भारतीय शोध जर्नल "फिजियोलोजी और मालिक्यूलर बायलोजी आफ प्लांट्स" वैश्विक शोध पत्रिकाओं के शीर्ष चतुर्थाश में प्रवेश

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भारतीय शोध जर्नल फिजियोलोजी और मालिक्यूलर बायलोजी आफ प्लांट्स वैश्विक शोध पत्रिकाओं के शीर्ष चतुर्थाश में प्रवेश
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भारतीय मूल की एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक शोध पत्रिका, फिजियोलॉजी एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी ऑफ प्लांट्स' (पीएमबीपी) ने हाल ही में विश्व स्तर पर सभी पादप विज्ञान पत्रिकाओं के शीर्ष चतुर्थक में प्रवेश कर लिया है।

इसे ०.७५४ का स्कोपस जर्नल रैंकिंग (एसजेआर) और ३.४ का स्कोर प्राप्त हुआ है, जिससे यह पादप और कृषि विज्ञान के सभी क्षेत्रों में सर्वोच्च उद्धृत भारतीय पत्रिका बन गयी है। यह वैश्विक वैज्ञानिक साहित्य में भारतीय पत्रिकाओं, उनके संपादकों और प्रकाशकों के बढ़ते प्रभाव के संकेतक हैं।

"हमें पिछले 2 वर्षों से लगातार स्प्रिंगरनेचर नामक अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशक की 2190 पत्रिकाओं में 'संपादकीय उत्कृष्टता के लिए बैज प्राप्त हो रहा है, परन्तु वैश्विक स्तर के शीर्ष चतुर्थक तक पहुंचना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

यह भारतीय शोध जर्नल प्रारम्भ से ही अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप का रहा है, पर अब यह भारतीय मूल की अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के लिए एक नए युग की शुरुआत करने की वाहक बन रही है।

इसके दो मुख्य सम्पादकों प्रोफ़ेसर राणा प्रताप सिंह, डीन एकेडिम अफेयर्स, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ तथा प्रोफ़ेसर नन्दुला रघुराम, जैव प्रौद्योगिकी विभाग गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (जहाँ पत्रिका का दिल्ली संपादकीय कार्यालय चलता है) ने बताया कि, "अर्धवार्षिक पत्रिका के रूप १९९५-२००४ में प्रति वर्ष लगभग 20 लेख प्रकाशित करने से लेकर अब मासिक पत्रिका के रूप में यह शोध जर्नल प्रति वर्ष 200 तक लेख प्रकाशित कर रहा है।

इसने अपनी विनम शुरुआत से एक विशिष्ट और लंबा सफर तय किया है, जो अभूत पूर्व है इसकी स्थापना १९९५ में स्वर्गीय प्रोफ़ेसर एच.एस. श्रीवास्तव (रोहिलखंड विश्वविद्यालय, बरेली) और प्रोफ़ेसर राणा प्रताप सिंह (तब महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक में कार्यरत) ने किया था और तब शायद इसकी इसके इस उत्कृष्टता के स्तर तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं की गयी थी।

इसके दोनों मुख्य सम्पादक और पूरी सम्पादकीय टीम इस शोध पत्रिका की उत्कृष्टता और स्वर्गीय प्रोफ़ेसर श्रीवास्तव के वैश्विक दृष्टिकोण की विरासत को आगे बढ़ाते हुए बहुत गौरव अनुभव कर रहे हैं|







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