भारतीय इतिहास नारियों के योगदान की गाथाओं से समृद्ध हैः कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल
अयोध्या। डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के प्रौढ एवं सतत् शिक्षा विभाग तथा हिन्दी भाषा एवं प्रयोजन मूलक विभाग और क्षेत्रीय भाषा अध्ययन केन्द्र...
अयोध्या। डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के प्रौढ एवं सतत् शिक्षा विभाग तथा हिन्दी भाषा एवं प्रयोजन मूलक विभाग और क्षेत्रीय भाषा अध्ययन केन्द्र...
अयोध्या। डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के प्रौढ एवं सतत् शिक्षा विभाग तथा हिन्दी भाषा एवं प्रयोजन मूलक विभाग और क्षेत्रीय भाषा अध्ययन केन्द्र तथा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की भूमिका” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन रविवार को श्रीराम शोध-पीठ में किया गया।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया के कुलपति प्रो0 संजीत कुमार गुप्ता ने कहा कि देश को स्वतंत्रता दिलाने में मातृ शक्ति का विशेष योगदान रहा है। वर्तमान में भी महिलाओं ने अपने मातृ शक्ति का परिचय दिया है। कुलपति ने कहा कि हमारा जन्म उस देश में हुआ है जहां दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती की उपासना होती है। उन्होंने कहा कि जिस समय भारत में कुरीतियों एवं कुप्रथाओं का बोलबाला था उस समय राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती जैसे महापुरूषों ने नारियों के उत्थान का प्रयास किया।
संगोष्ठी में कुलपति प्रो0 गुप्ता ने कहा कि हमें अहिल्याबाई, गार्गी, मैत्री, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, बेगम हजरत के इतिहास को पढ़ना चाहिए जिन्होंने विषम परिस्थियिों में अपने प्रयासों से समाज में नई अलख जगाई है ये सभी नारियां हमारे देश में पूजनीय है और सामाजिक समरसता का भाव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता है। उन्होंने कहा कि दलित समाज की स्त्रियों, आदिवासी और वनवासी महिलाओं का भी हमारे देश में बहुत योगदान रहा है।
असहयोग आंदोलन, भारत छोड़ों आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम कभी सफल न होता अगर हमारी माता बहने साथ नही होती। उन्होंने कहा कि सुचेता कृपलानी, कस्तूरबा गांधी, विजयलक्ष्मी पंडित और बहुत सी महिलाओं ने स्वतत्रता संग्राम में महती भूमिका निभाई है। कुलपति ने कहा कि हमारी संस्कृति में महिलाओं का नाम पुरूषों से पहले आता है जैसे सियाराम व राधाकृष्ण। कुलपति प्रो0 गुप्ता ने कहा कि हमारे देश के महापुरूषों के पीछे उनकी माताओं का विशेष योगदान रहा हैं चाहे विवेकानंद की माॅ भुवनेश्वरी देवी हो या शिवाजी की माॅ जीजाबाई। ऐसी मातृ शक्तिओं का योगदान कभी भुलाया नही जा सकता।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रही अवध विवि की कुलपति प्रो0 प्रतिभा गोयल ने कहा कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। वह माॅ ही है जो अपने बालक को क्रांतिकारी एवं योद्धा बनाती है। उन्होंने शकुन्तला को स्मरण करते हुए कहा कि बचपन में उन्होंने अपने पुत्र भरत को निडर बनाया। इसी वीर बालक के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा। संगोष्ठी में कुलपति प्रो0 प्रतिभा ने कहा कि हमारे देश का इतिहास बहुत समृद्ध है।
गुरू गोविन्द सिंह की माता ने गुरू गोविन्द सिंह का निर्माण किया और उनमें अच्छे विचार डाले। कुलपति ने कहा कि हमारा देश बलिदानों की भूमि है जिसमें महिलाओं का भी इतिहास सघर्षमय रहा है। 1857 की क्रांति में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम भुलाया नही जा सकता। महात्मा गांधी को कस्तूरबा गांधी ने प्ररित किया। सावित्री बाई फूले ने दलित महिलाओं के उत्थान के लिए देश में नई आशा की किरण दिखाई। वही लक्ष्मी सहगल ने सामाजिक समरसता लाने का प्रयास किया। कुलपति प्रो0 गोयल ने कहा कि हमारे देश का इतिहास नारियों के अथक योगदान की गाथाओं से भरा पड़ा है। इन सभी नारियों के इतिहास को जानना हम सभी भारतीयों का कर्तव्य है।
संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की प्रधान संपादक अमिता दूबे ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में उन महिलाओं का योगदान अविस्मरणीय रहेगा। जिन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में प्रतिभाग किया और अपनी लगन से ऐसी क्रांति का स्वर मुखरित किया जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली। उन्होेने कहा कि कस्तूरबा गांधी, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, सावित्री बाई फूले जैसी तमाम महिलाओं ने सकारात्मक सोच से देश को नई दिशा दी। संगोष्ठी के स्वागत उद्बोधन में प्रौढ एवं सतत् शिक्षा विभागाध्यक्ष व संगोष्ठी के संयोजक डाॅ0 सुरेन्द्र मिश्र ने दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में महिलाओं की महती भूमिका रही है। महान पुरूषों के पीछे माताओं का हाथ रहा है। हर क्षेत्र में महिलाओं ने बढ़चढ कर हिस्सा लिया है। आज सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक क्षेत्रों में महिलाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
संगोष्ठी का शुभारम्भ माॅ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया। अतिथियों का स्वागत पुष्पगुच्छ, स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। संगोष्ठी का संचालन डाॅ0 प्रत्याशा मिश्रा व डाॅ0 अंकित मिश्र ने किया। संगोष्ठी में प्रो0 आशुतोष सिन्हा, प्रो0 एसएस मिश्र, प्रो0 नीलम पाठक, प्रो0 अशोक कुमार राय, प्रो0 गंगा राम मिश्र, प्रो0 अनूप कुमार, प्रो0 शैलेन्द्र वर्मा, डाॅ0 अनिल कुमार, डाॅ0 सुन्दर लाल त्रिपाठी, डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, छत्तीसगंढ विश्वविद्यालय से डाॅ0 सांत्वना पाण्डेय, डाॅ0 रामबाबू यादव, डाॅ0 मनीषा सिंह, डाॅ0 सुमनलाल, डाॅ0 स्वाति सिंह, डाॅ0 अनिल कुमार सिंह, डाॅ0 अंशुमान पाठक, डाॅ0 रामजी सिंह, डाॅ0 अनुराग पाण्डेय, इंजीनियर अनुराग सिंह, इंजीनियर पीयूष राय, डाॅ0 शिवांश कुमार, डाॅ0 आरएन पाण्डेय, डाॅ0 अनिल कुमार विश्वा, शालनी पाण्डेय, डाॅ0 प्रतिभा त्रिपाठी, डाॅ0 सरिता पाठक, विनीता पटेल सहित बड़ी संख्या में शिक्षक एवं शोधार्थी मौजूद रहे।