कोरोना वायरस महामारी (कोविद-१९) की वैज्ञानिक तथ्य एवं सामाजिक सरोकार

  • whatsapp
  • Telegram
कोरोना वायरस महामारी (कोविद-१९) की वैज्ञानिक तथ्य एवं सामाजिक सरोकार

रामचंद्रा1, सोनम त्रिपाठी 1 एवं गोविन्द जी पांडेय2

1 पर्यावरणीय सुक्ष्जैविकि विभाग, 2 जन

सचांर एवं पत्रकारिता विभाग,

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविधालय

(केंद्रीय विश्वविधालय ) विद्या विहार, रायबरेली रोड,

लखनऊ- २२६०२५,यू० पी०

कोरोना वायरस जिन्हें हम विषाणु कहते हैं, यह प्रोटीन एवं न्यूक्लिक एसिड के बने हुए अति सूक्ष्म कण होते हैं, जिसकी साइज प्रायः १२० से १६० नैनोमीटर होती है। इनकी कोशिकाओं की वृद्धि या विभाजन अपने आप नहीं हो सकती है। इनकी वृद्धि किसी जंतु कोशिका में संक्रमण के उपरांत ही संभव होती है.दिसंबर माह २०१९, चीन में जिस वायरस का पता लगा था उस वायरस के लक्षण पूर्व वर्ष २००२-२००३ में पाए गए वायरस जिनकी वजह से घातक साँस की बीमारी के रूप में पाया गया था, इसको सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) के नाम से प्रचलित हुई। तदोपरांत वर्ष २०१२ में इसी प्रकार के वायरस के द्वारा एक अन्य बीमारी भी लोगो को प्रभावित किया था जिसका नाम था मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स)। इस बीमारी के कारण ६००-८०० लोगों की जान चली गयी थी। लेकिन जो वायरस दिसंबर २०१९ , चीन में बीमारी का कारण पाया गया उसके लक्षण पूर्व में देखे गए वायरस से भिन्न था। इसलिए दिसंबर २०१९ में मिले वायरस को शुरुआत में न्यू कोरोना वायरस (ncov) नाम दिया गया । जो वर्तमान में भयावह संक्रमण से एक महामारी का रूप ले लिया है इन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा जनवरी १२ , २०२० को इस महमारी का नाम कोरोनावायरस बीमारी - २०१९ (कोविद-१९) नाम दिया गया है। इस बीमारी की शुरुआत चीन के वुहान शहर के हुबई प्रान्त में दिसंबर २०१९ के प्रथम सप्ताह में पाया गया, जिसमे शुरुआत में यह अनुमान लगाया गया कि इस बीमारी का संक्रमण वुहान शहर के सी-फ़ूड मार्किट में बिकने वाले चमगादड़ों के माध्यम से हुआ है। इस बीमारी के लक्षण निमोनिया से मिलते जुलते थे तथा इसमें तेज बुखार के साथ श्वसन तंत्र पूरी तरह बंद हो जाता है। शुरुआती लक्षण में तेज बुखार के साथ पाचन तंत्र भी खराब हो जाता है। इस वायरस के लिए १५ से २० सेंटीग्रेड तापमान उत्तम पाया गया है। पूर्व वर्गीकरण के अनुसार कोरोना वायरस के पहले से ही दो मुख्य प्रजातियां ज्ञात है उनमें एक प्रजाति जो आजकल बहुत ही चर्चा में है, उसे कोरोनावायरस कहते हैं उसी परिवार की दूसरी प्रजाति है जिसको हम टोरो वायरस के नाम से जानते हैं । कोरोना वायरस मुख्य रूप से श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है तथा टोरो वायरस मनुष्य के पाचन तंत्र को प्रभावित करता है, जिससे पेचिश के लक्षण होते हैं। मनुष्यों में संक्रमण के दौरान शोध में विश्लेषण के उपरांत यह भी देखा गया है कि कोरोनावायरस के दो (०२ ) सिरोटाइप स्ट्रेन प्रकृति में पहले से ज्ञात हैं जिन्हें हम कोरोनावायरस स्ट्रेन २२९- इ एवं कोरोनावायरस ओ सी-४३ के नाम से जानते हैं। यह प्रजातियां शुरुआती दौर में कुछ जानवरों में भी पाई गई थी। इसलिए लोगों को यह विश्वास था कि इस वायरस का संक्रमण जानवरों तक ही सिमित रहेगा। इसके अलावा एक तीसरी स्ट्रेन जो कि बाद में रिपोर्ट किया गया है वह स्ट्रेन 229-इ से मिलती-जुलती है तथा इनका संक्रमण ज्यादातर पक्षियों में ही पाया गया था, तथा आमतौर पर यह अनुमान किआ जाता रहा कि ये वायरस सिर्फ जानवरों के ऊपर ही आक्रमण करता है। परन्तु, वर्तमान में कोरोना वायरस के वर्गीकरण के अनुसार इनकी चार प्रजातियां खोजी गयी हैं जिनको हम (अ) अल्फाकोरोनावायरस

