बच्चन पांडे मुंबई मसाला फिल्म है, जिसमें मनोरंजन का पूरा तड़का लगा है: प्रो गोविन्द जी पाण्डेय
बच्चन पांडे फिल्म देखने के बाद कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें निराशा हाथ लगेगी, पर जो लोग सिर्फ मनोरंजन के लिए थिएटर तक आते हैं उनके लिए यह एक मुंबई मसाला...

बच्चन पांडे फिल्म देखने के बाद कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें निराशा हाथ लगेगी, पर जो लोग सिर्फ मनोरंजन के लिए थिएटर तक आते हैं उनके लिए यह एक मुंबई मसाला...
बच्चन पांडे फिल्म देखने के बाद कई ऐसे लोग होंगे जिन्हें निराशा हाथ लगेगी, पर जो लोग सिर्फ मनोरंजन के लिए थिएटर तक आते हैं उनके लिए यह एक मुंबई मसाला फिल्म है जिसमें सब कुछ है, नाच , गाना ,हत्या , और लोकल डान जो कभी हत्यारा तो कभी रोबिनहुड है |
कहा जाता है कि किसी का दर्द अगर दिखाओ तो दर्शक उसको स्वीकार कर लेते हैं, इसी तरह से माहिरा हैं| जो मुंबई में फिल्मों में निर्देशक के साथ छोटे मोटे काम कर रही हैं पर अभी उनकी कोई सुनता नहीं है | वह काफी जूनियर है पर एक बार सेट पर निर्देशक से दृश्य के दौरान टेक को लेकर कहासुनी हो गई और फिल्म से हटा दी गई
यहीं से शुरू होती है मायरा की कहानी जो फिल्ममेंकर बन अपने पिता का ख्वाब पूरा करना चाहती है | एक अच्छी स्क्रिप्ट के लिए एक इस तरह के कस्बे में आ जाती है जहां बच्चन पांडे नाम के गैंगस्टर का जलवा है
यहीं पर दूसरा पात्र अरशद वारसी है जो उनका दोस्त विशु है जिसे कलाकार बनने का शौक है और वो भी अपनी पिता की इच्छा को पूरा करना चाहता है |
बच्चन पांडे के बारे में सूचना इकट्ठा करने के दौरान कई बार कई ऐसे सीन है जो अच्छे बन पड़े हैं और कुछ सीन में कुछ ज्यादा ही मसाला डाल कर पूरी तरह दर्शकों को बाँध दिया गया है |
अगर आप यथार्थ के चाहने वाले हैं तो आपके लिए इस फिल्म में कुछ नहीं है हां अगर आप कुछ देर के लिए सिनेमा देखकर अपनी थकान दूर करना चाहते हो तो यह फिल्म आपको उस तरह का मनोरंजन देगी
बच्चन पांडे को अपनी फिल्म के लिए तैयार करने के बाद मायरा अपनी स्क्रिप्ट तैयार करती है पर उसे स्क्रिप्ट में अपना नाम न देखकर और अपने सीन काटे जाने से निराश होकर विशु बच्चन पांडे के सामने ही उसे हीरो बनाने की वकालत कर देता है
लोग हंसने लगते हैं लेकिन बच्चन पांडे को बात जच जाती है और वह कहता है कि वह हीरो बनेगा | मायरा के सामने मुश्किल है कि उनको एक्टिंग कैसे करवाई जाए तो उसके लिए गुरुजी आते हैं जो इन लोगों से एक्टिंग की बारीकियां शेयर करते हैं
गुरुजी के रूप में एक दो दृश्य काफी अच्छा है जो लोगों को गुदगुदाता है | मायरा इन लोगों को एक्टिंग सिखा कर बच्चन पांडे के साथ फिल्म को शूट कर लेती है इस दौरान वह बच्चन पांडे के करीब आ जाती है
मुंबई जाकर जब वह फिल्म रिलीज करती है तो उसका नाम बीपी यानी भोला पांडे हो जाता है। फिल्म देखकर बच्चन पांडे आग बबूला हो जाता है और मायरा को खत्म कर देने की ठान लेता है
फिल्म का अंत भी इसी तरीके से है मायरा को पकड़कर जब बच्चन पांडे के लोग लाते हैं और उसके ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगाने का दृश्य है वही क्लाइमैक्स है आगे की कहानी के लिए आपका फिल्म देखना जरुरी है |
कुल मिलाकर यह फिल्म यह बताने का प्रयास है लोगों की याद में रहना है तो अच्छा बन कर रहे जो डराता है वह यादों में नहीं रह पाता है | बच्चन पांडे के रूप में अक्षय कुमार का अभिनय अच्छा है वही कृति सेनन भी अपने भूमिका में मजबूती से दिखाई पड़ती हैं | अरशद वारसी विशु के रूप में उस कलाकार को पूरी तरह से उभार कर सामने रख देता है जो फिल्मों में काम करना चाहता है पर बार-बार उसके रोल को छोटा कर दिया जाता है
फिल्म के संवाद दर्शकों को इस बात का संकेत करते हैं कि यह फिल्म पूर्वांचल के किसी भाग की है और कहीं-कहीं भोजपुरी की सुगंध भी दिखाई देती है |अगर देखे तो बच्चन पांडे एक बार देखने लायक फिल्म है जिसमें अगर आप लॉजिक और यथार्थ घूमने जा रहे हैं कृपया ना जाए बल्कि इसे पूरा का पूरा मुंबई या मसाला फिल्म सोचकर 3 घंटा देखें | यह फिल्म एक काम करती है कि आपको अपने पेस से जोड़े रखती है दृश्य और कथानक इस तरह से पिरोए गए हैं कि आपको बोर नहीं करेंगे।





