फिर बट रहे है भारत के लोग , कोरोना काल में राष्ट्र और राज्य की जंग

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फिर बट रहे है भारत के लोग , कोरोना काल में राष्ट्र और राज्य की जंग

कभी एक फिल्म देखी थी जिसमे हीरो एक ऐसे गाड़ी में था जिसमे लगातार पानी भरता चला जा रहा था | पल पल ऐसे गुजर रहा था की कब उनकी मौत हो जायेगी | पर वो हीरो थे और बच निकले |

लॉक डाउन में एक तस्वीर आई की एक सीमेंट के गाड़ी में जिसमे दो से तीन फीट का छेद रहा होगा अंदर जाने के लिए उसमे १८ मजदूर यात्रा कर रहे थे | कमाल का दृश्य था - रोंगटे खड़े कर देने वाला -

पर ये फिल्म नहीं थी बल्कि हकीकत थी - उन मजदूरो का दर्द है या फिर उनको समझा नहीं पा रहे है की आप वही रहो कुछ दिन युद्ध जैसे हालात में काटे जा सकते है | पर कुछ तो है जो संचार के सभी सिद्धांतो को फेल कर रहा है |

टीवी से लेकर हर मीडिया और यहाँ तक की स्थानीय लोग और अधिकारी भी लगातार लोगो को अपनी जगह पर रुकने के लिए कह रहे है पर क्या बात है कि लोग मौत को गले लगाने के लिए तैयार है पर रुकने के लिए नहीं | ये कही न कही सरकारी खुफिया तंत्र की कमी भी है कि वो इन मजदूरो का मन नहीं पढ़ पा रहे है -

या फिर कोई और संचार का तंत्र है जिससे उनको सूचना मिल रही है - समझ नहीं आ रहा १२०० किलोमीटर की पैदल यात्रा वो भी बच्चे और सामान के साथ अगर उनकी परिस्थितिया उन राज्यों में अच्छी होती तो वो क्यों अपने मरने का प्रबंध खुद करते |

कुछ तो है जो किसी को नहीं समझ आ रहा और इसमें सबसे बड़ा दोष उन राज्यों का है जो इन मजदूरो को अपने राज्य में रख नहीं पा रहे है | अभी तक जात और धर्म में बटे थे अब राज्यों में भी बट गए |

ये इस राज्य का है और ये इस राज्य का ये तो दो हजार साल पहले का भारत था अब उसकी फिर से उत्पति हो गयी है | मुख्यमंत्री राष्ट्र की जगह अपने -अपने राज्य की चिंता कर रहे है और उसमे राष्ट्र के नागरिको की उपेक्षा हो रही है |

बटना अब लगता है हमारी आदत हो गयी है | सुधरने के लिए १५०० सौ साल की गुलामी काफी नहीं थी अब आगे भी गुलामी की नौबत आ जायेगी अगर हम राष्ट्र और राज्य में बट जायेंगे - ये भारत है , वो भी इक्कीसवी सदी का जिसमे एक भारत और एक नागरिक कानून यही होना चाहिए |

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