मानव को मानवता का पाठ पढ़ाती है बरन

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मानव को मानवता का पाठ पढ़ाती है बरन

माजिद माजिदी की एक शानदार फिल्म बरन की याद आ गयी तो सोचा देश के उन लोगो के लिए शेयर कर दू जो NRCऔर NPR को लेकर बौखलाए रहते है | ये एक जरुरु देखने वाली फिल्मों में से एक है जो उनकी तमाम और फिल्मों सोंग ऑफ़ द स्पारो , फादर , कलर ऑफ़ पैराडाइस की तरह ही कमाल की फिल्म है |

ईरान भले से ही आज अन्य कारणों से जाना जाता हो पर वहा की फिल्म इंडस्ट्री छोटे होने के बावजूद इतनी सफल और कमाल की फिल्मे बनाती है जिसे देख कर भारतीय फिल्म खासकर बॉलीवुड को प्रेरणा लेनी चाहिए |

ये फिल्म एक बड़े बिल्डिंग के बनने की कहाँनी है जहा पर अफगानी कामगार छुप कर काम कर रहे है | अफगान में सोवियत संघ के आने के बाद से ईरान में लगभग पंद्रह लाख लोग सरनार्थी की तरह रह रहे है | और इनमे से तो कई ऐसे होंगे जिन्होंने अपनी भूमि भी नहीं देखी होगी |

इस फिल्म की खास बात जो इसे कमाल की बनाती है वो है उसका सीधा और सपाट आख्यान संरचना जो ज्यादा कुछ न होने के बावजूद मानव मन को मानवता का पाठ पढ़ा देती है | लतीफ़ जी वह काम करता है वो इस बात से दुखी है की उसकी चाय पिलाने की नौकरी एक ऐसा लड़का , रहमत ले लेता है जिसका पिता उस बिल्डिंग की छत से गिरकर घायल हो जाता है |

लगभग आधी फिल्म लतीफ़ का रहमत को सताने और अपनी नौकरी को लेने के कारण गुस्से पर है | एक ऐसा व्यक्ति जो बड़ी ही मज़बूरी में है उसकी नौकरी एक ऐसे व्यक्ति को मिल जाती है जो उससे भी बुरी आर्थिक हालत में है | यही पर कही ये फिल्म नव यथार्थ वाद की याद दिला जाती है |

जहा बाइसिकल थीफ में रिक की साइकिल कोई ऐसा व्यक्ति चुरा लेलेता है जो उससे भी बुरी हालत में है |पर जब उसे इस बात का ज्ञान होता है की रहमत एक लड़की बरन है तो वो उसकी हर प्रकार से मदद करता है - इस फिल्म में आप अनेको दृश्य देख लेंगे जहा पर आप पायेंगे की ईरान में कही भी कोई रुकने या काम करने के लिए जाता है तो उससे सरकारीआई डी मांगी जाती है यहीं नहीं राशन कि दूकान से लेकर हर जगह बिना आई डी के कोई सुनवाई नहीं है |

ये फिल्म २००२ में आई थी और उससे बहुत पहले से ईरान में विदेशी लोगो के अलावा अपने लोगो के लिए आई डी का चलन है जिससे ये बात मालूम रहे की कौन ईरान का है और कौन वहा बाहर से आया है | उन्होंने अफगान को बाहर नही निकाला पर आई डी के बिना अंदर भी नहीं रखा | आज अपने देश में कुछ तथाकथित बुध्दजीवी इस बात पर बहस करते है तो उन्हें देख कर लगता है की ये विदेशी धन से प्रायोजित बाते ही है अन्यथा एक मुश्लिम देश में मुश्लिमों को अपना क्यों नही लिया आई डी की जरुरत की पड़ी | बहरहाल मौका मिले तो बरन जरुर देखे |

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