माजिद माजिदी की फ़िल्में नवयथार्थ वाद के सिनेमाई तकनीक का खजाना है

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माजिद माजिदी की फ़िल्में नवयथार्थ वाद के सिनेमाई तकनीक का खजाना है


प्रो गोविन्द जी पाण्डेय

माजिद माजिदी की फ़िल्में अगर नवयथार्थ वाद का पिटारा कही जाएँ तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए | हालाकि कई बार हम अपने यहाँ सत्यजीत रे को ये भी कहते थे कि उन्होंने भारत की गरीबी को विश्व पटल पर सिनेमा के माध्यम से उठाया है पर वही गरीबी को दिखाने के लिए कुछ लोग उनकी फिल्मों को नकारते भी देखे जा सकते है | ईरानियन फिल्म मेकर माजिदी की फ़िल्में भी नव यथार्थ वाद के भाव को पूरी तरह दिखाती है |

चाहे वो फादर फिल्म हो जहा पर एक माँ को मज़बूरी में पति की मौत के बाद एक पुलिस वाले से शादी करनी पड़ती है जिसे उसका बेटा स्वीकार नहीं कर पाता है | पूरी फिल्म मानव मन को टटोलती और उसके सबसे अच्छे भावो को प्रस्तुत करती , लोगो के आँखों में आंसू ले आने पर मजबूर कर देने वाली फिल्म है |

एक बेटे का जो बड़ा हो रहा है और अपने पिता की जगह लेकर परिवार चलाना चाहता है और जब वो अपनी माँ को किसी और से शादी कर के उसकी बहनों और माँ की परवरिश करते देखता है तो वो बर्दाश्त नहीं कर पाता और अपने माँ और बहन की जिम्मेदारी वापस लेने के लिए कई तरह के बचकाने प्रयास करता है और इस फिल्म का अंत हमें मानव समाज के उत्कृष्ट मूल्यों से रूबरू करवाता है | इसी तरह से उनकी फिल्म बरन है जो गरीबी में रहते हुए भी मानव संघर्ष की एक महान गाथा है |

इसी तरह से सांग ऑफ़ स्पारो में जब एक अंडे के लिए नायक अपनी नौकरी गवां देता है तो उस सामाजिक और आर्थिक हालत के अनुभव हमें माजिदी करते है जिसमे जीवन बहुत कठिन है पर उनकी हर फिल्म मानव के अदम्य साहस और मानवता का पाठ पढ़ाती है |

उनकी फिल्म द चिल्ड्रेन ऑफ़ पैराडाइस भी उसी क्रम में एक फिल्म कला का बेहतरीन नमूना है जो एक जूते के खो जाने और उसकी अहमियत को बताती कहानी है | अली एक नौ साल का बच्चा है जो अपने घर की जिम्मेदारी को पूरा उठाते हुए अपनी पढाई में भी अव्वल है | उससे अपनी बहन का स्कूल का जूता खो जाता है और यही से फिल्म की कहानी शुरू हो जाती है |

दोनों के स्कूल के समय में अंतर है और जब अली की बहन उसका जूता वापस करती है तो उसे अली पहन कर जाता है | इस कारण से अली को स्कूल में रोज देर हो जाती है और उसे प्रिंसिपल से डांट सुननी पड़ती है | अब रोज अब एक दुसरे के इन्तजार में जूते की अदला बदली कर वो स्कूल जाते है | एक दिन स्कूल से आते समय अली की बहन की पैर से जूता नाले में चला जाता है किसी तरह वो उसे निकाल कर अली तक पहुचती है |

अली के पिता जहाँ काम करते है वहाँ से इतना नहीं मिलता की वो अपने परिवार की जरुरत पूरा कर सके | एक दिन पिता और पुत्र दोनों साइकिल पर बैठ कर एक समृद्ध इलाके में कुछ काम की तलाश में जाते है और अली अपने पिता के साथ काम कर के पैसा लेकर वापस आ रहा है |

पिता –पुत्र साइकिल पर बैठ कर माली का काम कर, जो पैसे कमाए थे, उससे बड़े –बड़े सपने देखने शुरू करते है |पर ईश्वर इन गरीबो का साथ नहीं देता और साइकिल का ब्रेक फ़ैल हो जाने से उनका एक्सीडेंट हो जाता है और उसी के साथ साइकिल टूटती है और सारे सपने पानी में बह जाते है |

एक जूते की अदला –बदली और रोज रोज इस छोटी सी चीज से बड़ी तकलीफ झेलते अली और उसकी बहन की कहानी लोगों के आत्मा को हिला कर रख देती है | एक तरफ सैकड़ो जूते और चप्पल फेकें हुए है और एक ऐसा भी समाज जहाँ एक नौ साल का अली और उसकी सात -आठ साल की बहन की मज़बूरी और उनकी इमानदारी सबके आंसू निकाल देती है | अली अपने स्कूल में रेस में भाग लेने के लिए तैयारी करता है और अपनी बहन को बताता है की अगर वो तीन बेस्ट धावक में आ जाएगा तो उसे जूता मिलेगा | उनके सपनो को फिर एक बार उम्मीद के पर लग जाते है |

और माजिदी इसमें सफल भी रहते है | वो आर्थिक हालत ख़राब दिखाते तो है पर उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते है | उनका पात्र रोता तो है पर सफलता के लिए संघर्ष भी करता है | अली रेस में फर्स्ट आता है पर खुश नहीं है क्योंकि उसे ट्रोफी मिलती है जूते थर्ड आने वाले को मिलते है | वो दुखी हो कर घर आता है और उसकी बहन निराश हो जाती है | रेस में अली का भी जूता फट जाता है और उसके पांवों में चोट लगी होती है | पर उसे सबसे ज्यादा निराशा इस बात की है की वो अपनी छोटी बहन के लिए जूता नहीं ला पाता है |

मानव की एक दूसरे से प्रेम की कहानी की और क्या मिसाल हो सकती है | फिल्म के अंत में एक शॉट है जिसमे अली निराशा से डूबा हुआ अपने पैर पानी में डाले है और फिल्म यहीं कही ख़त्म हो जाती है पर उससे पहले फिल्म का एक शॉट है जिसमे उसके पिता ने कुछ सामान ले रखा है जिसमे अली और उसकी बहन के लिए जूते दिखाई दे रहे है |

फिल्म का अंतिम दृश्य जहाँ अली अपने घर में आता है और उसकी बहन जल्दी से उसकी तरफ आती है पर अली का उतरा चेहरा और उसके पैरो में उसका वही फटा जूता देख कर बहन सब समझ जाती है | कमाल किया है माजिदी ने जो इन बच्चो से बिना एक संवाद के पूरी कहानी अंत में कह देता है | फिल्म का अंत पिता के द्वारा लिए गए जूते के दृश्य से अच्छा हो जाता है पर दर्शको का कलेजा इन मासूम बच्चो के संघर्ष और उसमे मानवता को पकडे रहने की बड़ी कहानी है |


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