उत्तर प्रदेश में फसल अवशेष दहन (जलाने से) रोकने हेतु नियम व कानून

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उत्तर प्रदेश में फसल अवशेष दहन (जलाने से) रोकने हेतु नियम व कानून
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उत्तर प्रदेश में फसल अवशेष दहन (जलाने से) रोकने हेतु नियम व कानून


डॉ० रुद्र पी० सिंह, डॉ आर० के० सिंह, डॉ रणधीर नायक एवं प्रो० डी० के० सिंह,


कृषि विज्ञान केन्द्र, कोटवा, आज़मगढ़ (उ०प्र०)


rudrapsingh.doe@gmail.com




उत्तर प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 243.39 लाख हेक्टेयर है, जिसमें 104.21 लाख हेक्टेयर में खरीफ एवं 135.22 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में रबी की फसलें उगाई जाती हैं l खरीफ में 58.96 लाख हेक्टेयर में धान, 97.88 लाख हेक्टेयर में गेहूं व 21 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की फसल ली जाती है l इन फसलों की कटाई के उपरांत पर्याप्त मात्रा में पुआल, भूसा एवं गन्ने की पत्तियां अवशेष के रूप में बच जाती हैं l इनमें से गेहूं/जौ का भूसा तो पशुओं के चारे के रूप में तथा धान का पुआल एवं गन्ने की सूखी पत्तियां सामान्यतः पशुओं के बिछावन आदि में प्रयोग किया जाता है परन्तु इनका अधिकांश भाग खेत में ही जला दिया जाता है l विगत कुछ वर्षों से मजदूरों की अनुपलब्धता तथा फसलों की कटाई हेतु आधुनिक कृषि यंत्रों व कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन का प्रयोग करने से लगभग 1.0 से 1.5 फीट उंचाई के फसल अवशेष अथवा सूखी पत्तियां खेत में ही अवशेषों के रूप में रह जाते हैं l अगली फसल के लिए खेत को खाली करने के लिए अधिकतर किसान फसल अवशेष को जला देते हैं l


फसल अवशेष जलाने से होने वाली हानियां


(i) फसल अवशेष जलाने से उनके जड़, तना, पत्तियों में संचित लाभदायक पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं l


(ii) फसल अवशेषों को जलाने से मृदा ताप में बढोत्तरी होती है जिसके कारण मृदा के भौतिक, रासायनिक व जैविक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है l


(iii) इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है बल्कि खेतों में मित्र कीटों व सूक्ष्मजीवों के साथ साथ मृदा स्वास्थ्य /उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं l


(iv) फसल अवशेष जलाने से पशुओं के चारे में कमी होने लगती है तथा साथ ही खेतों में आग लगाने से दूसरे किसान के खेतों में भी आग लगने की संभावना रहती है l


उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न शासनादेशों (संख्या 1176/2021/1363531/12-2099/85/2021 दिनांक 09 जून, 2021, 39/2019/2882/12-02-2019-14-2016 दिनांक 04 अक्टूबर, 2019, 42/2019/2997/12-02-2019-14/2016 दिनांक 19 अक्टूबर, 2019 तथा 1760/12-02-2020-14/2016 दिनांक 26 अगस्त, 2020) के माध्यम से पराली जलाने के विरुद्ध निम्नानुसार नियम व कानून बनाये गए हैं l


