कानपुर में दशहरे पर नीलकंठ पक्षी को उड़ाने की चलती है प्राचीन परम्परा

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कानपुर में दशहरे पर नीलकंठ पक्षी को उड़ाने की चलती है प्राचीन परम्परा

कानपुर के नयागंज चौराहे पर लगी ये भीड़ नीलकंठ पक्षी खरीदने के लिए है| यहां नीलकंठ पक्षी बेचने वाले बहेलियों का बाजार लगा है| नीलकंठ खरीदने वालो में व्यापारी, महिलाये, युवक सब शामिल है| लेकिन सर्राफा व्यापारियों की संख्या इसमें ज्यादा है| बहेलिये से नीलकंठ खरीदकर ये लोग उसे आसमान में उड़ा देते है , ऐसी मान्यता है जो भी व्यक्ति दहशरे के दिन नीलकंठ खरीदकर उड़ाता है उसके जीवन का बड़े से बड़ा संकट कट जाता है । कानपूर में ये परम्परा आजादी के पहले से चली आ रही है । आपको बता दे की शास्त्रों में नीलकंठ को भगवान् शिव का अवतार माना जाता है भगवान शिव ने जब समुद्र मंथन के समय निकलने वाले जहर का पान किया था |उस समय उनके गले का रंग जहर के कारण नीला हो गया था तभी से उनका एक नाम नीलकंठ भी कहा जाता है। दशहरे पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए साधू सन्यासी भी नीलकंठ को आसमान में उड़ाते है लेकिन वे पहले नीलकंठ को भोजन कराते है उसके बाद ही उसे आसमान में छोड़ते है।

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