वैश्विक पटल पर वैचारिक विमर्श के लिये भारतीय चिंतन पर लेखन आवश्यक: दत्तात्रेय होसबाले -आरएसएस के मा.सरकार्यवाह ने ''वैदिक सनातन अर्थशास्त्र'' पुस्तक का किया लोर्कापण

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वैश्विक पटल पर वैचारिक विमर्श के लिये भारतीय चिंतन पर लेखन आवश्यक: दत्तात्रेय होसबाले    -आरएसएस के मा.सरकार्यवाह ने वैदिक सनातन अर्थशास्त्र पुस्तक का किया लोर्कापण


लखनऊ, 21 अगस्त। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह मा. दत्तात्रेय होसबाले जी ने शनिवार को लोकहित प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक ''वैदिक सनातन अर्थशास्त्र'' का लोर्कापण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि वैश्विक पटल पर भारतीय चिंतन और मनीषा को वैचारिक विमर्श का विषय बनाने के लिये लेखन कार्य अनवरत बढ़ते रहना चाहिये।

संघ के सरकार्यवाह मा.दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि वर्तमान कालखंड में सम्पूर्ण विश्व के अंदर विभिन्न विषयों पर आवश्यक वैचारिक विमर्श चल रहा है। यह अच्छी बात है, इसे चलते रहना भी चाहिये। ऐसे समय में भारत के आधारभूत चिंतन पर भी विविध विषयों में लेखन कार्य होते रहना चाहिये, ताकि भारतीय चिंतन भी दुनिया के विश्वविद्यालयों व थिंक टैंक के बीच चर्चा के विषय बन सकें।

उन्होंने अपने संबोधन में इस पर विशेष बल दिया कि भारतीय चिंतन व मनीषा पर लिखते समय बदली वैश्विक परिस्थितियों के समन्वय पर भी ध्यान देना चाहिये। इसके लिये उन्होंने 12वीं से 14वीं शताब्दी के स्मृतिकारों की भी चर्चा की और कहा कि उस समय भारत की लगभग हर भाषा में भक्ति के नाम पर साहित्य की रचना हुई, जो स्मृति की तरह माने गये। उन्होंने कहा कि उक्त रचनाओं में भारत के प्राचीन चिंतन को तत्कालीन परिस्थितियों के साथ सरल भाषा में दर्शाया गया है।

संघ के सरकार्यवाह जी ने अपने संबोधन के दौरान इस बात पर चिंता भी व्यक्त की कि मुगल काल के बाद भारत में स्मृतियों के लिखने की व्यवस्था ध्वस्त सी हो गई। इस परंपरा को पुनः गतिशील करने पर उन्होंने बल दिया।

  • पूर्व में पुस्तक के लेखक और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी में पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने पुस्तक के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि ''वैदिक सनातन अर्थशास्त्र'' पुस्तक को पांच अध्यायों में लिखा गया है। इसमें वैदिक कालीन वित्तीय व्यवस्था, मूल्य नियंत्रण सिद्धान्त, विनिमय के सिद्धान्त और आजीविका के संदर्भ में ग्रामीण चिंतन आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।

प्रो. एपी तिवारी ने ''वैदिक सनातन अर्थशास्त्र'' पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की और इसे देश के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की वकालत की। लोकहित प्रकाशन के निदेशक सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने अंत में आभार व्यक्त किया।

पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में संघ के सह क्षेत्र संघचालक मा. रामकुमार जी, प्रांत प्रचारक श्रीमान कौशल जी, लोकहित प्रकाशन की मातृ संस्था राष्ट्रधर्म प्रकाशन के निदेशक श्रीमान मनोजकांत, प्रशांत भाटिया, रमेश गड़िया, घनश्याम शाही और क्षेत्र प्रचार प्रमुख नरेंद्र जी , सह प्रान्त प्रचार प्रमुख डॉ दिवाकर अवस्थी, डॉ लोकनाथ जी समेत तमाम लोग भी उपस्थित रहे, आभार प्रदर्शन संस्थान के निदेशक श्रीमान सर्वेश कुमार द्विवेदी जी ने किया।

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