शासन स्तर एवं जनपद स्तर पर एक सेल का गठन करते हुए प्रत्येक दिन की घटनाओं का अनुश्रवण किये जाने एवं प्रत्येक गाँव के ग्राम प्रधान एवं क्षेत्रीय लेखपाल को प्रत्येक दशा में अपने सम्बंधित क्षेत्र में पराली/कृषि अपशिष्ट जलाने की घटना को रोके जाने के निर्देश दिए गए हैं l जन सामान्य के मध्य पराली जलाने से मिट्टी, जलवायु एवं मानव स्वास्थ्य को होने वाली हानि से अवगत कराने एवं जिन लोगों द्वारा पराली जलाये जाने की घटना सामने आती है, उनके विरुद्ध विधिक कार्यवाही किये जाने के निर्देश निर्गत किये गए हैं l मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिट पिटीशन (सिविल) संख्या- 13029/1985 एम सी मेहता बनाम यूनियन आफ इंडिया व अन्य एवं मा० राष्ट्रीय हरित अभिकरण में योजित ओरिजिनल अप्लीकेशन नं० 666/2018 श्रीमती गंगा लालवानी बनाम यूनियन आफ इंडिया व अन्य के संबंध में निर्गत आदेशों के अनुपालन में फसल अवशेष जलाने से हो रहे वायु प्रदूषण की रोकथाम अनिवार्य है l भारत सरकार के अध्यादेश दिनांक 13 अप्रैल, 2021 द्वारा डॉ एम एम कुट्टी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु आयोग का गठन किया गया है l आयोग के निर्देशानुसार पराली दहन को समाप्त करने हेतु नेशनल कैपिटल रीजन व सहवर्ती क्षेत्रों का कम्प्रिहेंसिव ऐक्शन प्लान तैयार कर भेजा गया है जिसका प्रभावी क्रियान्वयन किया जाना है l आगामी माहों में खरीफ फसलों (धान, मक्का, उड़द आदि) की कटाई के पश्चात् पराली जलाये जाने की संभावना के दृष्टिगत फसलों के अवशेष जलाये जाने से उत्पन्न हो रहे प्रदूषण की रोकथाम हेतु निम्नलिखित कदम प्राथमिकता पर उठाये जाने हैं l


इन सीटू योजनान्तर्गत यन्त्र वितरण


भारत सरकार द्वारा संचालित फसल अवशेष प्रबंधन की योजना अंतर्गत फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 14 प्रकार के यन्त्र चिन्हित किये गए हैं l कृषकों को यह यन्त्र उपलब्ध कराने हेतु निम्नवत व्यवस्थाएं बनाई गयी हैं l


(i) व्यक्तिगत कृषकों को कृषि यन्त्र तथा एफपीओ एवं पंजीकृत कृषक समितियों द्वारा फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना l


(ii) व्यक्तिगत कृषकों को 50 प्रतिशत अनुदान तथा एफपीओ एवं पंजीकृत कृषक समितियों को फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना हेतु 80 प्रतिशत अनुदान पर यन्त्र विभागीय पोर्टल के माध्यम से लाभार्थी एवं यंत्रों के चयन का कार्य l


(iii) चयन की प्रक्रिया समयान्तर्गत पूर्ण करते हुए यंत्रों का क्रय सुनिश्चित करना व तदनुसार जनपद स्तर पर समीक्षा कर यंत्रों के क्रय का शत प्रतिशत लक्ष्य पूर्ति कराना l


(iv) सहकारी समिति/गन्ना समिति/पंचायतों/उद्यानिकी समितियों के माध्यम से रुपये 5.00 लाख तक के फसल अवशेष प्रबंधन के कृषि यन्त्र 80 प्रतिशत अनुदान पर उपलब्ध कराया जाना l


उक्त के संबंध में शासनादेश संख्या–1633/12-2-2020-14/2016 दिनांक 13 अगस्त, 2020 में व्यवस्था उल्लिखित की गयी है l


(v) इस सन्दर्भ में यह अपेक्षा है कि जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति की तत्काल बैठक आयोजित कर सहकारी समिति/गन्ना समिति/पंचायतों/उद्यानिकी समितियों के चयन का कार्य शासनादेश में दी गयी व्यवस्था के अनुसार तत्काल पूर्ण कराना सुनिश्चित किया जाय, जिससे माह जून में ही कृषि निदेशालय में सूचना उपलब्ध हो सके एवं चयनित संस्थाओं के अपने अंश के रुपये 1.00 लाख की व्यवस्था के उपरांत कृषि निदेशालय स्तर से दी जाने वाली रुपये 4.00 लाख की धनराशि हस्तांतरित की जा सकेl तदनुसार तत्काल कार्य पूर्ण कराना सुनिश्चित किया जाये l


(vi) संबन्धित संस्थाओं द्वारा भी यंत्रों का क्रय शासन द्वारा निर्धारित समय तक सुनिश्चित किया जाए l


(vii) इन संस्थाओं द्वारा क्रय किये गए यंत्रों को बाज़ार दर से कम दर पर उचित किराए पर अपने कार्य क्षेत्र के किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन कार्य हेतु उपलब्ध कराया जाए l


आईईसी (प्रचार प्रसार) के कार्य


(i) कृषकों को जागरूक बनाने के लिए इनफार्मेशन एजुकेशन कम्युनिकेशन (आईईसी) एक्टिविटी सम्मिलित की जाय एवं कृषकों से सम्बंधित हर विभाग के कार्यक्रम में इनका समावेश हो l


