ग्रीनहाउस गैसों का खतरा: प्रो. अनेजा की चेतावनी! पर्यावरण असंतुलन को रोकने का किया आह्वान
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के फ़ैकल्टी ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के अनुप्रयुक्त विज्ञान एवं मानविकी विभाग की पर्यावरण...

ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के फ़ैकल्टी ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के अनुप्रयुक्त विज्ञान एवं मानविकी विभाग की पर्यावरण...
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय, लखनऊ के फ़ैकल्टी ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के अनुप्रयुक्त विज्ञान एवं मानविकी विभाग की पर्यावरण विज्ञान शाखा द्वारा आयोजित दो दिवसीय Eminent Lecture Series के दूसरे दिवस का केंद्र विषय रहा — “ग्रीनहाउस गैसें और उनका वैश्विक पर्यावरण पर प्रभाव।” यह व्याख्यान श्रृंखला विश्वविद्यालय द्वारा जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय संतुलन तथा सतत विकास जैसे समसामयिक विषयों पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विमर्श हेतु आयोजित की जा रही है।
व्याख्यान के इस अवसर पर अमेरिका के नॉर्थ कैरोलाइना स्टेट यूनिवर्सिटी, रैले के Department of Marine, Earth and Atmospheric Sciences के प्रोफेसर प्रो. विनय पी. अनेजा ने Eminent Speaker के रूप में मुख्य व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रो. अनेजा ने अपने संबोधन की शुरुआत विद्यार्थियों और शिक्षकों को अभिवादन के साथ की तथा पृथ्वी की वायुमंडलीय संरचना और उस पर बढ़ते ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया।उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें वैश्विक ऊष्मीकरण की गति को चिंताजनक रूप से बढ़ा रही हैं। रविशंकर जी के Climate Forcing Model का उल्लेख करते हुए प्रो. अनेजा ने कहा कि वर्तमान में वायुमंडल में CO₂ की सांद्रता लगभग 420 ppm, मीथेन की 1934 ppb तथा नाइट्रस ऑक्साइड की 337 ppb तक पहुँच चुकी है। य
ह स्तर औद्योगिकीकरण से पहले की तुलना में कई गुना अधिक है और यह पृथ्वी के औसत तापमान में लगभग 1.2°C की वृद्धि का प्रमुख कारण बन चुका है।प्रो. अनेजा ने अपनी वैज्ञानिक प्रस्तुति में विभिन्न स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि ऊर्जा उत्पादन, परिवहन और औद्योगिक प्रक्रियाएँ कार्बन डाइऑक्साइड के मुख्य स्रोत हैं; कृषि कार्य, पशुपालन और अपशिष्ट प्रबंधन से मीथेन का उत्सर्जन होता है; जबकि उर्वरकों के अति प्रयोग, मिट्टी की जैविक प्रक्रियाओं और कृषि-अवशेष प्रबंधन के कारण नाइट्रस ऑक्साइड की मात्रा 74% तक बढ़ रही है। इन सबका सम्मिलित प्रभाव पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न कर चुका है, जो वायु गुणवत्ता, जैव-विविधता, समुद्र-स्तर, और कृषि उत्पादन को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित कर रहा है।अपने व्याख्यान में प्रो. अनेजा ने ऐतिहासिक साक्ष्यों का उल्लेख करते हुए बताया कि कार्बन डाइऑक्साइड और जलवाष्प पृथ्वी के पर्यावरण के स्वाभाविक घटक हैं, जो जीवन के अनुकूल तापमान बनाए रखते हैं।
परंतु औद्योगिक क्रांति के पश्चात जीवाश्म ईंधनों के अत्यधिक उपयोग, वनों की कटाई, और वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर असंतुलित विकास ने इस प्राकृतिक संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।उन्होंने आगे कहा कि भविष्य के लिए यह स्थिति चेतावनी का संकेत है, जिसके समाधान हेतु ऊर्जा संरक्षण, नवीकरणीय स्रोतों का प्रयोग, सतत कृषि पद्धतियाँ, और वैज्ञानिक नीति-निर्माण आवश्यक हैं। हर व्यक्ति की चारित्रिक और सामाजिक जिम्मेदारी है कि वह अपने कार्बन फुटप्रिंट को घटाए और पर्यावरण सुरक्षा के सामूहिक प्रयासों में सहभागिता करे।कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्राध्यापकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया तथा वक्ता से कई महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे। खुली चर्चा के इस सत्र ने अकादमिक वातावरण को जीवंत बना दिया। उपस्थित सभी प्रतिभागियों ने प्रो. अनेजा के व्याख्यान को प्रेरणादायक एवं ज्ञानवर्धक बताते हुए उनके वैज्ञानिक दृष्टिकोण की प्रशंसा की।
व्याख्यान श्रृंखला के अवसर पर भाषा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो अजय तनेजा ने कहा कि विश्वविद्यालय ने इस व्याख्यान श्रृंखला के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण, अनुसंधान संवर्धन और ज्ञान-विस्तार की दिशा में अपने सतत प्रयासों को सुदृढ़ करने का संदेश दिया। आगे भी विश्वविद्यालय ऐसे ही विषयक कार्यक्रमों के माध्यम से विद्यार्थियों को वैश्विक मुद्दों से अवगत कराता रहेगा और समाज के प्रति अपनी शैक्षणिक जिम्मेदारी निभाता रहेगा।
इस कार्यक्रम का प्रभावी संयोजन डॉ. नलिनी मिश्रा ने किया। सह-संयोजक व समन्वयक के रूप में डॉ. बृजेश कुमार द्विवेदी, डॉ. सुमन कुमार मिश्रा, तथा डॉ. राजकुमार सिंह ने सक्रिय भूमिका निभाई। डॉ. अंकिता अग्रवाल ने कार्यक्रम संचालन का कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न किया, जबकि तकनीकी प्रबंधन अमन मिश्रा के नेतृत्व में किया गया। व्याख्यान के दौरान सभी शिक्षक और विद्यार्थी भारी संख्या में उपस्थित रहे।





