इतिहास से निकालकर : फ्रेंज ओस्टिन वो नाम है जिसके बिना भारतीय फिल्म इतिहास की कहानी अधूरी है : प्रो गोविंद जी पाण्डेय

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इतिहास से निकालकर : फ्रेंज ओस्टिन वो नाम है जिसके बिना भारतीय फिल्म इतिहास की कहानी अधूरी है : प्रो गोविंद जी पाण्डेय

फ्रेंज ओस्टिन वो नाम है जिसके बिना भारतीय फिल्म इतिहास की कहानी अधूरी है | जमर्नी के एक शहर म्युनिक , बवेरिया में २३ दिसम्बर १८७६ में जन्मे इस कलाकार ने भारत में फिल्म निर्देशक , कलाकार हिमांशु राय के साथ मिलकर फिल्म निर्माण में कई कीर्तिमान स्थापित किये है | जब १९२९ में उन्होंने ए थ्रो ऑफ़ डायस फिल्म जो महाभारत में द्रौपदी को हारने का प्रकरण है से प्रभावित होकर बनायीं | कहा जाता है की ये मूक दौर की सबसे महंगी फिल्मों में से एक थी और इसमें एक समय में दस हजार के करीब कलाकारों ने एक साथ भाग लिया था |

फ्रेंज ऑस्टिन का कलाकार और फिल्म मेकर हिमांशु राय से मिलना भारत के फिल्म इंडस्ट्री के लिए एक वरदान की तरह था | हिमांशु राय ने जब अपनी पत्नी देविका रानी , जो उस समय की बड़ी महिला कलाकार थी के साथ मिलकर बॉम्बे टाकीस स्टूडियो की शुरुआत की | इसमें उन्होंने फ्रेंज ऑस्टिन को भी शामिल किया | उनका ये निर्णय काम कर गया और बॉम्बे टाकीस ने कई सुपर हिट फ़िल्में बनायीं |

१९३५ में जवानी की हवा फिल्म आई और १९३६ में आयी ये फिल्म एक थ्रिलर है जिसमे कमला अपने शादी के दिन अपने बचपन के प्रेमी रतन लाल के साथ भाग जाती है | पिता मंगनलाल पीछा करता है और दोनों के बीच ट्रेन में झगडा होता है तभी गोली चलती है और एक लाश मिलती है | अब कई लोग अपने आप को कातिल कहते है पर कातिल कौन है ये देखने के लिए फिल्म देखना जरुरी है |

अगर हम इस फिल्म की बात करे तो इकीरा कुरोसावा की इसके काफी दिनों बाद 1950 में एक फिल्म " रोशोमन " आती है जिसमे एक ही हत्या और रेप को कई तरीके से दिखाया गया है और अपराधी का पता अंत में चलता है |

इनकी एक और फिल्म अछूत कन्या जो 1936 मे आयीं ने कामयाबी के नये आयाम तो गढ़े ही बल्कि लोगो को हैरानी हुई की भारत के छुआछूत जैसी समस्या पर एक विदेशी निर्देशक ने कमाल की फिल्म बना डाली |

अछूत कन्या एक ब्राह्मण लड़के और दलित लड़की की प्रेम कहानी पर आधारित था और उस समय ऐसी महत्वपूर्ण फिल्म बनाना इस बात को दिखाता है की वो फिल्म को समाज में व्याप्त समस्याओं को दिखाने और उसका जवाब मांगने के साथ –साथ उसका समाधान भी देने का माध्यम मानते थे | दुर्भाग्य से भारत में फिल्म को लम्बे समय तक मनोरंजन से ही जोड़ कर देखा जाता रहा है | अछूत कन्या में अशोक कुमार ने ब्राह्मण लड़के की भूमिका अदा की थी और देविका रानी ने अछूत लड़की की |

हैरानी इस बात की है कि एक विदेशी निर्देशक भारत की इस बड़ी समस्या को न सिर्फ परदे पर उतरता है बल्कि बड़े प्रभावी तरीके से वो अपनी बात कहता है | १९३६ के हिसाब से देखे तो ये एक बड़ी सामाजिक समस्या को प्रेम कहानी के माध्यम से सुरिचिपूर्ण तरीके से कहा गया है |

क्रमशः

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