नैतिक एवं डिजिटल शिक्षा द्वारा समता एवं विकास की ओर अग्रसर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

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नैतिक एवं डिजिटल शिक्षा द्वारा समता एवं विकास की ओर अग्रसर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

प्रो० प्रीती सक्सेना

बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ

भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अगस्त माह में जारी की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मुख्यतः चार भागों में विभाजित है, जिसके अंतर्गत 27 अध्याय हैं। प्रथम भाग स्कूल शिक्षा, दूसरा भाग उच्चतर शिक्षा, तीसरा भाग केंद्रीय विचारणीय मुद्दे जो व्यवसायिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, प्रौद्योगिकी एवं भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति से संबंधित नीतियों के संबंध में है। भाग चार इस संपूर्ण राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन कैसे किया जाए इसकी रणनीति पर आधारित है।

इससे पूर्व भी शिक्षा नीतियां भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी की गई है एवं उनमें यथोचित संशोधन भी किए गए हैं। वर्ष 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे 1992 में संशोधित किया गया था उस नीति के कुछ कार्यों को पूरा करने का प्रयास वर्तमान शिक्षा नीति द्वारा किया गया।

यह शिक्षा नीति निश्चित रूप से हर बच्चे को उसकी क्षमता के अनुरूप आगे बढ़ने और उसके संपूर्ण सामाजिक एवं अकादमिक विकास हेतु पर्याप्त प्रावधान से परिपूर्ण है। यदि आज हम देखें तो जो वर्तमान में शिक्षा नीति चल रही थी इसमें बच्चों को संख्या ज्ञान एवं अक्षर ज्ञान जैसी मूलभूत जानकारियां उपलब्ध नहीं हो पा रही थी, परंतु शिक्षा नीति के द्वारा बुनियादी रूप से छोटे बच्चों को अक्षर ज्ञान एवं संख्या ज्ञान प्रदान करना इस नीति की प्राथमिकता है एवं जो छोटे बालक हैं उन के सर्वांगीण विकास के लिए आवश्यक है। साथ ही इस नीति की एक खास उपलब्धि इसका लचीलापन होना भी है। यहां लचीलापन से अर्थ छात्रों की रूचियों के अनुसार, उनकी अपनी प्रतिभाओं के अनुसार, उनकी अपनी क्षमताओं के अनुसार खुली छूट है कि वह किस तरह की शिक्षा ग्रहण करें एवं अपना भविष्य अपनी इच्छा अनुसार तैयार करने के लिए क्या शिक्षा हासिल करें। विशेष रुप से इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मुख्य बात जो एक शैक्षणिक अलगाववाद को समाप्त करने हेतु लाई गई है वह बहुत ही सराहनीय प्रयास है । शैक्षिक अलगाव जो विभिन्न शैक्षिक धाराओं जैसे विज्ञान, व्यवसायिक, कानून, तकनीक एवं कला शिक्षा के बीच में आज देखने को मिलता है उसको समाप्त करने एवं प्रत्येक छात्र को यह अधिकार देने कि वह कला के साथ विज्ञान, विज्ञान के साथ तकनीकी, तकनीकी के साथ व्यवसाय या व्यवसाय के साथ विधि शिक्षा से संबंधित विषयों का भी अध्ययन कर सकें जिससे वह अपनी क्षमताओं का विकास कर सके एवं अपनी एवं क्षमता के अनुसार आगे बढ़ सके एक महत्वपूर्ण भाग है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक मुख्य पहलू जो पिछले शिक्षा नीतियों में नहीं पाया जा रहा था वह है मानव मूल्यों जैसे सहानुभूति, सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना सेवा की भावना सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान वैज्ञानिक चिंतन स्वतंत्रता जिम्मेदारी बहुलता वाद, समानता और न्याय जैसे मानव एवं संविधानिक मूल्य को समाहित करता है जो प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य संविधान के अनुसार है।

