विकासवाद को सांस्कृतिक संदर्भ में भी देखने की जरूरत : प्रो. पी.एच. मोहम्मद,

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विकासवाद को सांस्कृतिक संदर्भ में भी देखने की जरूरत : प्रो. पी.एच. मोहम्मद,
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प्रयागराजं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के मानवविज्ञान विभाग और आई.क्यू.ए.सी. प्रकोष्ठ के तत्वाधान में बृहस्पतिवार को “विकासवाद, सांस्कृतिक अनुकूलन और बहुसांस्कृतिक समाज” विषय पर विशेष व्याख्यान हुआ। इसके मुख्य वक्ता प्रो. पी.एच. मोहम्मद, समाजशास्त्र विभाग, डीन कला संकाय, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद रहे।

इस मौके पर प्रो. पीएच मोहम्मद ने पृथ्वी के उद्भव से लेकर मानव के शारीरिक और सांस्कृतिक उद्विकास की जीवाश्म, अस्थि विकास, लोकोमोशन के माध्यम से चर्चा की। व्याख्या की। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में ‘सांस्कृतिक अनुकूलन’ का अर्थ केवल परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि यह एक सृजनात्मक प्रक्रिया है जिसमें समाज अपनी पहचान को बनाए रखते हुए नई चुनौतियों को आत्मसात करता है। बहुसांस्कृतिक समाजों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे विविधता को संघर्ष नहीं अपितु बल्कि शक्ति के रूप में देखते हैं। उन्होंने आगे कहा कि विकासवाद को केवल एक जैविक दृष्टिकोण से नहीं अपितु सांस्कृतिक संदर्भ में भी देखना आवश्यक है। जब हम बहुसांस्कृतिक समाजों की बात करते हैं तो यह समझना जरूरी है कि प्रत्येक संस्कृति एक निरंतर संवाद में है और वह अन्य संस्कृतियों से सीखती है और स्वयं भी नए अर्थ गढ़ती है।

कार्यक्रम के अध्यक्ष विभागाध्यक्ष प्रो. राहुल पटेल ने कहा कि मानव सभ्यता का विकास जैविक के साथ-साथ सांस्कृतिक और बौद्धिक प्रवाह का भी परिणाम है। विकासवाद मानव सभ्यता की निरंतर यात्रा का प्रतीक है जो हमें यह समझने की दृष्टि देता है कि परिवर्तन ही जीवन और समाज का स्वभाव है। सांस्कृतिक अनुकूलन वह माध्यम है जिसके द्वारा समाज अपनी परंपराओं को बनाए रखते हुए समय के साथ नई परिस्थितियों में स्वयं को ढालता है। बहुसांस्कृतिक समाज इस प्रक्रिया की परिणति हैं जहाँ विविध संस्कृतियाँ संवाद, सहयोग और सह-अस्तित्व के माध्यम से एक साझा मानवीय सभ्यता का निर्माण करती हैं।

इस अवसर पर डा. खेरोद मोहराना ने कहा कि संस्कृति की अनुकूलनशीलता ही मानवता की स्थायित्व की कुंजी है। बहुसांस्कृतिक समाज इसी अनुकूलन की सर्वोच्च अभिव्यक्ति हैं जहाँ विविधता ही एकता का आधार बनती है। वैश्वीकरण विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर सुमित सौरभ श्रीवास्तव ने वैश्विक पटल पर सांस्कृतिक समेकन से हो रहे लाभ और हानि को उद्घाटित किया । कार्यक्रम में विभाग के शिक्षकगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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