(ii) जनपद स्तर पर आयोजित किये जाने वाले सभी गोष्ठियों को प्रारंभ कर दिया जाय तथा फसल अवशेष जलाने से मिट्टी, जलवायु व मानव स्वास्थ्य को होने वाली हानि के विषय में अवगत कराया जाय l


(iii) पराली जलाने की घटना के संबंध में विधिक प्रावधानों से सभी को अवगत कराया जाए l


(iv) मुख्यालय स्तर पर कृषकों की बात वैज्ञानिकों के साथ वार्ता में कृषकों को फसल अवशेष जलाने के संबंध में अवगत कराया जाए l निकट भविष्य में आयोजित होने वाले विभिन्न प्रसार कार्यक्रमों में भी कृषकों को पराली जलने की घटना की रोकथाम एवं इससे हो रहे नुकसान के संबंध में अवगत कराया जाये l


(v) फसल अवशेष को जलाने से रोकने के लिए न्याय पंचायत स्तर, विकास खंड स्तर, जनपद एवं राज्य स्तर पर गोष्ठी के आयोजन लीफलेट्स, परमानेंट होर्डिंग्स, समाचार पत्रों में विज्ञापन, रेडियो जिंगल्स, दूरदर्शन पर आडियो वीडियो क्लिप्स तथा किसानों के खेतों में प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण तथा स्कूल/कालेजों में निबंध लेखन व वाद विवाद प्रतियोगिता का आयोजन व स्काउट गाइड, एनएसएस एवं एनसीसी संगठनों का सहयोग भी जन जागरूकता हेतु प्राप्त किये जाने के माध्यम से किसानों को फसल अवशेष को जलाने से होने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराया जाये l


यह भी जागरूकता फैलाना है कि पराली न जलाने से भूमि एवं पर्यावरण में सुधार होगा, उत्पादन में वृद्धि होगी तथा फसल अवशेष न जलाने से जो जैविक पदार्थ खेतों में मिलेंगे उससे खेतों में जीवांश पदार्थ की बढ़ोत्तरी होगी l


पराली का इन सीटू प्रबंधन


(i) धान की कटाई के समय कम्बाइन हार्वेस्टर मशीन में सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (सुपर एस०एम०एस०) लगायें जाएँ अथवा कटाई के बाद फसल अवशेष प्रबंधन के यंत्रों जैसे सुपर सीडर, हैप्पी सीडर, पैडी स्ट्रॉ चोपर, स्रेडर, मल्चर, श्रब मास्टर, रोटरी स्लेशर, हाइड्रोलिक रिवर्सिबल एम बी प्लाऊ, जीरो टिल सीड कम फर्टीड्रिल का प्रयोग खेत में अवश्य किया जाये अथवा क्रॉप रीपर, रीपर कम बाइंडर, रेक एवं बेलर का प्रयोग कर फसल अवशेष को अन्य कार्यों जैसे पशु चारा, कम्पोस्ट खाद बनाने, बायो कोल एवं बायो फ्यूल एवं सी०बी०जी० आदि में उपयोग किये जाने हेतु प्रेरित किया जाये l


(ii) खेतों में फसल अवशेष को शीघ्रता से सड़ाने हेतु पानी भरकर यूरिया का छिड़काव भी किया जा सकता है जिससे शीघ्रता से फसल अवशेष खाद के रूप में परिवर्तित हो जाता है l


(iii) शासन के पत्र सं० 2014/12-2-2020-14/16 टी०सी० दिनांक 01 नवंबर, 2020 के क्रम में धान की पराली का इन सीटू प्रबंधन कर कृषकों के खेत में तथा सामुदायिक तौर पर कम्पोस्ट बनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है l इसके लिए किसान के खेत में अथवा सामुदायिक स्थलों पर उचित क्षमता वाले कम्पोस्ट खाद के गड्ढे का खुदान कराया जाना उचित होगा l कम्पोस्ट खाद के गड्ढे का खुदान पराली/नरई/पताई को उखाड़ने, उनको उठाकर लाने व गड्ढे में डालने तथा अन्य सामग्री मद का वहन शत प्रतिशत मनरेगा से किया जा सकता है l गड्ढे में पराली डालने के उपरांत इस पर बायो डीकम्पोज़र द्वारा तैयार कल्चर का छिड़काव किया जाये l यह छिड़काव गड्ढे में एकत्रित पराली पर 3-4 दिनों के अंतराल पर कई बार किया जायेगा l इससे कम्पोस्ट खाद तैयार हो जाएगी तथा इस कम्पोस्ट खाद का प्रयोग गेहूं की फसल लेने के दौरान खेतों में किया जा सकता है l इससे निश्चित तौर पर गेहूं की पैदावार में वृद्धि होगी तथा रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी l सामुदायिक परियोजनाओं में ट्रैक्टर ट्राली से पराली/नरई/पताई के ढुलान का व्यय राज्य वित्त/14 वां वित्त की धनराशि से अभिसरित करते हुए मनरेगा योजना से किया जा सकता है l


