फिल्म विश्लेषण भाग 2- फिल्म को एक बार नहीं कई बार देखना चाहिए: प्रो गोविंद जी पाण्डेय

  • whatsapp
  • Telegram
  • koo
फिल्म विश्लेषण भाग 2- फिल्म को एक बार नहीं कई बार देखना चाहिए: प्रो गोविंद जी पाण्डेय

फिल्म को देखने का तरीका क्या हो इस पर काफी बहस हो चुकी है कई लोग कहते हैं कि फिल्म को ध्यान से देखना चाहिए तो कई लोग कहते हैं कि फिल्म को देखते समय नोटपैड लेकर देखना चाहिए जिससे जरूरी बातों को हम लिख सकें।

पर वही कुछ लोगों का मत है कि अगर हम नोटपैड लेकर फिल्म देखते हैं और कुछ लिखते हैं तो हमारा ध्यान भंग होता है और फिल्म को समझने में मुश्किल होती है।

इन सबसे अलग जो महत्वपूर्ण बात है वह यह है कि फिल्म को एक बार नहीं कई बार देखना चाहिए | पहले आप फिल्म को बिना किसी नोटपैड के या किसी भी तरह के रुकावट के देखें। दूसरी बार उस फिल्म को म्यूट करके देखें जिसमें केवल विजुअल दिखाई दे।

दो बार देखने के बाद अब बारी आती है फिल्म के बारे में लिखने की । तो इसे हम सीन के अनुसार देख सकते हैं और जब जरूरत पड़े किसी शॉट को दो बार, किसी कैरेक्टर को समझने के लिए बार-बार, उसके संवाद को लिखने के लिए कई बार, हम आगे पीछे करके फिल्म को देख सकते हैं और लिख सकते हैं।

फिल्म बनाते समय निर्देशक यही सोचता है कि उसकी फिल्म देखते समय लोग उसी पर ध्यान रखेंगे पर अब फिल्म देखने के तरीके बदल गए हैं थिएटर के अलावा घर में भी लोग फिल्म देखते हैं जहां वह एक तरफ कुछ खा रहे होते हैं और दूसरी तरफ फिल्म देखते हैं।

इस तरह के वातावरण में फिल्म देखने से फिल्म के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें छूट जाती है इसलिए हमें फिल्म एकांत में और पूरे ध्यान से देखना चाहिए।

हर फिल्म की एक मूल कहानी होती है जिसके बारे में हमें सर्वप्रथम पता लगाना चाहिए।

फिल्म किसी का बदला लेने की कहानी हो सकती है या फिर किसी व्यक्ति के बिछड़ने और मिलने की कहानी हो सकती है या फिर किसी माफिया के उत्थान और पतन की कहानी हो सकती है। फिल्म हमें बताता है की किस व्यक्ति और समाज में क्या चल रहा है।कई बार फिल्में हमें ऐसी दुनिया में ले कर चली जाती है जिसके बारे में हमने कल्पना भी नहीं की है चाहे वह प्लैनेट आफ एप्स या फिर अवतार । हम जो फिल्में बनाते हैं तो इस उद्देश्य बनाते हैं कि वह लोगों का मनोरंजन करेंगे पर कई बार हम इसमें असफल रहे जाते हैं | अगर हम कारण का अध्ययन करना चाहे की फिल्म क्यों सफल हुई है या असफल रही है तो उसके लिए हम फिल्म की कहानी, कलाकार, कलाकारों की अदाकारी, छायांकन, डायलॉग, और सब मिलाकर किस तरह का प्रभाव बनता है या नहीं बनता है इस पर चर्चा करने के बाद हम किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं।

कई बार फिल्म सफल क्यों होती है और असफल क्यों होती है इसके जवाब नहीं होते ।उसका कारण है कि दर्शक को क्या पसंद आएगा और कब वह किसी अच्छी फिल्म को भी नकार दें, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।

कहां जाता है कि भारत के महान फिल्मकार राज कपूर ने मेरा नाम जोकर फिल्म बनाने के लिए अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा दी थी, और इस फिल्म में वह सब कुछ था जो एक अच्छी फिल्म में होता है।

एक अच्छी कहानी, ऐसे गीत जो जीवन भर याद रहे ,ऐसे संवाद जो आपके दिल को छू जाए ,पर उसके बावजूद भी यह फिल्म दर्शकों को थिएटर में उस तरह से नहीं खींच पायी जैसा कि राज कपूर ने सोचा था।

इस फिल्म के असफल होने के लोगों में जो कारण गिनाए उसमें इसका काफी लंबा होना एक बड़ा कारण था।

इसके अलावा जो विषय फिल्म कथा वह अपने समय से 20 -30 साल पहले राज कपूर ने पर्दे पर ला दिया।

इस फिल्म में जीना यहां मरना यहां इसके सिवा जाना कहां जैसे गीत के साथ भारत की जनता को एक से बढ़कर एक गीत और संवाद दिया। राज कपूर ने इसके दर्द से उबरने के लिए बॉबी जैसी कमर्शियल फिल्म बनाई और दर्शकों ने उनके गम की भरपाई करते हुए बॉबी को सुपर डुपर हिट कर दिया । राज कपूर की झोली में पैसों की फिर बरसात हो गयी।

Next Story
Share it