायेगा उस दिन की कल्पना कीजिए जब पृथ्वी पर केवल पुरुष होंगे,कोई रोएगा तो कोई आंसू पोछने के लिए किसी स्त्री मित्र,प्रेयसी,मां,पत्नी, का हाथ आगे ना आएगा फिर कोई कैसे कहेगा...मेरी ख्वाहिश है।'मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं मां से इस तरह लिपटू कि बच्चा हो जाऊं"
स्त्री है तो दुनिया में श्रृंगार बचा है,प्रेम का भाव बचा है,घृणा सिर नही उठा पाती फिर भी अफसोस हिंसाए बढ़ती जा रही है सोचना बस इतना है कि हम कैसा जीवन चाहते है,कैसी कुदरत चाहते है,जो स्त्री के बिना सोची जा रही है,मांगी जा रही है,हमारे द्वारा इच्छित भी है।
युगो युगों से मैं थी,या यूं कहें कि मेरी वजह से युग हुए।कायनात ने पीढ़ी आगे बढ़ा ने की क्षतमा महिला को ही दी है।पहले उसे देवी कहा जाता था,उस वक्त उनकी सलाह बहुत मायने नही रखती थी,महिला को देवी के स्थान पर बैठाकर भी उनके फैसले देव ही लिया करते थे,उनका कहना था कि जिस समाज में महिलाओं को सम्मान और गरिमा के साथ रखा जायेगा,उस समाज व घर में देवो का वास होगा ,उस सदी में भी महिला पर बंदिशे तो थी लेकिन फिर भी महिला एक स्थान जरूर था।वैदिक युग में महिला को सबसे ज्यादा पहचान मिली,उसका महत्व समझा गया,और वही से उसका विकास शुरू हुआ।
कहने को महिला ने आधुनिक युग में काफी विकास कर लिया है, आज वे शिक्षित भी है और अपने पैरो पर खड़ी भी है,अपने निर्णय खुद ले सकती है,लेकिन आज वे डरी हुई है उनके डर की वजह है उनका दामिनी होना देश के कई हिस्सों में हर उम्र की महिलाए है ,जिन्हे कभी अपने तो कभी गैर हवस का शिकार बना लेते है इतनी बुरी तरह से रौदते की वे जिंदगी में दोबारा कभी भी खड़ी नही हो पाती है,लेकिन फिर भी हम निराश नही है क्योंकि मुझे अधिकारों की आवाज उठाने का मौका मिला है,मैं लड़ सकती हूं मेरी आवाज इन मुस्किलो ने और बढ़ा दी है मैं इन चंद लोगो की वजह से डरकर नही बैठ सकती।आज महिलाएं घर से भी निकलती है, और हर क्षेत्र में सहभागिता भी करती है,उनकी खिलखिलाहट आज भी मासूम लगती है इन मुस्किल हालातो से गुजर कर भी महिला ने जीना सीख लिया है
"हम वो नही जो करते फिरे मंजिले तलाश।
हम चल पड़े तो पाव में मंजिल मचल पड़े।।"
आज शिक्षा के उजास (रोशनी)ने महिलाओं का समूचा जीवन ही बदला है एक समय था जब उनकी खुशियां घर की चार दिवारी तक ही सीमित थी वे घर की कोठरी के झरोखे से ही बाहरी दुनिया की खूबसूरती व गहराई मापने का प्रयास करती थी,घर की खिड़कियां उन्हें आने जाने वाले मौसम का पता देते थे और वही उनके समय के साक्षी भी होते थे लेकिन आज समय उनके साथ है, वे बेखौप होकर अपनी रान्हे चुन रही है।, उनके सपने भी हकीकत का रूप लेने लगे है,उनकी खुशियां परवान चढ़ने लगी है, सभी की चाहते मुखर हो रही है,इस बदलाव का आलम यह है कि भारत के अलावा अन्य देशों में भी इन साहसी महिलाओं ने चिकित्सा अंतरिक्ष,वैज्ञानिक,मांडलिंग में अपना कैरियर बनाकर यह साबित कर दिखाया कि अगर इरादे नेक है तो मंजिल मिल ही जाती है।
'बंद मुट्ठी में दुबका अरमानों का पंक्षी ।
भरना चाहता है परबाज अब खुले आसमा में।।"
महिलाओं की प्रगति को रोकना अब आसान नही है,वे सरहदों पर रहकर भी लोगो की रक्षा करती है और अंतरिक्ष में जाकर ग्रहों की खोज भी।बाधाएं तो सभी के जीवन में आती है,लेकिन उनसे हारकर बैठ जाना हम महिलाओं ने नही सीखा है बेटी बहन ,पत्नी ,मां होने के साथ साथ ना जाने कितने किरदार वे निभा रही है,और खुलकर जिंदगी जी रही है,उनका कहना है कि वो मैं थी और मैं ही रहूंगी। आइए आज से हम सभी कोशिश कर स्त्री शक्ति का सम्मान करने की ताकि दुनिया असंतुलित न हो, जिंदगी का मूल्य बचा रहे, हैं ना सिर्फ जिए,वल्कि जीवन का अर्थ भी समझ सके।