थिएटर के साथ अगर सोशल मीडिया को मिला दिया जाए तो रोजगार के अवसर बढ़ जाएंगे: प्रोफेसर गोविंद जी पांडे

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थिएटर के साथ अगर सोशल मीडिया को मिला दिया जाए तो रोजगार के अवसर बढ़ जाएंगे: प्रोफेसर गोविंद जी पांडे

रंगमंच का थिएटर एक ऐसी विधा है जो इंसान के जीवन के विभिन्न रंगों को मंच पर लाकर लोगों को हंसने रोने खुश होने का जरिया बन जाता है रंगमंच आज भले ही सिनेमा के कारण बैकग्राउंड में है लेकिन सिनेमा का जो आधार है वह रंगमंच ही है कहा जाता है कि बिना आत्मा के मनुष्य का होना ना होना पता नहीं चलता इसी तरह अगर एक कलाकार रंगमंच से मजा नहीं है तो उसकी एक्टिंग में वह परफेक्शन नहीं दिखाई देता जो होना चाहिए उक्त बातें प्रोफ़ेसर गोविंद पांडे ने एनएसडी बनारस में सोशल मीडिया और रंगमंच पर चल रही एक वर्कशॉप में कहीं।

इस वर्कशॉप में अभिनय की बारीकियां सीख रहे छात्र राहुल अरोड़ा ने कहा कि थिएटर या रंगमंच एक ऐसी विधा है जो मात्र मंच तक सीमित न रहकर सामाजिक परिवेश में वास्तविकता में जीवन कैसे जिया जाए उसकी शिक्षा प्रदान करता है एक अभिनेता अभिनय के माध्यम से समाज में दिशा देने का कार्य कर सकता है।

सामाजिक सोच को किस और परिवर्तित किया जाएगा या मोड़ा जा सके । सिनेमा नृत्य डांस रंगमंच या जो भी प्रदर्शन करने योग्य कलाए हैं यह समाज में मौजूद व्यक्तियों के मस्तिष्क में एक तरह से ब्रश का कार्य करती है

अर्थात एक पेंटिंग बनाने का कार्य करती है ।

हम जिस तरह का कंटेंट जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं सामाजिक परिवेश में लोग उसी डायरेक्शन में सोचना, देखना, सुनना ,चलना, पसंद करते हैं ।

हम अभिनय के माध्यम से एक सकारात्मक समाज का निर्माण करने में हम लोग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं

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