हौसलों की उड़ान के लिए पंख की जरुरत नहीं

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हौसलों की उड़ान के लिए पंख की जरुरत नहीं

नारी दिवस पर विशेष

अगर हौसला है तो सबकुछ सक्षम है | मीना पाण्डेय, बचपन एक्सप्रेस न्यूज़ पोर्टल की प्रबंध संपादक और मालिक के रूप में अपने आप को स्थापित करने के लिए संघर्षरत है और उनके इस संघर्ष में शामिल है उनकी महिला सहयोगी | बनारस के निकट रामनगर से निकली और एक ऐसे परिवार में पली बढ़ी जहाँ पुरषवादी मानसिकता की प्रधानता थी | अपने पिता के नक़्शे कदम पर चलकर सेना में शामिल होने का जज्बा था पर सामाजिक मान्यताओं के आगे सपना हकीकत नही बन पाया |

कम उम्र में ही शादी और उसके बाद बेटी जिसका जीवन बनाने में अपनी सारी उर्जा मीना पाण्डेय ने लगा दी | शिक्षा बीच में ही रुक चुकी थी, और संघर्ष का दौर शुरू हो गया | कई बार एम्ए का फॉर्म कभी इग्नू तो कभी राजश्री टंडन से भरा पर ऐसी बीमारी आई की मौत की आहट आ गयी | पर अगर जीने की चाह हो और संघर्ष आपका हथियार तो बड़ी से बड़ी मुसीबत आपका पीछा छोड़ सकती है |

बीमारी से पीछा छुड़ा अपने को संभाल कर राजश्री टंडन से न सिर्फ पत्रकारिता में परास्नातक की उपाधि हासिल की बल्कि देश के प्रतिष्ठित फिल्म आर्काइव ऑफ़ इंडिया से विडियो एडिटिंग का कोर्स कर अपने विचार अब सबके सामने लाने के लिए जुट गयी |

बचपन एक्सप्रेस की शुरुआत मैंने कुछ छात्रो के साथ मिलकर किया पर सब अपने अपने कार्य में व्यस्त हो गए तो इसकी कमान मीना पाण्डेय के हाथ में आ गयी - शुरुआत में लगा की इसे बंद तो होना ही है तो अगर ये भी इसको कुछ दिन चलाना चाहे तो चलने देते है | यही से शुरू हुआ तक़दीर का खेल , इस युवा महिला पत्रकार ने अपनी कलम का सदुपयोग शुरू किया और बचपन एक्सप्रेस की नयी शुरुआत हो गयी |

बात ऐसे ही आगे निकलती गयी और राश्ते में कुछ मिला और कुछ छूटा | कोविड काल में स्थितिया बिल्कुल विपरीत हो गयी पर यही कही गूगल न्यूज़ के द्वारा बचपन एक्सप्रेस को फण्ड के रूप में पांच हजार डॉलर मिला और राश्ता मिल गया |

आज अपने दो महिला सहयोगियों के साथ मीना पाण्डेय बचपन एक्सप्रेस को पूरी तरह से महिला पत्रकारों के दम पर चलाना चाहती है और उसे एक मुकाम दिलाने में लगातार प्रयास कर रही है | ये आज की महिला है जो अपने घर और बाहर दोनों में सामंजस्य बैठा कर अपने सपनो को भी मरने नहीं देना चाहती | भारत में न जाने कितनी मीना जैसी महिलायें है जिनके सपने दम तोड़ देते है |

पर इन सपनो को उड़ान देने के लिए अगर सरकारी संस्थाए थोडा सा सहयोग कर दे तो ये महिला शक्ति उनके अर्थव्यवस्था में दोगुना सहयोग कर सकती है | आज की महिला और उसके सपनो को उड़ान देने के लिए समाज में बदलाव लाना होगा और ये मानसिकता की बेटे और बेटी में फर्क होता है उसे मिटाना होगा |

बेटी का मतलब सिर्फ शादी नहीं होती उसके भी अरमान है | समाज अगर अपनी बेटियों के साथ खड़ा हो जाए तो हर मीना को अपना मुकाम मिलेगा | आज बचपन एक्सप्रेस अलेक्सा रैंकिंग में २० लाख के करीब स्थान रखता है और वो दिन दूर नहीं जब वो विश्व में महिला पत्रकारिता और पत्रकारों के बड़े संस्थान के रूप में खड़ा होगा और उनके अधिकारों की लड़ाई लडेगा |


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