(ब) बीटाकोरोनावायरस

(स) गामाकोरोनावायरस

(द) डेल्टाकोरोनावायरस

के नाम से प्रचलित है। वायरस की ये विभिन्न प्रजातियां विभिन्न प्रकार के जानवरों पर संक्रमण करते हैं। प्रायः अल्फा और बीटाकोरोनावायरस स्तनधारी जानवरो के ऊपर संक्रमण करता है जिसमे मनुष्य भी आता है, जबकि गामा और डेल्टाकोरोनावायरस पछियों, मछलियों या अन्य जानवरों में संक्रमण करते है। वर्तमान में जो मनुष्यों के श्वसन तंत्र में संक्रमण करके महामारी बना हुआ है वह इसी प्रजाति का है जिसे अभी अल्फाकोरोनावायरस के नाम से ज्ञात की गयी है। इसके साथ-साथ हाल के शोधों में यह भी पाया गया है कि बीटाकोरोनावायरस कि प्रजाति भी मनुष्य के आमाशय या पाचन तंत्र कि कोशिकाओं में संक्रमण फ़ैलाने में मुख्य भूमिका निभा रहा है। संरचना की दृष्टिकोण से इनकी कोशिकाएं अति सूक्ष्म होने के कारण इनको इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी के द्वारा ही देखी जा सकती हैं, जो छोटे छोटे गोल फूल की पंखुड़ियों के आकार की दिखती हैं, इन कोशिकाओं के चारों तरफ ब्रश जैसा उभरी हुई प्रोटीन की सतह होती है, जो या तो ग्लाइकोप्रोटीन की बनी होती है या तो फोस्फोप्रोटीन की बनी होती है। उसके अंदर ही उनका अनुवांशिक पदार्थ एक पतली प्रोटीन की झिल्ली के साथ बंद रहता है। कोरोनावायरस के अंदर जेनेटिक मैटेरियल सिंगल स्ट्रैंडेड आरएनऐ (एकसूत्रीय राइबोन्यूक्लिकअम्ल) से बना होता है, जिसके अंदर २६ से ३२ किलोबेसपेअर का इनका पूरा जीनोम होता है। वर्तमान में पाया गया वायरस जिसके कारण कोरोनावायरस डिजीज ( कोविद-१९) महामारी का प्रकोप है, उसमे पाया जाने वाला जीनोम का आकर ३० किलोबेस है जो की सामान्य वायरस से तीन गुना अधिक है, तथा इसका आकार समान्यतः १२५-१३० नैनोमीटर होती है। इस वायरस के कुछ जीन उत्परिवर्तन के द्वारा बदलते रहते है। इतने बड़े आकार के जीनोम के कारण इनका सीकवेन्स करनाथोड़ा कठिन होता है, तथा जीन में बदलाव के कारण वैक्सीन बनाना थोड़ा जटिल है। परन्तु, इसकी पूरी संरचना की जानकारी जल्द ही हो जाएगी तथा वैक्सीन भी आशा है की बन जाएगी. क्योकि विश्वस्तर पर बहुत सी प्रयोगशालाएं कार्यरत है। मानव शरीर में कोरोनावायरस नाक या साँस के रास्ते मुख्य रूप से गले की कोशिकाओं पर संक्रमण करता है जैसे कि सर्दी जुकाम का वायरस करता है. कोरोनावायरस के संक्रमण की प्रक्रिया आसान है जिसे आम तौर पर किसी भी वायरस के संक्रमण के प्रक्रिया को चित्र के द्वारा समझा जा सकता है।