भाषा की शक्ति का प्रोत्साहन करना एवं अपनी मातृभाषा में शिक्षा ग्रहण करना शिक्षा नीति का एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान है जो आगे आने वाले समय में समस्त बच्चों को न सिर्फ शिक्षा पाने के लिए प्रेरित करेगा बल्कि भारत की समृद्ध और विविध प्राचीन एवं आधुनिक संस्कृति एवं ज्ञान प्रणालियों को और परंपराओं को शामिल करने हेतु भारतीय जड़ों और गौरव से बने रहने हेतु एक प्रमाणिक साधन होगा एवं अपने भारत का ज्ञान प्राप्त कर सकेगा। इस संबंध में पाठ्य पुस्तकों और शिक्षण सामग्री को तैयार करने हेतु प्रयास किए जाएंगे जिससे विद्यार्थी विषयों पर सोचने और बोलने के लिए अपने घर की भाषा /मातृभाषा और अंग्रेजी दोनों में सक्षम हो सकें, इस राष्ट्रीय नीति का बहुत ही महत्वपूर्ण प्रावधान है। विशेष रूप से इस नीति का उद्देश्य छात्रों में उनके व्यवहार, बुद्धि, ज्ञान एवं मूल्यों के अतिरिक्त मानव अधिकार विकास एवं विश्व कल्याण हेतु विचारों को आगे लाने एवं शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने हेतु एक अनूठा प्रयास है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में विधि शिक्षा में क्या बदलाव किए गए हैं अथवा संपूर्ण नीति का विधि की शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस संबंध में सबसे पहले राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का भाग 3 जिसका अध्याय 204 विधिक शिक्षा को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने हेतु प्रावधान करता है। इसके अंतर्गत विधि से संबंधित प्रक्रिया कार्यप्रणाली और नई तकनीकी यों को अपनाने की बात कहीं गई जिससे सभी लोगों के लिए सही समय पर उचित न्याय की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके इस अध्याय में विधि शिक्षा को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय के संवैधानिक मूल्यों से संवर्धित एवं उस के आलोक में बनाए जाने की बात कहीं गई है। इस तरह हम देखते हैं एक बार पुनः विधि शिक्षा में व्यवसायीकरण एवं ऐसे विषय जो छात्रों को कारपोरेट जगत में कार्य करने हेतु तैयार कर रहे थे उनको लोकतंत्र कानून का शासन और मानव अधिकारों के माध्यम से राष्ट्र के पुनर्निर्माण में आवश्यक शिक्षा एवं निर्देशित करने हेतु कार्यक्रम बनाए जाने पर जोड़ दिया गया। विधि की शिक्षा में पाठ्यक्रम को सामाजिक सांस्कृतिक संतो के साथ साथ साक्ष्य आधारित तरीके से विधिक विचार प्रक्रिया के इतिहास न्याय के सिद्धांत न्याय शास्त्र के अभ्यास एवं अन्य उक्त विषयों को उचित एवं पर्याप्त रूप से समावेश करने की पहल इस नीति द्वारा की गई है। विधि की शिक्षा में राज्य संस्थानों को भविष्य के अधिवक्ताओं एवं निर्देशों के लिए द्विभाषी शिक्षा पर विचार करने के लिए भी प्रावधान किए गए जिससे अंग्रेजी एवं दूसरे मातृभाषा ग्रहण कर सकें।

