भाषा विश्विद्यालय: दीक्षोत्सव के अवसर पर आंगनवाड़ी केंद्रों का मूल्यांकन
माननीय कुलाधिपति एवं राज्यपाल उत्तर प्रदेश, श्रीमती आनंदीबेन पटेल की प्रेरणा से ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ ने दीक्षोत्सव के...


माननीय कुलाधिपति एवं राज्यपाल उत्तर प्रदेश, श्रीमती आनंदीबेन पटेल की प्रेरणा से ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ ने दीक्षोत्सव के...
माननीय कुलाधिपति एवं राज्यपाल उत्तर प्रदेश, श्रीमती आनंदीबेन पटेल की प्रेरणा से ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ ने दीक्षोत्सव के अवसर पर सामाजिक उत्तरदायित्व को और प्रबल करते हुए गोद लिए गए गाँवों के आंगनवाड़ी केंद्रों का व्यापक मूल्यांकन किया। यह कार्यक्रम माननीय कुलपति प्रो. अजय तनेजा के नेतृत्व में संपन्न हुआ।
निर्णायक मंडल में विश्वविद्यालय की प्रथम महिला श्रीमती मोनिका तनेजा, राष्ट्रीय सेवा योजना की समन्वयक डॉ. नलिनी मिश्रा तथा इतिहास विभाग के प्राध्यापक डॉ. राजकुमार सिंह शामिल रहे। मंडल ने विभिन्न आंगनवाड़ी केंद्रों का भ्रमण कर वहाँ की व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया।
मूल्यांकन के प्रमुख मानदंडों में केंद्रों की स्वच्छता व्यवस्था, बच्चों की नियमित उपस्थिति, पोषण और स्वास्थ्य संबंधी पहल, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ शौचालय तथा बच्चों के समग्र विकास हेतु उपलब्ध कराए जा रहे शैक्षिक संसाधन शामिल थे। इस अवसर पर बच्चों की दिनचर्या, खेलकूद की गतिविधियों और पोषण आहार (सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन) की भी समीक्षा की गई।
निर्णायक मंडल के सदस्यों ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से संवाद स्थापित कर उनके कार्यों की सराहना की और सुधार की संभावनाओं पर मार्गदर्शन दिया। उन्होंने यह भी कहा कि आंगनवाड़ी केंद्र ग्रामीण स्तर पर शिक्षा और पोषण का पहला आधार हैं, जिनकी गुणवत्ता सुधारने से समाज के भविष्य को मजबूत दिशा मिलती है।
कुलपति प्रो. अजय तनेजा इस कार्य की सरहाना करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय का प्रयास है कि गोद लिए गए गाँवों के आंगनवाड़ी केंद्र आदर्श केंद्र बनें, ताकि अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकें। उन्होंने इस पहल को विश्वविद्यालय की सामाजिक प्रतिबद्धता का हिस्सा बताते हुए विद्यार्थियों से भी आह्वान किया कि वे ग्रामीण विकास कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
दीक्षोत्सव के अवसर पर आयोजित यह मूल्यांकन न केवल आंगनवाड़ी केंद्रों की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने की दिशा में एक सार्थक पहल है, बल्कि यह ग्रामीण बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा।