जिंदगी कठिन है पर उसको जीना कैसे है ये देश राज से सीखे
जिंदगी कठिन है पर उसको जीना कैसे है ये देश राज से सीखे | दो बेटों की मौत भी उन्हें डिगा नहीं सकी| अब वो उनके बच्चे के लिए जी रहे है | ये कहानी फ़िल्मी...
जिंदगी कठिन है पर उसको जीना कैसे है ये देश राज से सीखे | दो बेटों की मौत भी उन्हें डिगा नहीं सकी| अब वो उनके बच्चे के लिए जी रहे है | ये कहानी फ़िल्मी...
जिंदगी कठिन है पर उसको जीना कैसे है ये देश राज से सीखे | दो बेटों की मौत भी उन्हें डिगा नहीं सकी| अब वो उनके बच्चे के लिए जी रहे है | ये कहानी फ़िल्मी नहीं है | इस पर ताली बजने की जरुरत नहीं है | इसे मह्सूस करने की जरुरत है |
सिनेमा के न जाने कितने दृश्य हमें रुला जाते है और हँसा जाते है पर जिंदगी के दृश्य हमें न सिर्फ रुलाते है बल्कि कई बार ईश्वरीय न्याय के बारे में भी सोचने के लिए मजबूर कर देती है |
I came to Mumbai in 1958, studied till 10th here. In 1986, I learnt rickshaw driving & have been living in it for 23 years. After my 2 sons passed away, I & my wife decided to educate our grandchildren. We work for them: 74-year-old autorickshaw driver Deshraj Jyot Singh pic.twitter.com/j0Rz0TfLxp
— ANI (@ANI) February 26, 2021
जिस उम्र में लोग बैठ कर पोते पोती को खिलाने और अपने बच्चो के साथ सकूँ के पल चाहता है उसमे देशराज हाड तोड़ मेहनत कर अपने बेटों के बच्चो को पैरो पर खड़े होने की ताकत दे रहे है |
१९५८ में सपनो की नगरी में आये देशराज ने यह कक्षा दस तक पढाई की और रिक्शा चलने लगे | सालो तक काम करने और अपने घर को पालने के बाद आज जीवन फिर से उसी मोड़ पर खड़ा हो गया | जैसे अपने बच्चो को बड़ा किया अब अपने बेटों के बच्चो को बड़ा कर उनको शिक्षित करने का काम कर रहे है |
ऐसे लोगो को कहानी आज कल हमें कम रुलाती है क्योंकि आज कल हम एक दूसरे का धर्म ,जाती और न जाने कितने कारणों से खून बहाने में लगे है | आज इंसान की जिद और उसकी लड़ाई लोगो का गला नहीं रुँधा पाती क्योंकि उनके आंसू सूख गए है और गला पहले से ही धार्मिक उन्माद में फटा पड़ा है |
देश राज जैसे हजारो आज समाज से कुछ मांग नहीं रहे है बल्कि अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे है | ऐसे वीरो को सलाम |