कोरोना काल में बेसारों का सहारा बना लखनऊ विश्वविद्यालय, अब तक 47 छात्रों की ली जिम्मेदारी

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कोरोना काल में बेसारों का सहारा बना लखनऊ विश्वविद्यालय, अब तक 47 छात्रों की ली जिम्मेदारी

कोरोना महामारी हम सबके जीवन में आने वाली सबसे बड़ी आपदा के रूप में पिछले 1 साल में उभर कर आई है। इस महामारी के चलते विश्व भर में करोड़ों लोग शारीरिक, मानसिक व आर्थिक मुश्किलों से हर वक्त गुजर रहे हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय परिवार भी इससे अछूता नहीं रहा है। पिछले 1 साल में विश्वविद्यालय परिवार से जुड़े लोगों ने अपने व अपनों को खोया। इसी संदर्भ में कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय की प्रेरणा से विश्वविद्यालय की छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर पूनम टंडन ने 19 जून 2021 को विश्वविद्यालय के सभी अध्यापकों, पूर्व अध्यापकों, प्रशासनिक अधिकारियों से एक पत्र के जरिए अपील की कि वे कोरोना महामारी के चलते अपने माता या पिता या दोनों को खोने वाले विश्वविद्यालय के छात्रों की जिम्मेदारी लेने के लिए आगे बढ़े जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

मात्र 1 हफ्ते के अंदर अंदर सभी 47 छात्रों की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के शिक्षकों, पूर्व शिक्षकों, एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने ले ली है। इन छात्रों को गोद लेने वालों में स्वय प्रदेश के उपमुख्यमंत्री एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के वाणिज्य विभाग के प्रोफेसर दिनेश शर्मा जिन्होंने एम कॉम की छात्रा सुनिधि श्रीवास्तव तथा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार राय ने बी बी ए की छात्रा दीक्षा अग्रवाल को गोद लिया।

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश की राज्यपाल एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति महामहिम श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने यह निर्देशित किया कि इन छात्रों की न सिर्फ आर्थिक ज़िम्मेदारी उठाई जाय बल्कि उनके सर्वांगीण व समेकित विकास में अपना योगदान किया जाय। विश्वविद्यालय के कुल 39 शिक्षक, 6 पूर्व शिक्षक और 3 प्रशासनिक अधिकारियों ने छात्रों की जिम्मेदारी उठाई है।

लाभान्वित छात्रों में से एक छात्रा ज्योति यादव है, ने इस महामारी में अपने पिता को खोया। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने उन्हें ईमेल के जरिए संपर्क किया और उनके दुख में भागीदार होते हुए उन्हें सभी प्रकार के सहायता एवं सहयोग देने का वादा किया। ज्योति ने सोशल मीडिया पर उन्हें धन्यवाद देते हुए यह कहा कि वो और उसका पूरा परिवार विश्वविद्यालय परिवार का आभारी है क्योंकि उनकी मुश्किल समय में विश्वविद्यालय ने उनका हाथ नहीं छोड़ा।


अराधना मौर्या

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