प्रजापति के क़त्ल के लिए मै शर्मिंदा नहीं हूँ , क्योंकि वो हत्या नहीं वध है |

  • whatsapp
  • Telegram
प्रजापति के क़त्ल के लिए मै शर्मिंदा नहीं हूँ , क्योंकि वो हत्या नहीं वध है |
X

फिल्म रिव्यू :

फिल्म : वध

निर्देशक : जसपाल सिंह संधू


ये कहानी उन सपनो की है जिसे देखते-देखते भारत के मध्यम वर्गीय परिवार की बूढ़ी आँखे बंद हो जाती है | फिल्म ग्वालियर शहर में रहने वाले शम्भुनाथ मिश्रा और उनकी पत्नी मंजू मिश्रा की कहानी है | अपने एकलौते बेटे को पढ़ा कर जब बड़ा किया तो उसी बेटे के ताने से निकली पीड़ा को मिश्रा जी पचा ले जाते है पर अपनी पत्नी का कहाँ नहीं टाल पाते और उसी बेटे के लिए अपने ऊपर कर्ज का बोझ लाद लेते है |

बेटा अमेरिका में सेटल हो जाता है और अपने पिता को महीने का पांच हजार भेज देता है जिससे बमुश्किल उनका गुजारा चलता है | ऊपर से बैंक का लोन भरना और बचे हुए पैसे के लिए जिस व्यक्ति से लोन लिया था उसका सूद भरते -भरते मिश्रा जी के दिन बीत रहे है | वो सूदखोर और लोकल गुंडा प्रजापति पांडेय को अपना मकान गिरवी रख कर जो पैसा लेते है उसका सूद उनको ख़त्म किये जा रहा है |

अमेरिका जाने से पहले बेटे ने जो लोन चुकाने का वादा किया था वो भूल जाता है और अब वो अपने माँ बाप को सिर्फ एक बोझ की तरह देखता है | ये कहानी सिर्फ शम्भू नाथ की नहीं है बल्कि भारत में ऐसी कहानियाँ हर गली -मोहल्ले में मिल जाएंगी |

प्रजापति पांडेय उनके घर में न सिर्फ जबरन आता है बल्कि वो शराब और लड़की दोनों लेकर आता है , उनके न चाहते हुए भी उनके घर में मांस खाता है और उनके कमरे में लड़की के साथ नाजायज हरकतें करता है | ये फिल्म भारत के समाज की वो हकीकत है जो हर गली में दिख जायगी | गुंडे ऐसे लोगो को पहचान कर, जिनका कोई मजबूत परिवार नहीं है उसको न सिर्फ प्रताड़ित करते है बल्कि उनकी मज़बूरी का हर प्रकार से फायदा उठाते है |

इस फिल्म में पति पत्नी के रिश्तों को जबरदस्त तरीके से संजय मिश्रा और नीना गुप्ता ने निभाया है | ४० साल से साथ रहते हुए एक दूसरे के सुख और दुःख में साथ देते हुए जब उनकी उम्मीद टूटती है तो दर्शको को अपने बीच का सच दिखाई देता है |

इस परिवार की इस हालत में भी संघर्ष उनकी जिंदगी की लड़ाई का एक सकारात्मक पक्ष है | ये परिवार तब मुसीबत में आता है जब प्रजापति पांडेय उनसे पूरा पैसा देने के लिए कहता है या फिर घर छोड़ कर चले जाए | जब मिश्रा जी उसकी शिकायत करने पुलिस स्टेशन जाते है तो देखतें है कि पुलिस अधिकारी शक्ति सिंह और प्रजापति पहले से ही एक साथ बैठे है |

दोनों की मिली भगत के कारण वो अपनी रिपोर्ट दर्ज नहीं करवा पाता और वापस घर चला आता है | फिल्म में यही से मोड़ आता है और अभी तक समाज का एक सभ्य नागरिक जो बच्चों को पढ़ाकर किसी तरह अपने जीवन यापन का प्रयास कर रहा है एक दुर्दांत हत्यारे की तरह दिखाई देने लगता है | प्रजापति शराब पी कर मिश्रा के घर आता है और उसको थप्पड़ मार कर बेइज्जत करता है |

थोड़ी देर बाद वो उससे कहता है की वो उसका कर्जा माफ़ कर देगा और उसको कुछ पैसे भी घर बेच कर दे देगा अगर वो अपने बगल में रहने वाली बच्ची नैना जो मात्र बारह साल की है उसको बुला लाये | वो कहता है कि वो उसको तकलीफ या दर्द ज्यादा नहीं देगा | प्रजापति की योजना सुनकर मास्टर मिश्रा के होश उड़ जाते है और अब वो निश्चित कर लेता है की उसे क्या करना है -

