क्या अखबार के रिपोर्टर इंसान नहीं है , तरुण की मौत से सरकार पर उठ रहे सवाल

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क्या अखबार के रिपोर्टर इंसान नहीं है , तरुण की मौत से सरकार पर उठ रहे सवाल

मीना पाण्डेय , प्रबंध संपादक , बचपन एक्सप्रेस

दिल्ली स्थित एम्स AIIMS से खबर आ रही है कि तरुण सिसोदिया नाम के पत्रकार ने एम्स की बिल्डिंग से छलांग लगा कर ख़ुदकुशी की कोशिश की है और इस खबर लिखने तक सोशल मीडिया के माध्यम से जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार उनकी मौत हो गयी है -

ये दैनिक भास्कर के दिल्ली आफिस में बतौर रिपोर्टर कार्यरत थे.

तरुण सिसोदिया की उम्र 34 साल बताई जा रही है. त

तरुण सिसोदिया दैनिक भास्कर से पहले टाइम्स ग्रुप के इवनिंगर अखबार सांध्य टाइम्स में काम करते थे.

दैनिक भास्कर प्रबंधन तेजी से अपने कर्मियों की नौकरियां ले रहा है. तरुण सिसोदिया का भी नंबर आने वाला था.

तरुण सिसोदिया के फेसबुक प्रोफाइल से पता चलता है कि वे शादीशुदा हैं. उनकी एक छोटी-सी बेटी भी है.

सरकारों ने सब की चिंता की पर उस मध्यम वर्गीय लोगों की चिंता नहीं की जो नौकरीपेशा तो है पर नौकरी जाने पर उनका सारा परिवार बिखर सकता है | इस दर्द की समझ सरकारों को नही है | ये वो वर्ग है जो ईमानदारी से टैक्स भरता है और सरकार के हर आदेश को मानता है - पर सरकार के लिए इस वर्ग की चिंता इसलिए नहीं है की ये कोई बड़ा वोट बैंक नहीं है |

जिंदगी भर माँ बाप के पेट काट कर पढ़ाने के बाद २० - २५ हजार की नौकरी कर रहा तरुण या कोई और हमेशा तंगी में रहता है पर वो टूटता नहीं है | वो अपने बेटे -बेटी के लिए वही खाब देखता है जो उसके माँ बाप उसके लिए देखते हुए मर जाते है |

पर क्या दोष इस मध्यम वर्ग का है | इनके लिए कोई सरकारी घोषणा नहीं है - ये पढ़े लिखे है और आपके ही सिस्टम ने इन्हें जिन्दगी के जंग में झोका है जहाँ एक अदद सामान्य जिंदगी के लिए ये तरसते रहते है -

अफ़सोस तरुण तुम कमजोर निकले -एक बार अपनी बेटी या पत्नी के बारे में तो सोचा होता - तुम होते तो उनका सहारा थे - आज उनको ही बेसहारा कर के निकल गए - ये तो मुक्ति का मार्ग नहीं था | ये वो सारे कसमे और वादे तो नहीं थे जो तुमने अपनी पत्नी के साथ लिए थे |

माना कि ये समय रात्रि काल है पर सुबुह तो होनी है और अगर रात लम्बी है तो सुबह का इंतज़ार थोडा ज्यादा हो जाएगा पर इस काली रात में तुम गुम हो गए - कहाँ जायेगी तुम्हारी बेटी अपने पापा को खोजने के लिए | इस अंधरे में दरिन्दे बैठे है और तुमने बिना सोचे समझे अपने पत्नी और बच्ची को इस काली रात के हवाले कर दिया |

ये तो एक पिता का कर्तव्य नहीं है - नौकरी जाती तो फिर आती - रात जायेगी और फिर सुबह आएगी - पर अब उस बेटी का पिता कहाँ से आएगा - उस स्त्री का सुहाग कहा फिर खिल्खिलायेगा | तुम इतने कमजोर थे तो उनकी जिम्मेदारी न ली होती | बीच मंझधार में पतवार नदी में डालने से क्या मिलेगा | तुम तो गए पर मुक्त नहीं होगे -

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