सामूहिक प्रयास से पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की अभिकल्पना साकार होगी- प्रो. मुकेश पाण्डेय

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सामूहिक प्रयास से पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की अभिकल्पना साकार होगी- प्रो. मुकेश पाण्डेय

बुविवि झांसी और आईटीएम विवि ग्वालियर ने संयुक्त रूप से आयोजित किया पर्यावरण एवं पत्रकारिता पर राष्ट्रीय वेबीनार

झांसी। संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष 2022 में पर्यावरण दिवस की थीम 'केवल एक पृथ्वी' रखी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 'एक पृथ्वी एक सूर्य' के महत्व पर प्रकाश डाला है। भारतीय संस्कृति सदैव से ही वसुधैव कुटुंबकम के दर्शन को लेकर अग्रसर रही है। इन सब से यही भाव परिलक्षित होता है कि पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास की अभिकल्पना सामूहिक प्रयास से ही संभव है। उक्त विचार बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुकेश पाण्डेय ने भास्कर जनसंचार और पत्रकारिता संस्थान और आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन द्वारा 'पर्यावरणीय मुद्दे एवं पत्रकारिता: अवसर एवं चुनौतियां' विषय पर आयोजित एक दिवसीय वेबिनार में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग, ग्रीनहाउस गैसेस, वाटर शॉर्टेज और डिफोरेस्टेशन के कारण पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इसके साथ ही हीटवेव, क्लाउड बर्स्टिंग, फ्लड, ड्रॉट, साइक्लोन, बर्निंग फॉरेस्ट आदि के कारण लगभग एक मिलीयन प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। पेड़ हमारी प्रकृति में ऑक्सीजन जरनेटर का कार्य करते हैं। भारतीय संस्कृति भी प्रकृति के प्रति अनुराग और संरक्षण के लिए जानी जाती है। जहां सभी जानवरों और पशु पक्षियों, नदियों, पहाड़ों आदि को देवता के रूप में पूजा जाता है। मीडिया छात्रों एवं पत्रकारों का दायित्व है की वे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को आमजन के सामने लेकर आएं। अध्यक्षता कर रहे आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के कुलपति प्रोफेसर शेर सिंह भाखर ने कहा की जिस प्रकार से पर्यावरण के मुद्दे आज पब्लिक डिसकोर्स का भाग नहीं है यह आने वाले समय के लिए बहुत बड़ा संकट है। मीडिया इसमें जागरूकता की भूमिका निभा सकता है।




मीडिया संस्थानों को अपने छात्रों को पर्यावरणीय पत्रकारिता के लिए तैयार करना होगा। शुभस्यं शीघ्रम ही इस समस्या का समाधान है। मुख्य वक्ता बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ के स्कूल ऑफ़ मीडिया एंड कम्युनिकेशन के डीन प्रोफेसर गोविंद जी पांडे ने पंचभूतों- वायु,अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इसमें एक छोटे तत्व 'मानव हस्तक्षेप' ने सभी के संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया है। उन्होंने कहा कि मानव विकास की अनियंत्रित गतिविधियां आज पर्यावरण संरक्षण के लिए चुनौती बन गई है। उन्होंने गांधीजी के विचारों को रखते हुए कहा कि पृथ्वी द्वारा उपलब्ध संसाधन हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। लेकिन हमारी लालच को पूरा करने में अक्षम है। उन्होंने पर्यावरण के मुद्दों को लेकर फिल्मों के दृष्टिकोण को रखा। उन्होंने फिल्म दो बीघा जमीन के माध्यम से किसानों के मजदूर बनने, पलायन, अनियंत्रित विकास आदि की समस्याओं का विश्लेषण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि मीडिया एथिक्स पर चर्चा होनी चाहिए लेकिन वर्तमान में टीआरपी और मीडिया में जगह सर्वमान्य सिद्धांत बन गए हैं। उन्होंने आईएएस परीक्षा में मीडिया विषय को शामिल किए जाने पर जोर दिया। देहरादून विश्वविद्यालय, उत्तराखंड की स्कूल ऑफ इन्वायरमेंट नेचुरल रिसोर्सेज की प्रोफेसर कुसुम अरुणाचलम ने विशिष्ट अतिथि के रूप में सहभागिता की। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड क्षेत्र में हाल ही में जिस प्रकार से आधुनिक निर्माण हुआ है उससे कई समस्याएं आ रही हैं। सड़कों के चौड़ीकरण से लैंडस्लाइड की संख्या बढ़ी है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पर्यावरण से संबंधित समाचारों को केवल 3.5 प्रतिशत स्थान दिया जा रहा है आवश्यकता इसे 10% किए जाने की है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों और अकादमी क्षेत्रों में लगे विशेषज्ञों का काम शोध करना है परंतु नीति निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि वह पर्यावरण को लेकर सकारात्मक भूमिका निभाए। युवा पत्रकारों को पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को जनता के सामने लाना चाहिए जिससे वह जागरूक हो सके। उन्होंने 2014 में गठित एनजीटी की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि अब कई पर्यावरणीय मुद्दों को समय रहते निस्तारित किया जा रहा है। इसके पूर्व पत्रकारिता विभाग के सहायक आचार्य डॉ कौशल त्रिपाठी ने सभी अतिथियों का स्वागत कर विषय की प्रस्तावना रखी। संचालन आईटी यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष डॉ मनीष जैसल ने किया एवं आभार सहायक आचार्य भरत कुमार ने दिया। अमीषा शर्मा एवं रिद्धि सिरोठिया द्वारा अतिथियों के परिचय का वाचन किया गया। वेबीनार में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ, दून विश्वविद्यालय देहरादून, के साथ ही देश भर के अनेक विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं एवं शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया।

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