संविधान के अंतर्गत आठवीं अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं की सूची दी गई है, अतः इस संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा मातृभाषा की जानकारी एवं उच्च शिक्षा तक उसका उपयोग एक ऐसा कदम होगा जो भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को लोकल एवं ग्लोबल के अंतर्गत उच्च स्थान प्रदान करने में सक्षम रहेगा। भारतीय भाषाओं को जीवंत और प्रासंगिक बनाए रखने में अधिगम सामग्री प्रिंट सामग्री और शब्दकोश बनाने की प्राथमिकता आवश्यक होगी साथ ही इसको लगातार अद्यतन होने रहना आवश्यक होगा। वर्तमान शिक्षा नीति में के संदर्भ में प्रयास किए गए हैं जिससे सभी भारतीय भाषाओं और उनसे संबंधित समृद्ध स्थानीय कला एवं संस्कृति का संरक्षण किया जा सके एवं इसका वेब आधारित अंकीय माध्यम से दस्तावेजीकरण किया जा सके।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का मुख्य प्रावधान प्रौद्योगिकी का उपयोग एवं एकीकरण है। आज हम देख रहे हैं कि डिजिटल इंडिया का अभियान पूरे देश में कार्य कर रहा है । कोविड-19 के समय में जहां संपूर्ण समाज वर्चुअल एवं डिजिटल पद्धति में कूद पड़ा है, ऐसी स्थिति में आज की जरूरतों को देखते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, ब्लॉकचेन, स्मार्ट बोर्ड कंप्यूटर एवं अन्य प्रकार के सॉफ्टवेयर द्वारा नासिर्फ छात्रों में सीखने की प्रतिभा का विकास वरन् समाज परिवर्तन भी होगा। नई शिक्षा नीति मैं ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा का उपयोग सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक पहल की गई है। वर्तमान में व्याप्त वैश्विक महामारी की स्थिति को देखते हुए वैकल्पिक साधनों के इस्तेमाल से शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखना ऑनलाइन शिक्षा का अधिक से अधिक लाभ उठा सतना इत्यादि विषयों पर भी अध्ययन करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों है ऑनलाइन शिक्षा का भरपूर लाभ उठा सकें जिस हेतु उपयुक्त प्रशिक्षण के विकास हेतु है आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में शिक्षा नीति की सिफारिशें जिसमें ऑनलाइन शिक्षा के लिए पायलट अध्ययन डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर ऑनलाइन शिक्षण मंच और उपकरण ऑनलाइन शिक्षा सामग्री का निर्माण एवं अन्य विभिन्नता एवं विविधता को असमानता को कम करने हेतु जनसंचार माध्यमों का अधिक से अधिक उपयोग वर्चुअल लैब डिजिटल रिपोजिटरी ऑनलाइन परीक्षा एवं मूल्यांकन, इत्यादि बहुत महत्वपूर्ण है।

डिजिटल माध्यम से शिक्षा, मातृभाषा में शिक्षा, एकल संस्थानों में बहु शिक्षा इत्यादि कुछ ऐसे प्रस्ताव वर्तमान शिक्षा नीति में हैं जिसके लिए वित्त की आवश्यकता है। अतः वर्तमान परीक्षा नीति में शिक्षा की गुणवत्ता को उच्च बनाए रखने हेतु बेहतर निवेश पर जोर डाला गया है। वर्तमान में शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च जीडीपी का मात्र 4.4 3% के आसपास है जिसको जीडीपी 6% तक करने का सुझाव इस शिक्षा नीति में किया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में प्रारंभिक बाल्यावस्था से लेकर विश्वविद्यालयों में शोध एवं प्रौद्योगिकी के अतिरिक्त ऑनलाइन शिक्षा का स्तर एवं गुणवत्ता हेतु पर्याप्त सुविधाएं एवं संसाधन में एकमुश्त धनराशि प्रदान करने के लिए प्रयास सुनिश्चित कराना अच्छा सुझाव है।

इस शिक्षा नीति का एक सिद्धांत 'सरल किंतु कठोर' भारत जैसे राज्य के लिए बहुत ही आवश्यक एवं उपयुक्त प्रयास है। इस सिद्धांत के अंतर्गत प्रक्रिया, कार्यपद्धति, उपलब्ध पाठ्यक्रम एवं कार्यक्रम में पारदर्शिता के साथ स्व- प्रकटीकरण, आधुनिक शिक्षा में पर्याप्त निवेश सरकारी तथा निजी सभी संस्थानों में अच्छे प्रशासन और तंत्र पर नियमन इस सिद्धांत को शिक्षा के क्षेत्र में आगे ले जाने हेतु एक शुभ प्रयास है।

इस नीति के क्रियान्वयन हेतु प्रावधान जिसमें वर्ष 2030- 40 के दशक तक संपूर्ण नीति का क्रियान्वयन होना सुनिश्चित किया गया है, प्रत्येक वर्ष इस नीति की समीक्षा किए जाने का प्रावधान यदि चरणबद्ध तरीके से किया जाए तो ऐसा प्रतीत होता है की वर्तमान शिक्षा नीति, जो उच्च मूल्यों, सभी के विकास हेतु प्रावधान, 'सरल किंतु कठोर' 'लोकल और ग्लोबल' जैसे समतामूलक और समावेशी शिक्षा जो सभी के लिए अनिवार्य हो, उसको प्राप्त करने हेतु एवं एक युक्तियुक्त समाज के निर्माण हेतु अत्यंत प्रभावी होंगे। समाज में समानता एवं विकास इस शिक्षा नीति के द्वारा अवश्य ही प्राप्त होगा।


लेखिका बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है |


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