चित्र :- संक्रमण के दौरान वायरस का मनुष्य शरीर कि कोशिका का सामान्य विभाजन चक्र

कोरोनावायरस के संक्रमण के दौरान, वायरस के ऊपरी सतह पर मौजूद ग्लाइकोप्रोटीन हमारे गले की सतह पर मौजूद म्यूकस कोशिकाओं में स्थित विशेष प्रकार की प्रोटीन जिनको हम रिसेप्टर कहते हैं उन से अभिक्रिया करता है। इस अभिक्रिया के दौरान एक अन्य प्रकार के प्रोटीन का उत्सर्जन होता है, जिसे इंटरफेरान या साइटोकाइनिन कहते हैं। यही साइटोकाइनिन वायरस संक्रमण के दौरान उनसे लड़ते हैं तथा यदि हमारी कोशिका तंत्र का साइटोकाइनिन अभिक्रिया में कमजोर पड़ जाता है तो वायरस कोशिका के अंदर प्रवेश कर जाता है। परन्तु, इंटरफेरान मॉलिक्यूल वायरस के प्रोटीन को निष्क्रिय कर देता है तो वायरस का संक्रमण हमारी कोशिका में नहीं हो पाता है, इसे ही हम शरीर की प्रतिरक्षा तंत्र या इम्यूनिटी कहते हैं। परन्तु (कोविद-१९) वायरस संक्रमण के दौरान यह प्रोटीन सर्वप्रथम मनुष्य के गले या शरीर के कोशिका में मौजूद एंजियोटेनसिन-कंवर्टिंग एंजाइम - (एसीइ -) एक रेसेप्टर की तरह कार्य करती है। एसीइ-२ सर्वप्रथम कोरोना वायरस में उपस्थित ग्लाइकोप्रोटीन-यस से अभिक्रिया करके संक्रमण को कोशिकातन्त्र में स्थापित करता है। उसके उपरांत कोशिका के अंदर प्रवेश करके वायरस अपनी कोशिकाओं का विभाजन करता है। हाल के शोध में यह भी देखा गया है की यह एंजाइम महिलाओं के अपेक्षा पुरूषो में संक्रमण के दौरान ज्यादा सक्रिय होती है। इसलिए पुरुष का संक्रमण महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा आसान पाया गया है। हमारी शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली हमारे रहन-सहन एवं खाद्य पदार्थों के गुणवत्ता के साथ साथ जीवन शैली पर भी निर्भर करती है। भारतीय परंपरा के अनुसार हमारे वेद पुराणों में वर्णित जीवन शैली का विशेष महत्व है,जिसमे नियमित समय पर जगना, सोना एवं व्यायाम इत्यादि मुख्य है। इसके अलावा सकारात्मक सोच भी शरीर के प्रतिरोधक क्षमता एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होती है। कोरोना वायरस के संक्रमण के उपरांत उनमें पाए गए घातक बीमारी मौलिक आधार हेतु अध्ययन में यह पाया गया है कि वर्तमान में प्राप्त आकड़ों में विदेशों में इनकी मृत्यु दर ३-४-% के बिच है, परन्तु भारत में मृत्यु दर २-३% ही पाई गयी है, जो कि विदेशो के अपेक्षा कम है। कोरोनावायरस के संक्रमण मे यूरोप के विभिन्न देशो से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर रोगियों के जीवन शैली की ऐतिहासिक आकलन में देखा गया है कि ऐसे लोगों को कोरोनावायरस ज्यादा घातक पाया गया है, जिनको पहले से कोई अन्य शारीरिक व्याधियां व्याप्त थी जिसके कारण शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है उदाहरणार्थ:- हृदय रोग, श्वसन संबंधित अन्य बीमारियां तथा रक्त संबंधी रोग इत्यादि प्रमुख है। इसके अलावा वृद्ध व्यक्तियों या बुजुर्गों में कोरोना का संक्रमण एवं मृत्यु दर के आकड़े ज्यादा पाए गए हैं। जिसका प्रमुख कारण प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना देखा गया। इसके अलावा ऐसे व्यक्तियों में भी कोरोना का संक्रमण ज्यादा पाया गया जो धूम्रपान एवं शराब का सेवन ज्यादा करते हैं। जिसके फलस्वरूप शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हाल के शोध में यह पाया गया है कि, मार्च २०२० तक दुनिया में करीब २०९८४१ संक्रमित मरीजों से जिसमे करीब ८७८८ मौतें हुई इनका संबंध वृद्धा अवस्था, धूम्रपान, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप एवं मधुमेह जैसे व्याधियों के कारण पाए गए। जोकि कोरोनावायरस को घातक रूप में फैलने के लिए अवसर प्रदान करते हैं। इटली में मार्च २०२० में किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि कोरोनावायरस के कारण हुई ४८१ रोगियों की मौत में २०% व्यक्तियों में अन्य शारीरिक व्याधियों का कारण पाया गया है जिसका विस्तृत आकड़ा तालिका में प्रदर्शित है।

