उर्दू भाषा को आधुनिक तकनीक की आवश्यकताओं से जोड़ना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत : प्रोफेसर ख़्वाजा इक़रामुद्दीन

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उर्दू भाषा को आधुनिक तकनीक की आवश्यकताओं से जोड़ना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत : प्रोफेसर ख़्वाजा इक़रामुद्दीन
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ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग में "उर्दू भाषा और आधुनिक तकनीक" विषय पर अटल हॉल में एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अजय तनेजा ने की। स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष प्रोफेसर फ़ख़रे आलम ने दिया। प्रोफेसर फ़ख़रे आलम ने कहा कि यह विषय समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है क्योंकि उर्दू सदियों से ज्ञान, साहित्य और संस्कृति की संवाहक रही है। आज इसे नई पीढ़ी तक सुलभ बनाने और वैश्विक स्तर पर सक्रिय रखने के लिए तकनीक के साथ जोड़ना ज़रूरी है

अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो. अजय तनेजा ने कहा कि यह खुशी की बात है कि विभाग इतना महत्वपूर्ण और समकालीन विषय लेकर सेमिनार कर रहा है। आज कोई भी भाषा तकनीक के बिना आगे नहीं बढ़ सकती। उन्होंने कहा कि उर्दू भाषा गंगा-जमुनी तहज़ीब की प्रतिनिधि है, इसलिए इसे निरंतर बढ़ावा देना आवश्यक है।

मुख्य अतिथि प्रो. ख़्वाजा मोहम्मद इक़रामुद्दीन (जेएनयू, नई दिल्ली) ने कहा कि उर्दू में वैज्ञानिक विषयों के अनुवाद और पाठ्यपुस्तकों की तैयारी नई पीढ़ी को वैश्विक वैज्ञानिक प्रगति से जोड़ने का साधन बन रही है। उन्होंने कहा कि विभिन्न संस्थान और शैक्षिक संगठन उर्दू में वैज्ञानिक शब्दावली और अकादमिक सामग्री विकसित कर रहे हैं, जो भविष्य के लिए उत्साहजनक है। उनके अनुसार किसी भी भाषा की प्रगति और अस्तित्व अब इस बात पर निर्भर करता है कि वह विज्ञान और तकनीक से कितना जुड़ पाती है। यदि उर्दू विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में समय की मांग पूरी करेगी, तो यह एक मज़बूत और वैश्विक भाषा के रूप में उभरेगी।

प्रोफेसर अब्बास रज़ा नय्यर ने कहा कि उर्दू में नई वैज्ञानिक शब्दावली, गुणवत्तापूर्ण अनुवाद और ऑनलाइन डेटाबेस की तत्काल ज़रूरत है ताकि विद्यार्थी और शोधकर्ता आसानी से वैज्ञानिक और सामाजिक विज्ञानों तक पहुँच बना सकें। उन्होंने ज़ोर दिया कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) में उर्दू को सक्रिय करने से यह भाषा वैश्विक शोध और ज्ञान की धारा में शामिल हो सकती है।

प्रोफेसर अशरफ़ी ने कहा कि आज वही भाषाएँ तरक्की करती हैं जो तकनीक के साथ कदम मिलाकर चलती हैं। उर्दू को केवल साहित्य तक सीमित करना अन्याय होगा। इसे मोबाइल एप्लिकेशन, ई-लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया और डिजिटल लाइब्रेरीज़ के माध्यम से बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

डॉ. जावेद अख़्तर मज़हरुलहक़ (अरबी-फ़ारसी यूनिवर्सिटी, पटना) ने कहा कि डिजिटल युग में भाषाओं की प्रगति तभी संभव है जब उन्हें कंप्यूटर, इंटरनेट और AI की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जाए। उर्दू की लचक और विस्तार इसे आधुनिक ज़रूरतों को पूरा करने के क़ाबिल बनाते हैं। उन्होंने ई-बुक्स, ऑनलाइन शब्दकोश और डिजिटल सामग्री तैयार करने पर बल दिया।

इस अवसर पर प्रो. सोबान सईद, डॉ. नीरज शुक्ला, डॉ. आरिफ़ अब्बास, डॉ. अब्दुल हफ़ीज़, डॉ. आज़म अंसारी, डॉ. मुनव्वर हुसैन, डॉ. सिद्धार्थ सदीप और डॉ. मूसा रज़ा समेत कई शिक्षक और बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ मौजूद रहे।

सेमिनार का संचालन डॉ. ज़फ़रुन नक़ी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मोहम्मद अकमल ने प्रस्तुत किया। इस आयोजन में संयोजक की भूमिका डॉ. मर्तज़ा अली अतहर ने निभाई।

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