(iv) गत वर्षों में वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग सफलतापूर्वक किया गया है जिसके परिणाम उत्साहवर्धक रहे हैं l वर्ष 2020-21 में 2.66 लाख डीकम्पोज़र बोतल का वितरण किसानों को किया गया है l डीकम्पोज़र का एक बोतल एक एकड़ क्षेत्रफल हेतु पर्याप्त होती है l इस वर्ष प्रयास कर इस कार्यक्रम को और गति डी जाये जिससे कृषक अपने खेत में ही डीकम्पोज़र का प्रयोग कर शीघ्रता से फसल अवशेषों को सड़ा सकें तथा अपने खेतों में जैविक अंश बढ़ा सके l इसमें फसल अवशेष जलाये जाने की घटनाओं में कमी आएगी l


पराली का एक्स सीटू प्रबंधन


(i) गत वित्तीय वर्ष की भांति कृषकों के खेत से पराली संग्रह कर निराश्रित गोशालाओं में लाने हेतु प्रेरित किया जाय l


(ii) कृषकों के खेत से पराली संग्रह करने हेतु आवश्यक धनराशि की व्यवस्था मनरेगा अथवा वित्त आयोग द्वारा की जाय l


(iii) कृषकों के खेत से गौशाला स्थल तक पराली संग्रह तक पराली का ढुलान पंचायतीराज अनुभाग -1 के शासनादेश संख्या-1076/33-1-2020-3003/2017, दिनांक 02 जून, 2020 के प्रस्तर 2 के अनुरूप किया जाय l


(iv) पराली में उपलब्ध सिलिका की मात्रा के दृष्टिगत गौशालाओं में चारे हेतु उपयोग में लाये जाने वाले चारे की कुल मात्रा का 25 प्रतिशत ही पराली चारे को मिश्रित किया जाये l


(v) पराली का गौशाला स्थल में पशुओं के बिछावन य अन्य उपयोग में भी लाया जाये l


(vi) वर्तमान वित्तीय वर्ष में प्रदेश में कम से कम एक लाख मीट्रिक टन पराली निराश्रित गौशालाओं में भेजा जाये l गौशालाओं में निराश्रित पशुओं के चारे हेतु पराली/चारा/भूसा बैंक के रूप में क्रियान्वित किया जाये l


(vii) गत वर्ष उन्नाव जनपद में सफलता पूर्वक संचालित ''पराली दो खाद लो'' कार्यक्रम का संचालन वृहद् रूप से सभी जनपदों में स्थापित गौशालाओं में अनिवार्य रूप से चलाया जाये l गत वर्ष 2 ट्राली पराली के बदले एक ट्राली खाद किसानों को उपलब्ध कराई गयी थी l प्रयास किया जाये कि गौशालाओं में भंडारित खाद का सदुपयोग इस कार्यक्रम में पूरी तरह किया जाये जिससे किसानों को खाद प्राप्त होगी, गौशालाओं में चारे पर होने वाले व्यव भार में कमी आएगी और किसानों के खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी व फसल अवशेष प्रबंधन भली भांति संभव हो सकेगा l


प्रवर्तन की कार्यवाही


(i) सभी को यह भी अवगत कराया जाये कि मा० राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के अनुसार फसल अवशेष जलाया जाना कानूनी रूप से निषिद्ध है l इसके उल्लंघन पर सम्बंधित के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जाएगी l फसल अवशेष जलाये जाने का दोष सिद्ध होने पर 2 एकड़ से कम भूमि वाले कृषकों के लिए रू० 2500/- प्रति घटना, 2 से 5 एकड़ भूमि रखने वाले लघु कृषकों के लिए रू० 5000/- प्रति घटना तथा 5 एकड़ से अधिक भूमि रखने वाले बड़े कृषकों के लिए रू० 15000/- प्रति घटना पर्यावरणीय क्षति के रूप में वसूली किये जाने का प्राविधान है l


