कहार शोध पत्रिका में सत्यजीत रे पर एक विशेष विचार विषय पर आधारित अंक के लिए लेख आमंत्रित है

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कहार शोध पत्रिका में सत्यजीत रे पर एक विशेष विचार विषय पर आधारित अंक के लिए लेख आमंत्रित है

विज्ञान संचार के क्षेत्र में पिछले आठ साल से लगातार प्रकाशित हो रही शोध पत्रिका कहांर का मार्च- जून अंक देश के महान फिल्मकार सत्यजीत रे के कार्यो को प्रमुखता से स्थान देगा | भारत में खासकर बांग्ला फिल्म इतिहास में कोई भी पन्ना बिना सत्यजीत रे की चर्चा के पूरा नही होता है | उनके द्वारा बनायीं गयी कालजयी फिल्मे आज भी फिल्म देखने और बनाने वाले लोगो के लिए एक आदर्श है | उनकी पारखी नजरो से कुछ भी गलत नहीं निकल पाता था |

पाथेर पंचाली का पात्र अप्पू हो या उसकी बहन दुर्गा , या फिर घर की चिंता करने वाली सर्वोदया या फिर घर को ठीक से चला न पा रहा गरीब ब्राह्मण पिता सब इस तरह से अपने पात्रो में दीखते है मानो वो उसको जी रहे हो | कही से भी बनावट नही दिखती और कलाकार की कला बिल्कुल गंगा नदी की तरह शांत और पृथ्वी की तरह धैर्यवान दिखती है | समय भागता नहीं रुका सा लगता है जैसे संगीत के धुन सुन स्वयं भगवान समय के संचालन को भूल बैठे हो |

इसमें तब कोलाहल उत्पन्न होता है जब पक्षी का शोर हो या गंगा की घाट से पानी में कूदते लोग | पर बहती धारा सी पवित्रता लिए ये सिनेमा के फ्रेम उनके जादुई विचारो का एक अभिव्यक्ति मात्र थे जो आज भी सिहरन पैदा करते है |

ऐसी महान हस्ती को बाँध पान मुश्किल है पर उनको याद करने का एक मौका मिला है जिसमे हम सब डूब जाना चाहते है |

अगर आप सिनेमा में डूबते और तैरते है तो आप जल्द कलम उठा लीजिये और लिख डालिए कुछ ऐसा जो हमें उन यादों में पुनः वापस ले जा सके | अपने लेख को भेज दीजिये bachpanexpress@gmail.com ,

phssoffice@gmail.com/cceseditor@gmail.com, www.kahaar.in , https://www.facebook/kahaarmagazine.com,

www.bachpanexpress.com, www.bachpancreations.com

पर|

और इन्तजार करिए की सत्यजीत रे का जादू जल्द आपके कलम के माध्यम से एक बार फिर लोगो के सामने आ जाए |


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