एक बारह साल की लड़की के साथ प्रजापति क्या करेगा ये सोच कर ही मिश्रा दहल जाता है और उसको शराब के लिए जब नमकीन देता है उसी समय उसके गले में सूजा भोंककर उसे मार डालता है | मिश्रा की पत्नी जब आती है तो ये देख कर डर जाती है पर मास्टर उसे दूसरे कमरे में जाने को कहता है | उसके बाद की कहानी दृश्यम फिल्म की भी याद दिला देगी जिसमे मज़बूरी में हत्या करने के बाद अपने आप को और अपने परिवार को बचाने के लिए हीरो डेड बॉडी को ठिकाने लगा देता है |

यहाँ पर भी मिश्रा उसको काट कर दो बोरी में भरकर उसे ले जाकर जला देता है और सारे सबूत मिटा देता है | इस हत्या के कारण पति और पत्नी के रिश्तों में तनाव आ जाता है | पति को लगता है की उसकी पत्नी का डर उनको फ़सा देगा | वो उसे समझाने का प्रयास भी करता है पर वो नहीं समझती है - फिर पति अपने आप को पुलिस के हवाले करने के लिए थाने जाता है और ये कबूल करता है कि उसने ही प्रजापति की हत्या की है |

शक्ति के बाहर होने के कारण थाने पर जो दीवान बैठा था वो मास्टर मिश्रा जी की बातों को मनोहर कहानियां कह कर उनको थाने से भगा देता है | मिश्रा जी वापस जा कर अपनी पत्नी को बताते है की उन्होंने पुलिस में जाकर अपना बयान उनके कहने पर दिया पर वो आज भी प्रजापति के क़त्ल करने के लिए शर्मिंदा नहीं है क्योंकि वो हत्या नहीं वध है | और बुरे व्यक्ति का वध जायज है |

जब वो अपनी पत्नी को वजह बताता है तो वो भी गुस्से में आ जाती है और अब उसके मन से भी प्रजापति की हत्या का बोझ निकल जाता है और वो अपने पति के साथ हो जाती है |

इस घटनाक्रम में नाटकीय मोड़ आता है जब पुलिस अधिकारी शक्ति सिंह को सारी बातें पता चलती है तो वो अपने अधिकारी को डांटता है और मास्टर को बुला कर बयान लेने के लिए कहता है | मास्टर मिश्रा अब अपने बयान से बदल जाता है और अधिकारी को हत्या को साबित करने के लिए कहता है | पर यही फिल्म में एक और मोड़ आता है , प्रजापति जिसके लिए काम करता है वो मिश्रा को बुलाकर तीन दिन के अंदर मकान खाली करने के लिए कहता है |

प्रजापति का बॉस राठौर जब मिश्रा के घर के सामान को फेकना शुरू कर देता है तो वो उसका विरोध करता है पर राठौर के गुंडे उसको मारते है | अब यही से फिल्म ने एक और मोड़ लिया , मिश्रा ने प्रजापति का मोबाइल जिसमे शक्ति की जान बसती है उसको ले जा कर दे देता है और उसे मर्डर के वैपन के बारे में भी बता देता है | फिल्म का क्लाइमैक्स एकाएक पूरी तरह से बदल जाता है और आपको फिल्म देखने पर ही इसका पता चलेगा |

इस फिल्म से कुछ प्रश्न उठते है जिसके बारे में सोचना जरुरी है - पहला प्रश्न मिश्रा का क़त्ल करना और उसको वध बताना | फिर मिश्रा का अपनी पत्नी को हत्या और वध के बीच का अंतर् बताना और पत्नी का उसे स्वीकार कर लेना | हत्या के इस जघन्य तरीके को मान्यता देना | पुलिस वाले का राठौर को गिरफ्तार करना और प्रजापति के हत्या के लिए आरोप पत्र तैयार करना | मिश्रा और पुलिस दोनों का गुंडे के खिलाफ गैर कानूनी काम को मान्यता देना |

ये प्रश्न जरूर है पर अगर आप हाल में अपराधियों की हत्या देखे तो इस वध का कानूनी रूप दिखाई देता है | ये फिल्म भी यही कह रही है जो जनता को स्वीकार है वो फिल्म की कहानी ही नहीं हकीकत में भी स्वीकार है |

कुल मिला कर ये फिल्म फिक्शन है पर ऐसी कहानियां आपको हर शहर में मिल जाएगी | दोनों कलाकारों की एक्टिंग कमाल की थी पर थिएटर में इसे अच्छा रिस्पांस नहीं मिला | जब से ये फिल्म ओटीटी प्लेटफार्म पर आयी है इसको दर्शको का प्यार मिलने लगा है |

प्रो गोविन्द जी पांडेय

Next Story
Share it