पिता -पुत्र के रिश्ते को जीवित कर दिया था सौमित्र दा ने सत्यजीत रे की त्रयी अपुर संसार में
एक पुत्र जो अपने पिता से प्यार करता है और उसका साथ चाहता है पर उसे व्यक्त नहीं कर पा रहा है - एक पिता जो अपने पुत्र को लेने गया है पर अपने प्रति उसकी...


एक पुत्र जो अपने पिता से प्यार करता है और उसका साथ चाहता है पर उसे व्यक्त नहीं कर पा रहा है - एक पिता जो अपने पुत्र को लेने गया है पर अपने प्रति उसकी...
एक पुत्र जो अपने पिता से प्यार करता है और उसका साथ चाहता है पर उसे व्यक्त नहीं कर पा रहा है - एक पिता जो अपने पुत्र को लेने गया है पर अपने प्रति उसकी नफरत उसको न चाहते हुए भी दूर कर रही है - ये प्रेम का चरम है जो सत्यजीत रे ने अपनी फिल्म अपुर संसार के अंत के दृश्यों में जीवित कर दिया -
अपनी पत्नी के मौत का कारण मानते हुए अपने बच्चे को छोड़ देना और भटकते हुए फिर वही पहुच जाना जैसे आत्मा शरीर में प्रवेश करने के लिए बैचेन हो इस तरह के दृश्य का निर्माण और उसको जीने के लिए सौमित्र चटर्जी हमेशा जाने जायेंगे -
अंतिम दृश्य में जब बेटा उनको छोड़ देता है और उसे छोड़ कर वापस आने की पीड़ा सौमित्र के चेहरे से हर उस पिता के चेहरे की झलक दिखा जाता है जो अपनी गलती का चाह कर भी पश्चाताप नहीं कर पाता है पर ये दृश्य यही नहीं ख़त्म होता है - अपने जिगर के टुकड़े को जिगर से जुदा कर उसके पत्थर खाते सौमित्र का अभिनय अपने चरम पर था -
सत्यजीत रे की इस फिल्म को लौकिक की जगह परलौकिक बनाने के पीछे इन्ही का अनुभव है जो उस बच्चे के दर्द और पिता के प्यार को सिनेमा की स्क्रीन पर एक जादूगर की तरह फ्रेम दर फ्रेम उकेर रहे थे - अब शायद लोगो का हृदय जवाब दे जाता तो वही सत्यजीत ने सौमित्र से बच्चे को एक करने का दृश्य और नदी के किनारे का शॉट ऐसा बनाया की वो सिनेमा के इतिहास में दर्ज हो गया -
जब बेटा दौड़ता है और पिता उसे अपने बाहों में ले लेने के लिए हर बाधा को तोड कर उसकी ओर बढ़ता है तो जैसे समय रुक जाता है, स्क्रीन हकीकत बन जाती है और उनका दर्द और प्यार लोग अपने सीने से लगा लेते है - आँखों से आसू सिर्फ सिनेमा के पर्दे पर ही नहीं गिरता वहा हाल में फिल्म देख रहा हर इंसान इसे देख अपने आँखों के दरिया से झरने निकलने देता है - पानी का स्रोत सिर्फ स्क्रीन पर नही है वो हर उस के सीने से निकलता है जो उस दृश्य के चरम को देख रहा है -
सौमित्र दा का नदी के किनारे अपने कंधे पर बेटे को लेकर चलने और दोनों का आत्मीय स्नेह फिल्म के इतिहास के कुछ चुनिन्दा फ्रेम में से एक है - आपने हमें रुलाया और हसाया इसके लिए आप हमेशा हमारी यादों में रहेंगे - अलविदा सौमित्र दा-