भारत के अन्य विश्वविद्यालयों के कीमत पर जेएनयू को आगे बढ़ाया गया

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भारत के अन्य विश्वविद्यालयों के कीमत पर जेएनयू को आगे बढ़ाया गया

जहां एक तरफ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय लगातार विवादों में घिरा हुआ है वहीं देश के लगभग सभी विश्वविद्यालय बिना किसी रूकावट के अपना काम करने में लगे हैं इसके बावजूद कि उनको जेएनयू से बहुत ही कम ग्रांट मिलती है।

भारत सरकार की दोहरी रवैया का नुकसान देश के अन्य विश्वविद्यालयों को हुआ है और अगर देखा जाए तो जेनिंग पर जितना औसतन धन सरकार खर्च करती है उसका 20 गुना कम इलाहाबाद विश्वविद्यालय या बीएचयू पर होता है।दिल्ली में स्थित होने के कारण मीडिया की नजरों में लगातार बने रहने के कारण जेएनयू को विशेष दर्जा हासिल होता चला गया वहीं देश के अन्य प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय बजट के संकट से जूझते रहे और अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए लड़ाई लड़ते रहे।

आज जहां अन्य विश्वविद्यालयों से देश के लिए वैज्ञानिक और कलाकार के निकल रहे हैं वहीं चीनी जैसी संस्था देश के टुकड़े टुकड़े करने वाले गैंग का नेतृत्व कर रही है।अब समय आ गया है कि अन्य विश्वविद्यालयों को मौका दिया जाए और जेएनयू जैसी संस्थाओं को जिस तरह से धन उपलब्ध कराया जा रहा था उसमें कटौती कर उसे दूसरे विश्वविद्यालयों को जो राष्ट्र के निर्माण में लगे हैं उनको दिया जाना चाहिए।जेएनयू में एक समय मार्क्सवादी शिक्षकों का इतना जोर था कि वह यूजीसी के नियमों को मानते ही नहीं थे और कई बार तो एक-एक शिक्षक के अंडर में 20 20 30 30 शोधार्थी शोध कर रहे होते जो यूजीसी के मानकों के एकदम खिलाफ है।पर मजाल है कि कोई जेएनयू के शिक्षकों को कह दे कि आपने यूजीसी के नियमों का अवहेलना की है अपने मार्क्सवादी शिष्यों को पीएचडी कराने के लिए जेएनयू के शिक्षक उनको पीएचडी में इन रोल कर लेते थे और उनसे अपनी लड़ाई आगे बढ़ाते थे।आज जेएनयू में यही हुआ है कि मार्क्स वादियों की एक फौज ने मार्क्सवादी उनकी दूसरी फौज को वहां शिक्षक बनाया आज वही शिक्षक तीसरी पीढ़ी के छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और साथ ही साथ देश का नुकसान करने में भी वह आगे है ।

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