फिल्म हसीन दिलरुबा से निराश हुए तापसी पन्नू और विक्रांत मैसी के फैंस
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री तापसी पन्नू इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में आ गई हैं। इस बार वे अपने ओटीटी डेब्यू को लेकर चर्चें में हैं। दरअसल तापसी...
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बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री तापसी पन्नू इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में आ गई हैं। इस बार वे अपने ओटीटी डेब्यू को लेकर चर्चें में हैं। दरअसल तापसी...
बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री तापसी पन्नू इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में आ गई हैं। इस बार वे अपने ओटीटी डेब्यू को लेकर चर्चें में हैं। दरअसल तापसी पन्नू की यह पहली फिल्म है जो सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई। फिल्म में उनके किरदार का नाम रानी है। उनके पति रिशु का रोल विक्रांत मैस्सी ने किया है। ट्रेलर रिलीज होने के बाद लगा था कि यह सस्पेंस और थ्रिलर से भरपूर होगी लेकिन शुरुआत होने के 10 मिनट के अंदर ही कई सारी चीजें एक साथ होने लगती हैं जिसके बाद लगने लगता है कि एक ब्रेक की जरूरत है।
रोमांस और बदले के इस कॉकटेल में तीन अलग-अलग किरदार एक साथ जुड़ते हैं। पूरी फिल्म के बाद ऐसा लगता है कि मेकर्स ने ऐसा क्यों किया। फिल्म के ट्रेलर में दिनेश पंडित के उपन्यासों की झलक दिखाई गई है। इस तरह की किताबें आमतौर पर रेलवे स्टेशनों पर मिलती हैं हालांकि फिल्म की कहानी देखें तो उन किताबों में छपने वाली कहानियों जितना रोमांच भी पैदा नहीं कर पाती। 'हसीन दिलरुबा' का कोई भी किरदार आम इंसान की तरह व्यवहार करता नहीं दिखता।
बता दे 'जुड़वा 2' तापसी के करियर की सबसे खराब फिल्म मानी जाती है। विनील मैथ्यू की 'हसीन दिलरुबा' उनकी खराब फिल्मों की लिस्ट को आगे बढ़ाती दिखती है। तापसी की परफॉर्मेंस एक उबाऊ गृहिणी के रूप में हैं। हालांकि कुछ सीन में वह अपने स्टैंडर्ड को सेट करती दिखती हैं लेकिन अगले ही पल उनका अभिनय फिर से उसी ढर्रे पर चलने लगता है।
आमतौर पर यह निर्देशक और लेखक का काम होता है कि वह किरदारों को पर्दे पर किस तरह उभारता है। क्योंकि रानी के अलग-अलग व्यक्तित्व के बीच का जुड़ाव नहीं दिखता तो ऐसा लगता है कि आप पूरी तरह से दो अलग लोगों को देख रहे हैं।
फिल्म की शुरुआत में रिशु यानी विक्रांत मैस्सी और तापसी पन्नू को मिलवाया जाता है। तापसी की तरह ही विक्रांत भी उतने ही अच्छे कलाकार हैं लेकिन एक कमजोर स्क्रिप्ट के चलते वह भी निराश करते हैं। निर्देशक विनील मैथ्यू दोनों को एक साथ कम्फर्टेबल करने में बहुत समय ले लेते हैं।
वहीं दूसरी ओर हर्षवर्धन राणे नील के किरदार में हैं। उनका रोल रिशु को ध्यान में रखकर लिखा गया है। नील का किरदार फिल्म का काफी समय बर्बाद करता हुआ लगता है। हर्षवर्धन अपने किरदार से न्याय नहीं कर पाते। फिल्म में वह सबकुछ करना चाहते हैं जो रिशु नहीं कर पाता। ऐसे पुरुष किरदार खासकर 'मजबूत महिला किरदार' को ध्यान में रखकर लिखे जाते हैं।