थ्री-डी प्रिंटिंग की तकनीक ने नई ऊंचाइयों के मानक तय किएः प्रो0 कमल चोपड़ा

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थ्री-डी प्रिंटिंग की तकनीक ने नई ऊंचाइयों के मानक तय किएः प्रो0 कमल चोपड़ा

अयोध्या: डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग तथा ललित कला विभाग के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को ’प्रिंटिंग ऐज़ ए कॅरियर‘ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विभाग के सभागार में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वल्र्ड प्रिंट कम्युनिकेशन फोरम के अध्यक्ष एवं आॅल इंडिया फेडरेशन आॅफ मास्टर प्रिंटर के पूर्व अध्यक्ष तथा फोयल प्रिंटर के प्रबंध निदेशक प्रो0 कमल चोपड़ा रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कला व मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो0 आशुतोष सिन्हा ने की। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रो0 कमल चोपड़ा ने कहा कि प्रिंट तकनीक लिपि के अविष्कार से काफी पहले की है। संचार विधा से मानव सभ्यता विकसित हुई। पेड़ के पत्तों, तनों एवं शाखाओं पर की गई चित्रकारी प्राचीन संचार के सबसे पुख्ता प्रमाण हैं।

कार्यक्रम में प्रो0 कमल ने कहा कि भारत की सबसे पुरानी सभ्यता के विकास का वर्णन कश्मीर से मिलता है। जापान, चीन सहित अन्य देशों में प्रिंट की तकनीक का अविष्कार हुआ। उन्होंने ने कहा की छपाई एक ऐसी विधा है जिससे कोई व्यक्ति अछूता नहीं है। विश्व भर में अब तक जितना ज्ञान विकसित एवं प्रसारित हुआ उसका श्रेय मुद्रण को ही जाता है। प्रो0 चोपड़ा ने कहा कि संचार तकनीक का प्रयोग करना अच्छी बात है लेकिन उसकी गुलामी करना ठीक नहीं है।

शरीर से उन्नत मशीन कोई हो ही नहीं सकती जितना इसका प्रयोग करेंगे उतना ही बेहतर निष्कर्ष की तरफ बढ़ेंगे। पुस्तकों का अध्ययन जानकारी प्राप्त करने का सबसे अच्छा विकल्प है। प्रो0 कमल ने बताया कि आज के समय में थ्री-डी प्रिंटिंग की तकनीक ने नई ऊंचाइयों के मानक तय कर दिए हैं। वर्तमान समय में दुनिया में सर्वाधिक प्रिंटर्स भारत में है इसकी संख्या लगभग ढाई लाख के करीब है। लेकिन विश्व भर का सर्वाधिक कार्य अमेरिका द्वारा किया जाता है क्योंकि उनकी तकनीक काफी बेहतर है। कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वर्तमान में ग्राफिक्स कम्युनिकेशन का प्रचलन काफी बढ़ रहा है। कहा जाता है कि कम्युनिकेशन ही प्रिंटिंग है।

कार्यक्रम में कला मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो0 आशुतोष सिन्हा ने कहा कि प्रिंटिंग सर्वव्यापी है। ज्ञान के प्रभाव को बढ़ाने का कार्य प्रिंटिंग ने किया है। वैदिक काल में लिपि का विकास हुआ। पहले लोगों में सुनकर याद करने की क्षमता बहुत अधिक थी।और वे इसका उपयोग अपने शोध में कर लेते थे। प्रिंटिंग के बाद लोगों में संचार बढ़ा है। प्रिंटिंग में काफी विकल्प है तकनीक ने अपना रास्ता ढूंढना है और स्वयं को तैयार करना है।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि फोयल प्रिंटर जालंधर के अश्वनी गुप्ता रहे। कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत एमसीजे समन्वयक डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी द्वारा किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं कुलगीत से किया गया। अतिथियों का स्वागत स्मृति एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 चतुर्वेदी ने किया।

धन्यवाद ज्ञापन ललित कला विभाग की शिक्षिका सरिता द्विवेदी द्वारा किया गया। इस अवसर पर अर्थशास्त्र एवं ग्रामीण विकास विभागाध्यक्ष प्रो0 विनोद कुमार श्रीवास्तव, डॉ0 आरएन पांडे, डॉ0 अनिल कुमार विश्वा, डॉ0 सरिता सिंह, डॉ0 रीमा सिंह, सुभाष सिंह, शरद यादव, दिनकर मिश्र, प्रगति ठाकुर, शालिनी निषाद, ज्योति निषाद, सर्वेश द्विवेदी, गरिमा त्रिपाठी, शिवानी पाण्डेय, त्रिपदा त्रिपाठी, विजय सिंह, शैलेन्द्र यादव, आदर्श मिश्र, निलेश द्विवेदी, सौरभ शुक्ला, अभिषेक पाण्डेय, सुधांशु शुक्ल सहित सहित ललित कला एवं योग के छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

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