तालिका: कोविद-१९ संक्रमण के कारण २०% मौतों में निम्न कारण पाए गए है

क्रम सं०

अन्य रोग

मृतकों का प्रतिशत %

१. उच्चरक्त चाप
२. मधुमेह
३. हृदयरोग
४. साँस कि बीमारी
५. गुर्दे कि बीमारी
७३.८०%
३३.९०%
३०.१०%
२२.००%
२०.२०%

इसके अलावा मृतकों के अंदर साइटोकाइन स्टॉर्म सिंड्रोम नामक बीमारी के लक्षण भी प्रमुख रूप से देखा गया, जिसके कारण उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली बुरी तरह प्रभावित हो गयी थी। इसके साथ साथ मार्च २०२० में ही जर्मनी में एक अन्य अध्ययन में यह पता चला है की वायु प्रदुषण की गैसें भी कोविद-१९ के संक्रमण को बढ़ावा देती है। इटली, स्पेन, फ्रांस, एवं जर्मनी के विभिन्न क्षेत्रों के आकड़ों में यह देखा गया है कि जहां पर भी नाइट्रोजन डाइऑक्साइड कि मात्रा वातावरण में मानक स्तर से ज्यादा पाई गयी है वहां पर कोविद-१९ के संक्रमण ज्यादा देखे गये है। इसप्रकार से यह प्रमाणित हो जाता है कि वायु प्रदुषण हमारे स्वशन तंत्र एवं प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है जो वायरस के संक्रमण को बढ़ावा देते है। परन्तु, हमारे देश के जलवायु के साथ- साथ हरी सब्जियां, मौसमी ताजा फल एवं मसाले जो हमारी प्रकृति से वरदान स्वरुप प्राप्त है, इनको यदि सही ढंग से सेवन किया जाये तो अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करके कोविद-१९ से आसानी से बचा जा सकता है इसके साथ-साथ अपने वातावरण को स्वच्छ रखें और संक्रमित व्यक्ति से दुरी बनाना जरूरी है, जिससे बचाव किया जा सके।

बचाव हेतु

आवश्यक सुझाव

:-

  • स्वयं कि स्वछता बरतने के साथ- साथ अपने वातावरण को भी स्वच्छ रखे।
  • नित्य साफ सुथरे कपड़ों का उपयोग करें।
  • संक्रमित व्यक्ति से दुरी बना करके रखें, यदि जरूरत पड़े तो मास्क का उपयोग करें।
  • तम्बाकू या धूम्रपान से दूर रहे तथा अत्यधिक शराब का सेवन न करें।
  • सुपाच्य भोजन ग्रहण करें जिससे पाचन तंत्र सही रहे।
  • नित्य टहले या कुछ व्यायाम अवश्य करें।
  • सोने एवं जागने का समय निर्धारित रखे तथा आवश्यक नीद भी लें
  • सकारात्मक सोच रखें तथा अन्य के प्रति द्वेष या ईर्ष्या न रखें जिससे आपमें कोई मानसिक विकार न उत्पन्न हो सके।
  • अपने कार्यों को निष्ठा पूर्वक करें तथा परिवार के साथ हमेशा सहज एवं शालीन रहें।

उपरोक्त नियम आपके प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत बनाने के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थय को बरकरार करने में मदद होगी जिससे वायरस या अन्य जीवाणुओं के संक्रमण से बचा जा सकता है।

Next Story
Share it