कहानी कहने के लिए जरुरी नहीं की हाथ में कलम हो

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कहानी कहने के लिए जरुरी नहीं की हाथ में कलम हो

हरी कार्की

दृश्य के पीछे अनन्त दृश्य होते हैं, कहानी के पीछे होती हैं अनन्त कहानियाँ. इन सभी घटनाओं में कई किरदारों की भूमिका होती है लेकिन इन्हें कहानी करने वाला कलाकार एक ही होता है.
मुझे अच्छी तरह से याद है कि वो साल 2007 का सितंबर महीना था और शाम का कोई छह-सात के बीच का समय रहा होगा. टीवी खुली थी, केबल आज लुका-छुपी के मूड में था, ऑनलाइन स्कोर भूल जाइए उस वक़्त तक इंटरनेट जैसी चीज़ के बारे में सिर्फ़ पढ़ा ही पढ़ा था. आसपास सब कुछ उथल-पुथल था, घर का कोई सामान कायदे से नही रखा गया था. एक ठीक-ठाक शटर लगे कमरे में (जिसे दुकान कहा जाना ज्यादा बेहतर होगा) हमारे घर का सारा सामान बेतरतीबी से मिलाया गया था. एक लोहे के ड्रम के ऊपर टीवी रख दिया गया था. जिसके टूटने का डर तो था लेकिन गिरकर नही, मेरे हाथों फूटकर.
ड्रम पर रखी गयी टीवी, घर बनवाए जाने की वजह से एक ही जगह पर ठूसा गया सामान, कमरे के भीतर की उमस और बिजली, केबल का बार-बार आना-जाना, भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बीच इतनी झलाहट दे सकता था, इस बात का एहसास मुझे उस दिन पहली बार हुआ.
देश में बारिश होने के दिन थे, मौसम विभाग की मौसम संबंधित भविष्यवाणी उस वक़्त भी आज जितनी ही विफल थी. मैच के वक़्त हमारे लखनऊ में मौसम कैसा था, ठीक कह पाना मुश्किल था. लेकिन बारिश - आँधी जैसा कुछ तो था जो बार-बार बिजली के तारों में करंट को मार दे रहा था और जिससे टीवी को बार बार रतौंधी हो जा रही थी.
मुझे आज लगता है उस दिन मेरी झललाहट ने मेरे मन को ऐसी सीमांत स्थिति पर ला खड़ा किया था कि अगर उसमें थोड़ी सी और दुविधा जुड़ती तो मेरे पास याद करने को एक फूटी टीवी भी होती और मुझे अपनी इस अति-भावुकता के लिए तबीयत से कूटा भी जाता.
बहरहाल उस दिन कई ऐसी बातें थी जिनको मैंने महसूस नही किया लेकिन आज उन बातों का इल्म मुझे है कि उन दिनों निर्माण केवल मेरे घर पर नही हो रहा था, यहाँ से लगभग आठ हजार किलोमीटर दूर साउथ अफ्रीका में भी एक कलाकार छोटी छोटी कहानियाँ लिखता हुआ अपनी कहानी लिख रहा था.
असल में उसका क्रिकेट खेलना कहानी कहने जैसा है। वह एक कलाकार है जिसे मालूम है एक अच्छी कहानी और बढ़िया क्रिकेट मैच लोग कभी नही भूलते.
भारत-पाकिस्तान के बीच पहले टी-20 वर्ल्डकप फाइनल के मुकाबले का आखिरी ओवर और धोनी का गेंद जोगिंदर शर्मा को देना. बाकि की कहानी आप बेहतर जानते है.
यह फैसला कैसा था? मुश्किल था लेकिन बिलकुल सही था इसलिए नहीं क्योंकि भारत मैच जीता, मान लें अगर भारत वो मैच हार भी जाता तो भी धोनी का वो निर्णय सफल ही माना जाता. कुछ लोग इस स्थिति में उसे बेहतर खिलाड़ी न मानते लेकिन तब भी वह उम्दा कलाकार रहते ही. जानते है क्यों, क्योंकि धोनी ने उस दिन उस क्रिकेट मैच को केवल खेल नही बल्कि एक अधूरा आर्ट पीस माना और एक बेहतरीन कलाकार की तरह बिना किसी डर और जल्दबाजी के आखिरी वक़्त तक उस पीस को खुद से जोड़े रखा और फिर कविता में प्रकट हुई कविता. कहानी कहानियों से जुड़ती गयी.
लोगों ने उस दिन वर्ल्डकप फाइनल देखा और उस समय मैं भी उसे वैसे ही देख पाया लेकिन आज मैं जब उस दिन की स्मृतियों की ओर लौटता हूँ तो मुझे उस स्थान पर मोनालिसा मुस्कुराती दिखती है और उस दिन की आवाजों में सिम्फनी जैसा कुछ महसूस होता है.
यकीन मानिए हर क्षेत्र में सच्चे कलाकार होते है जो हार-जीत, सफलता-विफलता से ऊपर आकर चीजों की खूबसूरती को बढ़ाना चाहते है, धोनी अपने हर प्रयोग में यह ही करते आए, क्रिकेट की खूबसूरती बढ़ाते या बचाते हुए.
धोनी विकेट के पीछे रहे और हमेशा खेल को आगे किया.एक कलाकार जिसने अपनी कहानी क्रिकेट की भाषा में कही और बताया कि एक अच्छी कहानी कहने के लिए जरूरी नहीं आप के हाथ में कलम ही हो.

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