(ii) प्रत्येक राजस्व अथवा राजस्व गाँव क्लस्टर के लिए एक राजकीय कर्मचारी को नोडल अधिकारी नामित किया गया है, जो कि सभी के मध्य प्रचार प्रसार करते हुए फसल अवशेष आदि को न जलने देने के लिए आवश्यक कदम उठाये l


(iii) राजस्व ग्राम के लेखपाल की जिम्मेदारी होगी कि अपने क्षेत्र में फसल अवशेष जलने की


घटनायें बिल्कुल न होनें दें अन्यथा उनके विरुद्ध भी कार्यवाही की जायेगी l


(iv) समस्त थाना प्रभारियों को यथोचित समय पर निर्देश प्रसारित किया जाय की अपने क्षेत्र में फसल अवशेष को जलने से रोकने के लिए प्रभावी कार्यवाही करें तथा किसी भी दशा में फसल अवशेष को न जलने दें l


(v) जनपद स्तर पर अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व की अध्यक्षता में एक सेल स्थापित


करने के निर्देश पूर्व में दिये जा चुके हैं l उक्त सेल फसल की कटाई से रबी की बोवाई तक आवश्यक मानिटरिंग की कार्यवाही सुनिश्चित करेंगी l


(vi) शासनादेश संख्या-581/35-1-2018-5, दिनांक 06-08-2018 द्वारा सम्बंधित उप जिलाधिकारी के प्रवर्तन में गठित सचल दस्ते को भी फसल की कटाई के प्रारंभ होने के पूर्व क्रियाशील कर दिया जाय l सचल दस्ते का यह दायित्व होगा की फसल अवशेष आदि जलने की घटना की सूचना मिलते ही तत्काल मौके पर पहुँच कर सम्बंधित के विरुद्ध विधिक कार्यवाही सुनिश्चित करेंगे l


(vii) यह भी सुनिश्चित करें कि फसल कटाई के दौरान प्रयोग की जाने वाली कम्बाइन हार्वेस्टर के साथ सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अथवा स्ट्रा रीपर अथवा स्ट्रा रेक एवं बेलर अथवा अन्य कोई फसल अवशेष प्रबंधन यन्त्र का उपयोग किया जाना अनिवार्य होगा l यह सुनिश्चित किया जाये की उक्त व्यवस्था बगैर आपके जनपद में कोई भी कम्बाइन हार्वेस्टर से कटाई न करने पाए l


(viii) यह भी सुनिश्चित किया जाय की जनपद में चलने वाली प्रत्येक कम्बाइन हार्वेस्टर के साथ कृषि विभाग/ ग्राम्य विकास विभाग का एक कर्मचारी नामित रहे जो अपनी देख रेख में कटाई कार्य करायें l यदि कोई भी कम्बाइन हार्वेस्टर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम अथवा स्ट्रा रीपर अथवा स्ट्रा रेक एवं बेलर य अन्य फसल अवशेष प्रबंधन यंत्रों के बगैर चलते हुए पाई जाय तो उसको तत्काल सीज कर दिया जाय और कम्बाइन मालिक के स्वयं के खर्चे पर सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम लगवा कर ही छोड़ा जाय l


(ix) उक्त के अतिरिक्त गन्ना की कटाई के दौरान गन्ने की पत्तियों को जलाये जाने की घटनाएँ भी प्रकाश में आती हैं तो यह भी सुनिश्चित किया जाय कि गन्ने की पत्तियों को न जलने दिया जाय l


(x) इस अवधि में कूड़ा जलाने के घटनाओं को रोकने के लिए भी प्रभावी कदम उठाये जाएँ l


(xi) सभी जिलाधिकारियों का व्यक्तिगत दायित्व होगा कि उनके जिले में फसल अवशेष /कूड़ा जलाने की कोई घटना को रोकने हेतु कार्य योजना का समयबद्ध क्रियान्वयन समस्त विभागों से समन्वय कर सुनिश्चित करें l कृषि अपशिष्ट जलने की घटनाएँ पाए जाने पर मा० सर्वोच्च न्यायालय एवं मा० राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश के उल्लंघन के संबंध में प्रत्येक स्तर का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जायेगा l




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