अफगनिस्तान की सेना ने तालिबान के आगे क्यों टेके घुटने?
अफगानिस्तान आखिर जिस बात का डर का था वही हुआ। इस आशंका के लिए किसी ज्योतिषी की जरूरत नहीं थी। सभी का मानना यही था कि तालिबान देर सबेर काबुल पर कब्जा...
अफगानिस्तान आखिर जिस बात का डर का था वही हुआ। इस आशंका के लिए किसी ज्योतिषी की जरूरत नहीं थी। सभी का मानना यही था कि तालिबान देर सबेर काबुल पर कब्जा...
अफगानिस्तान आखिर जिस बात का डर का था वही हुआ। इस आशंका के लिए किसी ज्योतिषी की जरूरत नहीं थी। सभी का मानना यही था कि तालिबान देर सबेर काबुल पर कब्जा कर ही लेगा। लेकिन यह इतनी जल्दी होगा शायद इसकी उम्मीद कम ही लोगों को होगी।
जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि तालिबान के पास 80 हजार सैनिक हैं, वहीं बताया जा रहा था अफगानिस्तान सरकार के पास तीन लाख से ज्यादा सैनिक थे लेकिन फिर भी जितनी जल्दी और आसानी से तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया उससे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन तक हैरान हैं। गौरतलब है कि दोनों सेनाओं में जहां तालिबान संख्या में कम और सैन्य संसाधनों में भी कम थे, अफगान सेना के पास संख्या और संसाधन तुलनात्मक रूप से अधिक थे।
आपको बता दें कि अमेरिका ने अफगान सेना की क्षमताओं का आंकलन नहीं किया और अमेरिकी सेना के हटने से उस पर होने वाले प्रभाव के बारे में भी नहीं सोचा। इसमें लड़ाकू विमान और अन्य सैन्य वाहनों के रखरखाव की क्षमता भी शामिल है। लेकिन अमेरीकी निगरानीकर्ताओं ने अफगान सेना में फैल भ्रष्टाचार पर चेतावनी जरूर दी थी।
यदि देखे तोह अफगान की सेना बेहद कमजोर थी। अमेरिकी पैसा के निगरानीकर्ताओं का काम यह देखना था कि मार्च 2021 तक 88 अरब डॉलर से ज्यादा पैसा लगाने का उपयोगिता कितनी थी क्या इससे अफगान सेना जमीन पर स्वतंत्र रूप से अपने विरोधियों को रोकने मे सक्षम हो सकेगी या नहीं। लेकिन अफगान सेनाओं में विभिन्न पदों पर आसीनों की शिक्षा में भारी कमी और इसके साथ सेना की आधुनिक हथियारों पर निर्भरता ने सेना को कमजोर ही किया।
इस बीच बाइडेन प्रशासन की गलती भी नजर आई। जब जो बाइडन प्रशासन अमेरिकी सेना को वापस बुलाने की औपचारिक घोषणा कर रहा था उस समय तालिबान की ताकत तेजी से बढ़ने लगी थी और कब्जे वाले इलाकों की संख्या भी। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर बाइडन प्रशासन ने यह कैसे सोच लिया कि अफगान सेनाओं को इन हलातों में छोड़ना ठीक होगा।
नेहा शाह